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Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या मस्जिद में हो सकती हैं देवी-देवताओं की कलाकृतियां

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव धवन की ओर से 1991 की चार इतिहासकारों की रिपोर्ट को साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील पर कहा कि रिपोर्ट कोर्ट में साक्ष्य नहीं हो सकती वह महज राय है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 10:35 PM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 10:35 PM (IST)
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या मस्जिद में हो सकती हैं देवी-देवताओं की कलाकृतियां
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या मस्जिद में हो सकती हैं देवी-देवताओं की कलाकृतियां

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के दौरान मंगलवार को मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के खरे-खरे सवालों का सामना करना पड़ा। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से खंबों पर मूर्तियों और कमल के चित्रों को लेकर कई सवाल किये। पूछा क्या इस्लाम के मुताबिक मस्जिद में ऐसे चित्र हो सकते हैं। क्या किसी और मस्जिद में ऐसे चित्र होने के सबूत हैं। इसके अलावा कोर्ट ने राजीव धवन की ओर से 1991 की चार इतिहासकारों की रिपोर्ट को साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील पर कहा कि रिपोर्ट कोर्ट में साक्ष्य नहीं हो सकती वह महज राय है। बहस बुधवार को भी जारी रहेगी।

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मालूम हो कि चार इतिहासकारों इरफान हबीब, सूरजभान, डीएन झा और एसके सहाय ने 1991 में रिपोर्ट दी थी जिसमे कहा था कि यह साबित नहीं होता कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी। हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट को साक्ष्य मे इसलिए स्वीकार नहीं किया था क्योकि रिपोर्ट देने वाले एक लेखक डीएन झा ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस रिपोर्ट को कोर्ट मे पेश कर इसे साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील दी थी।

इतिहासकारों की रिपोर्ट महज राय

सुनवाई को दौरान राजीव धवन ने चार इतिहासकारों की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि हाईकोर्ट द्वारा इसे स्वीकार न किया जाना गलत है। रिपोर्ट देने वाले लोग जानेमाने इतिहासकार हैं। इन दलीलों पर पीठ के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब इतिहासकारों ने यह रिपोर्ट दी तब एएसआइ की खुदाई के बाद आई विस्तिृत रिपोर्ट मौजूद नहीं थी।

धवन ने कहा कि रिपोर्ट में है कि वहां मस्जिद बनाने के लिए मंदिर तोड़े जाना साबित नहीं होता। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इस मामले में साक्ष्यों के आधार पर विचार करेगे उस रिपोर्ट को साक्ष्य नहीं माना जा सकता वह सिर्फ राय है। वह रिपोर्ट चर्चा के दौरान विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) के स्टैंड का जवाब है उसे राय माना जाएगा।

जब धवन ने कहा कि रिपोर्ट के एक व्यक्ति से कोर्ट मे जिरह भी हुई थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल ने रिपोर्ट के तरीके का भी आंकलन किया है। रिपोर्ट में ही स्पष्ट है कि वह वीएचपी का जवाब है। रिपोर्ट को स्वीकारे जाने के लिए अड़े धवन ने कहा कि अगर यह राय भी है तो विशेषज्ञों की राय है और उसे अहमियत मिलनी चाहिए।

क्या मस्जिद में हो सकते हैं फूल और जानवरों के चित्र

इस बहस से पहले जब धवन अपना दावा साबित करने के लिए कोर्ट का ध्यान 1950 की कुछ फोटो की ओर दिलाना चाह रहे थे उसी वक्त जस्टिस एसए बोबडे ने एक फोटो पर कहा कि रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इसे गरुण का चित्र बताया है जो कि हिन्दू देवता हैं। उन्होंने धवन से कहा कि अगर आप इसे मस्जिद बता रहे हैं तो वहां फूल और जानवरों आदि के चित्र नहीं होने चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वहां मिले कसौटी के खंबों पर कमल और अन्य मूर्तियां अंकित मिली हैं।

धवन ने कहा कि वहां स्पष्ट तौर पर देवता की मूर्ति होने के साक्ष्य नहीं हैं और कमल का फूल और अन्य चित्र सजावट के लिए है। इसे इस्लाम के खिलाफ नहीं कहा जा सकता और न ही इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह जगह मस्जिद नहीं रही अथवा वहां पढ़ी गई नमाज मान्य नहीं होगी। तभी जस्टिस अशोक भूषण ने हनुमान द्वार के दोनों खंबों पर बनी द्वारपाल जय विजय की मूर्ति के बारे मे धवन से सवाल किया।

जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या मस्जिद में ऐसे चित्र हो सकते हैं। क्योंकि हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि खंबे पर हिन्दू देवताओं के चित्र हैं। बताइये कि क्या कहीं और मस्जिद में ऐसे चित्र होने के साक्ष्य हैं। धवन ने कहा कि कुतुबमीनार में देवता की मूर्ति अंकित है तभी निर्मोही अखाड़ा के वकील एसके जैन ने कहा कि वहां जैन मंदिर था और वह जैन देवता की मूर्ति है।

जस्टिस बोबडे ने फिर सवाल किया कि इस मामले में कोई सबूत है जिसमें मस्जिद में ऐसे चित्र होने की बात कही गई हो। धवन ने कहा नहीं। लेकिन सीधे तौर पर देवता की मूर्ति होने के भी साक्ष्य नहीं हैं। इस आधार पर उसे कुरान के खिलाफ नहीं कहा जा सकता। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हिन्दू इन खंबों से साबित करते हैं कि यह उनकी पवित्र जगह है जहां मस्जिद बनाई गई।

ताजमहल सिर्फ मुस्लिम कारीगरों ने नहीं बनाया

बाद मे जब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह मिली जुली संस्कृति हो सकती है। धवन ने कहा कि हो सकता है क्योंकि मस्जिद सिर्फ मुस्लिम कारीगरों ने नहीं बनाई होगी जैसे ताजमहल सिर्फ मुस्लिम कारीगरों ने नहीं बनाया। जस्टिस बोबडे ने फिर कहा कि मिलीजुली संस्कृति की बात किसी ने इस केस में स्वीकारी है क्या।

धवन ने पढ़ा इकबाल का शेर

है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज अहल ए नजर समझते हैं उस को इमाम ए हिन्द। धवन ने इकबाल का यह शेर पढ़ते हुए कहा कि इसमें राम को हिन्द राजा कहा गया है। तभी जस्टिस बोबडे ने पूछा इकबाल क्या था शिया या सुन्नी। धवन ने कहा सुन्नी। धवन ने यह भी कहा कि बाद में उनके विचार बदल गए थे और वह पाकिस्तान चले गए थे।


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