Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जैसे मुस्लिम के लिए मक्का है, वैसे ही हिन्दुओं के लिए अयोध्या
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम गवाहों ने कहा है कि हिन्दुओं का विश्वास है कि राम का अयोध्या में जन्म हुआ था।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर हिन्दुओं के दावे को सिर्फ आस्था और विश्वास पर आधारित बता रहे मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वह हिन्दुओं के आस्था और विश्वास को चुनौती देंगे तो उनके लिए मुश्किल होगी क्योंकि मामले में मुस्लिम गवाहों ने कहा है कि हिन्दुओं का विश्वास है कि राम का वहां जन्म हुआ था और जैसे मुसलमानों के लिए मक्का है वैसे ही हिन्दुओं के लिए अयोध्या है।
धवन को दलीलें के प्रति सचेत करने वाली यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने की। हालांकि धवन ने विवादित भूमि पर मुसलमानों का दावा जताते हुए कहा कि अंदर मूर्ति नहीं थी अंदर पूजा नहीं होती थी। मूर्ति बाहर चबूतरे पर थीं जहां पूजा होती थी। उन्होंने कहा कि सिर्फ आस्था के आधार पर जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता। बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।
राजीव धवन ने जन्मस्थान को देवता और न्यायिक व्यक्ति माने जाने का विरोध किया और कहा कि जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति कहने की अवधारणा का जन्म 1989 में हुआ जब रामलला की ओर से मालिकाना हक का मुकदमा दाखिल हुआ और उस मुकदमें में रामलला विराजमान के अलावा जन्मस्थान को अलग से पक्षकार बनाया गया। हालांकि जस्टिस एसए बोबडे ने सोमवार को फिर कहा कि इससे पहले ऐसा कहने का मौका कब आया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने धवन से सवाल किया कि अगर रामलला और जन्मस्थान दोनों को न्यायिक व्यक्ति माना जाता है तो इसके क्या परिणाम होंगे और अगर सिर्फ रामलला (मूर्ति) को ही न्यायिक व्यक्ति माना जाता है तो उसका क्या परिणाम होगा।
धवन ने कहा कि इस मुकदमें में सोच समझकर जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानते हुए अलग से पक्षकार बनाया गया है ताकि इस पर प्रतिकूल कब्जे और समयसीमा का नियम लागू न हो। मुकदमा सभी दावों से मुक्त हो जाए। धवन ने कहा लेकिन उनके मुताबिक दोनों या उनमें से एक को न्यायिक व्यक्ति मानने का परिणाम समान होगा।
धवन ने जन्मभूमि की परिक्रमा के बारे में गवाहों के बयानों का हवाला देते हुए कहा कि गवाहियों में अंतर है इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि परिक्रमा की गवाहियां उस जगह की पवित्रता के बारे में बताती हैं। धवन ने कहा कि हिन्दुओं की यह दलील मानने योग्य नहीं है कि देवता हमेशा नाबालिग होते है इसलिए समयसीमा का नियम उन पर लागू नहीं होगा।
मस्जिद हमेशा मस्जिद रहती है
धवन ने कि एक बार बनी मस्जिद हमेशा मस्जिद रहती है। वहां मस्जिद थी जिसमें मुसलमान नियमित नमाज करते थे। वह मस्जिद कभी भी परित्यक्त और खाली नहीं छोड़ी गई। आखिरी बार वहां 16 दिसंबर 1949 को नमाज हुई। 22-23 दिसंबर 1949 को वहां अंदर मूर्ति रखी गई।
बिना मूर्ति का भी होता है मंदिर
जब धवन देवता और मंदिर के लिए मूर्ति या कोई आकार होने की दलीलें देते हुए कह रहे थे कि हर स्थान पवित्र नहीं माना जा सकता। स्थान को न्यायिक व्यक्ति या पवित्र स्थल मानने के लिए उसमें दिव्यता के अलावा पवित्रता का जो अनुष्ठान होता है वह किया गया होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैदिक काल में लोग नदी, पहाड़, सरोवर आदि का सम्मान करते थे उस वक्त मूर्ति की पूजा नहीं होती थी। सिर्फ हवन होता था। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि मूर्ति के बिना भी मंदिर होता है। उन्होंने तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर का हवाला दिया और कहा कि वह मंदिर आकाश का है। जस्टिस बोबडे ने चिदंबरम का अर्थ भी बताया।
राम और अल्लाह दोनों का सम्मान होना चाहिए नहीं तो देश बिखर जाएगा
धवन ने धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते हुए कहा कि राम और अल्लाह दोनों का सम्मान होना चाहिए। यह धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत है नहीं तो देश बिखर जाएगा। उन्होंने इस संबंध में फिराक गोरखपुरी का शेर पढ़ा सर जमीने हिन्द पर एक्वाम ए आलम के फिराक. काफिले बसते गए हिन्दोंसतां बनता गया। उन्होंने कहा कि यही हिन्दुस्तान है।
राम अयोध्या में जन्में, लेकिन निश्चित स्थान नहीं बताया गया है
धवन ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, लेकिन हिन्दू पक्ष उनके जन्म का निश्चित स्थान नहीं बता पाया है। उन्होंने कहा कि सिर्फ स्कंद पुराण और हेंस बेकर यात्री की किताब का हवाले से निश्चित स्थान बताते हैं जो कि विश्वस्नीय नहीं है।
गुरूवार तक एक घंटे ज्यादा होगी सुनवाई
सोंमवार को सुनवाई एक घंटे ज्यादा शाम पांच बजे तक चली। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को भी इसी तरह सुनवाई होगी हालांकि शुक्रवार को कोर्ट में सिर्फ दोपहर एक बजे तक ही सुनवाई होगी। कोर्ट ने जब 18 अक्टूबर की समय सीमा तय की थी तभी संकेत दिया था कि जरूरत हुई तो एक घंटे ज्यादा सुनवाई की जाएगी। उसी दिन राजीव धवन ने शुक्रवार को सुनवाई न करने की गुहार लगाई थी जिस पर कोर्ट ने उन्हें शुक्रवार को आधे दिन ही सुनवाई करने का भरोसा दिया था।