Ayodhya Verdict 2019: समाधान के लिए मध्यस्थता के हुए प्रयास, पर नहीं बनी बात
कोर्ट ने मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय रखने के आदेश दिए थे।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। धार्मिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील श्रीराम जन्मभूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के लिए कई बार प्रयास किए गए, लेकिन बात नहीं बनी। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मामला आपसी सहमति से सुलझाने के लिए मध्यस्थता को भेजा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और अंत में कोर्ट ने मामले की मेरिट पर सुनवाई कर फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने गत आठ मार्च को मामला मध्यस्थता के लिए भेजते हुए तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल गठित किया था, जिसके अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफएमआइ कलीफुल्ला थे, जबकि आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर व वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू सदस्य थे। कोर्ट ने शुरू में मध्यस्थता के लिए आठ सप्ताह का समय दिया था, जिसे बाद में पैनल के अनुरोध पर बढ़ाकर 15 अगस्त किया गया।
कोर्ट ने मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय रखने के आदेश दिए थे। इस बीच मुकदमे के पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने नौ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की, जिसमें कहा कि मध्यस्थता में कुछ ठोस प्रगति नहीं हुई है और इससे विवाद का हल निकलने की उम्मीद नहीं है। उस अर्जी में कोर्ट से आग्रह किया गया कि मध्यस्थता समाप्त कर अपीलों पर जल्द सुनवाई शुरू की जाए। इस अर्जी पर कोर्ट ने 11 जुलाई को सुनवाई की और मध्यस्थता पैनल से 18 जुलाई को प्रगति रिपोर्ट मांगी।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर रिपोर्ट देखकर उसे लगा कि मध्यस्थता समाप्त कर दी जानी चाहिए तो कोर्ट मध्यस्थता समाप्त कर देगा और मामले पर 25 जुलाई से रोजाना सुनवाई करेगा। इस बीच 18 जुलाई को कोर्ट मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट देखेगा और उसके बाद आगे का फैसला लेगा। 18 जुलाई को पैनल की प्रगति रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने पैनल को 31 जुलाई तक का समय देते हुए एक अगस्त को फिर रिपोर्ट मांगी।
दो अगस्त को मामला फिर सुनवाई के लिए आया और कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट देखकर कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही में विवाद का हल नहीं निकला। दो अगस्त को ही कोर्ट ने मामले पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का आदेश दे दिया था। कोर्ट ने कहा था कि सुनवाई तब तक रोजाना चलेगी जब तक कि पूरी नहीं हो जाती। इसके बाद कोर्ट ने 40 दिन लगातार मामले पर सुनवाई की। गोपाल सिंह विशारद की अर्जी के कारण मध्यस्थता कार्यवाही तय समय से पहले खत्म हो गई थी।
जब मामले पर सुनवाई चल रही थी तो उसी दौरान दूसरे दौर की मध्यस्थता के प्रयास भी हुए। दो पक्षकारों सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और निर्वाणी अखाड़ा के धर्मदास ने मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखकर दोबारा मध्यस्थता शुरू करने का आग्रह किया, जिस पर मध्यस्थता पैनल ने सुप्रीम कोर्ट से निर्देश मांगा। कोर्ट ने पक्षकारों को मध्यस्थता के जरिये विवाद का हल निकालने की छूट तो दे दी, लेकिन साफ किया था कि सुनवाई शुरू हो चुकी है और काफी आगे बढ़ चुकी है, ऐसे में मामले की चल रही सुनवाई प्रभावित नहीं होगी। हालांकि, इस बार भी मध्यस्थता में गोपनीयता आदि की शर्तें पूर्ववत ही थीं।
रामलला की ओर से कोर्ट में कह दिया गया कि वह मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं। दूसरे दौर की मध्यस्थता में चर्चा रही कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी और कुर्छ हिंदू पक्षों के बीच समझौता हो गया है। चर्चा यह भी रही कि इस समझौते में सुन्नी वक्फ बोर्ड कुछ शर्तों पर जमीन पर दावा छोड़ने को तैयार था। दूसरे दौर की मध्यस्थता के बारे में मध्यस्थता पैनल ने सुनवाई के आखिरी दिन 16 अक्टूबर को रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस रिपोर्ट को भी सामने नहीं लाया गया।