Ayodhya Case in SC: जब हिन्दू-मुस्लिम दोनों वहां थे, तो मुस्लिम का प्रतिकूल कब्जे का दावा कैसे
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड से पूछा कि क्या वहां मस्जिद बनाए जाने का बाबर के काल का कोई दस्तावेजी सबूत है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड से सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि जब वहां हिन्दू मुस्लिम दोनों मौजूद थे तो फिर मुस्लिम पक्ष उस जगह पर प्रतिकूल कब्जे (एडवर्स पजेशन) का दावा कैसे कर सकता है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या वहां मस्जिद बनाए जाने का बाबर के काल का कोई दस्तावेजी सबूत है। इसके अलावा कोर्ट ने आज सुनवाई का एक दिन घटाते हुए कहा कि 17 अक्टूबर को सुनवाई पूरी कर ली जाएगी।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से जमीन पर मालिकाना हक मांग रहे वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कोर्ट को बताया कि 1855 में हिंदुओं ने मुसलमानों को हटाने की कोशिश की थी जिसे निष्फल किया गया और मुसलमानों का वहां हक माना गया हालांकि हिन्दुओं को भी थोड़े अधिकार दिए गए।
धवन ने इसके बाद निहंग के वहां आकर पूजा करने और उसे हटाए जाने के आदेश का हवाला दिया। ऐसी ही एक और घटना बताई और कहा कि तत्कालीन सरकार ने वहां माना था कि वह मस्जिद थी और मुसलमानों के हक में आदेश भी दिये थे, लेकिन तभी जस्टिस चंद्रूचड़ ने सवाल किया कि जब वहां दोनों पक्षों की मौजूदगी थी तो फिर आप प्रतिकूल कब्जे का दावा कैसे कर सकते हैं। लगातार की ये घटनाएं बताती हैं कि वहां हिन्दू भी थे।
मालिकाना हक का दावा
धवन ने कहा कि उनका प्रतिकूल कब्जे का दावा 1528 से शुरू होता है जब वहां मस्जिद बनी। उनका दावा है कि भले ही पहले कभी वहां मंदिर रहा हो, लेकिन मस्जिद बनने के बाद से उनका कब्जा था। मालूम हो कि प्रतिकूल कब्जे का कानून कहता कि जब कोई पक्ष किसी दूसरे मालिक को जबरदस्ती कब्जे से बेदखल करके उस संपत्ति पर 12 वर्ष तक काबिज रहता है तो वह उस कब्जे के आधार पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है।
मालूम हो कि 1855 मे हिन्दू मस्लिम झगड़ा होने के बाद ब्रिटिश सरकार ने अंदर के हिस्से मे लोहे की रेलिंग लगा दी थी और हिन्दुओं ने उसके बाद बाहर राम चबूतरा बनाकर उस पर पूजा करनी शुरू की थी।
दावा साबित करने के लिए 1860 से पहले का है कोई दस्तावेजी सबूत
जब धवन ने जमीन पर वक्फ बोर्ड का मालिकाना हक साबित करने के लिए अंग्रेजों द्वारा मस्जिद को अनुदान जारी रखने के ब्रिटिश सरकार के 13 जून 1860 और 29 जून 1860 के आदेश का हवाला दिया और कहा कि ब्रिटिश सरकार ने बाबर और अवध के नवाब द्वारा मस्जिद को दिये जा रहे अनुदान को जारी रखा था। तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या बाबर के समय मस्जिद के लिए अनुदान देने के बारे में कोई दस्तावेज मौजूद है 1860 के पहले का।
धवन ने कहा कि उस समय का कोई दस्तावेज नहीं है। न ही हिन्दुओं के पास है। इसके अलावा तो सिर्फ विदेशी यात्रियों के किस्से ही हैं। धवन ने कहा कि बाबर ने मस्जिद के निर्माण और उसके रखरखाव के लिए मीर बाकी को 302 रुपये अनुदान दिया था। जिसे जारी रखा गया था।
क्या मस्जिद दिव्य स्थान कही जाएगी
जब धवन ने कोर्ट से कहा कि अगर हिन्दुओं के आस्था विश्वास पर कोर्ट गौर करे तो मुसलमानों के विश्वास पर भी बराबरी का विचार होना चाहिए। हिन्दू आस्था के आधार पर जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति बताकर दावा कर रहे हैं। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि हिन्दू उस स्थान की दिव्यता के आधार पर वहां पूजा और उसके देवता होने की दलील दे रहे हैं। वहां दिव्यता किसी चीज के बारे मे कही गई है। इस पर धवन ने कहा कि मस्जिद हमेशा दिव्य स्थान होती है। मुसलमान पांच समय नमाज करते हैं। जस्टिस बोबडे ने कहा कि मुसलमान सिर्फ अल्लाह की प्रार्थना करते है। वे मूर्ति की तरह पूजा नहीं करते। क्या मस्जिद को दिव्या माना जाएगा। धवन ने कहा कि मस्जिद अल्लाह का घर होता है उसे भी दिव्य माना जाएगा।
सुनवाई का शिड्यूल तय
अक्टूबर 18 तक सुनवाई का शिड्यूल तय कर चुकी अदालत ने आज एक दिन घटा दिया। कोर्ट ने बाकी बची सुनवाई का शिड्यूल तय करते हुए कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी हो जाएगी। कोर्ट ने यह बात तब कही जब रामलला के वकील सीएस वैद्यानाथन ने धवन की लंबी खिंचती दलीलों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कोर्ट सुनवाई का शिड्यूल तय कर दे क्योंकि धवन ने अभी अपना पहला नोट भी खतम नहीं किया है और इन्हें दो नोट और पढ़ने हैं। ये अपनी बहस कब पूरी करेंगे।
14 अक्टूबर को पूरी होगी मुस्लिम पक्ष की बहस
मुख्य न्यायाधीश ने स्थिति साफ करते हुए कहा कि अगले सोमवार यानी 14 अक्टूबर को धवन मुस्लिम पक्ष की ओर से बहस पूरी कर लेंगे। इसके बाद 15 और 16 को हिन्दू पक्ष जवाब खतम कर लेगा। और 17 अक्टूबर को कोर्ट वैकल्पिक मांगों पर पक्षकारों का पक्ष सुनेगी। और शुक्रवार को छुट्टी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 17 अक्टूबर तक बहस पूरी हो जाएगी। बहस की समयसीमा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं और उससे पहले मामले में फैसला आएगा। अगर 17 को सुनवाई खत्म होती है तो अदालत के पास सिर्फ चार कार्यदिवस बचा है।