जब विवाह के डर से गांव में आ छिपे अटल जी
देवनगर निवासी स्व. आचार्य गोरेलाल त्रिपाठी के पुत्र विजय प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि पिताजी एवं गांव के बड़े-बुजुर्गो से अटल जी से जुड़ा रोचक प्रसंग सुनने को मिला।
जागरण संवाददाता, कानपुर। जिंदगी की हर परिस्थिति का सामना करने का हौसला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी में था। उनकी जीवटता तो सबकी जुबान पर रही। लेकिन, वह डरते भी थे, यह तो शायद उनके अन्य करीबी भी नहीं जानते होंगे। यह डर था, शादी का जिससे बचने के लिए वह अपने अभिन्न मित्र स्व. आचार्य गोरेलाल त्रिपाठी के कानपुर स्थित पतारा स्थित रायपुर गांव पहुंच गए थे।
देवनगर निवासी स्व. आचार्य गोरेलाल त्रिपाठी के पुत्र विजय प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि पिताजी एवं गांव के बड़े-बुजुर्गो से अटल जी से जुड़ा रोचक प्रसंग सुनने को मिला। 1944 से 1948 के बीच अटलजी की शादी की चर्चा उनके घर पर चली। वह देश सेवा को जीवन का उद्देश्य बना चुके थे और शादी करना ही नहीं चाहते थे। इसीलिए वह भागकर हमारे गांव रायपुर आ गए। तीन दिन तक छिपे रहे। डर की वजह से मकान से नीचे तक नहीं उतरते थे।
कराया जीविकोपार्जन का इंतजाम
विजय त्रिपाठी बताते हैं कि पिता का 10 जुलाई 1989 को निधन होने के बाद दिसंबर में जब उनसे मिलने लखनऊ गया तो उस वक्त वह नेता विपक्ष थे। उन्हें पिता का परिचय देते हुए नौकरी मांगी तो वह बड़ी सहजता से बोले, बेटा नौकरी तो नहीं दे सकता, लेकिन तुम्हारे जीवकोपार्जन का इंतजाम कर सकता हूं। उन्होंने डॉ. शिवकुमार अस्थाना को बुलाकर कहा, बच्चे को सहयोगी बनाएं और इसके अनुरूप कार्य सौंपें।
अस्थाना जी ने कमल ज्योति पत्रिका का कानपुर से संवाददाता बनाया। उसके तीन दिन बाद बिरहाना रोड स्थित खत्री धर्मशाला में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पिताजी के मित्र स्व. बाबूराम शुक्ल ने उनसे मेरा जिक्र किया। इस पर अटलजी ने मुझे ऊपर बुलाया और कमल ज्योति पत्रिका का सहायक संपादक बनाने की घोषणा कर दी। वर्ष 1991-96 तक सहायक संपादक के तौर पर कार्य किया। अटलजी ने एमएलसी बनाने की पेशकश की, जिसे सम्मानपूर्वक इन्कार कर दिया।