अटल की बनाई सड़कों पर ही कुलांचे भर रही देश की आर्थिक रफ्तार
अटल जी के व्यक्तित्व के इतने पहलू हैं कि उनके बारे में सब कुछ जानने के लिए एक जीवन भी छोटा पड़ेगा।
शक्ति सिन्हा
(प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव रहे शक्ति सिन्हा इस समय नेहरु मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के निदेशक हैं)
अटल जी के साथ जिसने भी काम किया या संपर्क में आया उनसे बहुत प्रभावित हुआ। मैं भी उनमें से एक हूं। उनमें देशभक्ति की प्रबल भावना थी। उनका स्वभाव भेदभाव रहित था। भाषा या धर्म के आधार पर उनके मन में किसी के प्रति कोई भेदभाव नहीं था। उन्हें भारत और भारतीय परंपरा पर बहुत गर्व था। हालांकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वह दूसरों को हीन समझते हों।
भारत को बनाना चाहते थे ताकतवर
उनके मन में बस एक ही मंत्र रहता था कि भारत को आगे बढ़ाना है। भारत दुनिया की महान शक्तियों में शामिल हो जाए, भारत शक्तिशाली राष्ट्र बन जाए, यही उनके विचार का केंद्र रहता था। उन्होंने भारत को शक्ति-संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए आर्थिक नीतियों और कूटनीति में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया।
सड़कों के विकास पर खास जोर
आर्थिक नीतियों में बदलाव से उनका आशय ढांचागत क्षेत्र के विस्तार से था। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार से ही अर्थव्यवस्था में निवेश के स्तर को बढ़ाना संभव था। इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की योजनाएं- स्वर्णिम चतुर्भुज औैर पूरब-पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण गलियारे के निर्माण की अभूतपूर्व और ऐतिहासिक योजनाएं बनायीं। उनका मानना था कि अगर व्यापक स्तर पर सड़क निर्माण की यह योजना नहीं हुई तो भारत तेजी से प्रगति नहीं कर पाएगा।
देेश के चारो कोनों को जोड़ा
उन्होंने विदेश यात्राओं के दौरान देखा था कि वहां किस तरह बेहतरीन सड़कें हैं। आम तौर पर जब सड़क की छवि जहन में आती है तो मन में सबसे पहले कारों का ख्याल आता है । लेकिन भारत जैसे विशाल देश में सड़कों का मतलब ट्रकों से है। वास्तव में भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग की दरकार थी। इसीलिए उन्होंने देश के चारों कोनों को जोड़ने को हाइवे निर्माण का इतना बड़ा कार्यक्रम बनाया। देश के इतिहास में यह पहली बार था। इससे पहले कभी किसी ने इस स्तर पर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की कल्पना नहीं की थी।
कारोबार करना सरकार का काम नहीं
इसके साथ ही उन्होंने देश के हर गांव को सड़कों से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरु की। आज दूर-दराज के गांव भी बारहमासी सड़कों से जुड़े हैं। हर गांव को इसका बहुत फायदा हुआ है। किसान आज अपनी उपज बाजार तक पहुंचा सकते हैं। मजदूर निकट के शहर में मजदूरी करने के लिए जा सकता है। इस तरह सड़क निर्माण के अटलजी के विजन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समाज में व्यापक परिवर्तन आया। अटलजी का स्पष्ट विचार था कि कारोबार करना सरकार का काम नहीं है। अर्थव्यवस्था में दखल देना भी सरकार का काम नहीं है। सरकार का काम तो केवल व्यवसाय के अनुकूल रास्ता तैयार करना है।
अमेरिका से प्रगाढ़ किए रिश्ते
अटलजी ने देश की बागडोर ऐसे समय संभाली जब शीतयुद्ध खत्म हो गया था। उस दौर में निर्गुट सम्मेलन का भी अप्रासंगिक हो गया था। इसलिए उस समय अमेरिका के साथ जो नीति थी उसमें बदलाव की आवश्यकता थी। दोनों देशों के बीच में अधिकतर ऐसी बातें थी जिन पर दोनों मुल्क सहमत थे। बहुत ही कम बिन्दु थे जिन पर दोनों देशों के बीच एक राय नहीं थी। अमेरिका को भी इस बात का अहसास था कि भारत के साथ काम करने में फायदा है।
पड़ोसियों से बेहतर संबंधों के पक्षधर
अटलजी दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि दक्षिण एशिया में शांति से सबको फायदा होगा। वह लाहौर की यात्रा पर गए। मीनार-ए-पाकिस्तान जाकर उन्होंने पाकिस्तान को कबूल किया। उन्होंने वहां जाकर साफ संकेत दिया कि पाकिस्तान को तोड़ने में भारत की कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ भी रिश्ते प्रगाढ़ बनाने को पहल की। लाहौर बस सेवा की तर्ज पर ही बांग्लादेश के साथ कोलकाता से ढाका तक बस सेवा शुरु की गई। बांग्लादेश के साथ व्यापारिक रिश्ते भी बेहतर किए गए। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ संबंधों को नया आयाम दिया गया। उनका मूलमंत्र था कि भारत और पड़ोसी देश एक साथ रहें।
सबकी सुनने का बाद फैसला
मुझे व्यक्तिगत तौर पर उनके साथ काम करने सौभाग्य प्राप्त हुआ। जो भी लोग उनके साथ व्यक्गित तौर पर काम करते थे उनके संग अटलजी का व्यवहार बहुत अच्छा रहता था। वह अपने सहयोगियों के साथ बहुत इज्जत से बर्ताव करते थे। समन्वय के साथ काम करना उनके स्वभाव में था। वह सबकी बातें सुनते और उसके बाद निर्णय लेते थे।