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...जब अटल बिहारी ने ली चुटकी, कहा- अब तो इंदिरा मुझे बड़े प्यार से देखती हैं

उनका दशकों का सार्वजनिक जीवन एक खुली किताब सा रहा। यूं ही नहीं लोग उन्हें अटल कहते थे।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:00 AM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 07:06 AM (IST)
...जब अटल बिहारी ने ली चुटकी, कहा- अब तो इंदिरा मुझे बड़े प्यार से देखती हैं
...जब अटल बिहारी ने ली चुटकी, कहा- अब तो इंदिरा मुझे बड़े प्यार से देखती हैं

नई दिल्ली [जेएनएन]। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे और कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थे। उनका दशकों का सार्वजनिक जीवन एक खुली किताब सा रहा। यूं ही नहीं लोग उन्हें अटल  कहते थे। 'भारतरत्न' इस 'अजातशत्रु' के कई यादगार बाते हैं जो कि बार-बार उनके विराट व्यक्तित्व की छवि बयां करती हैं। आपको बताते हैं कुछ ऐसे ही रोचक किस्से।  

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अटल जी की वक्तृत्व कला से अभिभूत थे नेहरू
अटल जी के हिंदी में दिए गए धाराप्रवाह भाषणों से पंडित जवाहरलाल नेहरू इतने अभिभूत होते थे कि वे उनके सवालों के जवाब हिंदी में ही देते थे। एक बार सदन में पंडित जी की जनसंघ पर आलोचनात्मक टिप्पणी सुनते ही अटल जी ने प्रत्युत्तर में कहा, 'मैं जानता हूं कि पंडित जी रोजाना शीर्षासन करते हैं। वे शीर्षासन करें। मुझे कोई आपत्ति नहीं, लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें। यह सुनना था कि पंडित नेहरू सदन में ठहाका मारकर हंसने लगे। नेहरू के संबोधन ज्‍यादातर अंग्रेजी में होते थे।

अभी तो हमारी तरफ बहुत प्यार से देखती हैं

1971 में लोकसभा के चुनाव हुए। जनसंघ सांसदों की संख्या 35 से घटकर 22 रह गई। उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे डा. नारायण माधव घटाटे ने अटल जी से पूछा कि इंदिरा जी की क्या प्रतिक्रिया है? वह हंसकर बोले, 'अभी तो हमारी तरफ बहुत प्यार से देखती हैं।

दूध में इकट्ठे और महरी में न्यारे नहीं चल सकता
1998 की बात है। शिवराज सिंह चौहान एक दुर्घटना में घायल हो गए थे। वह चलने-फिरने की हालत में नहीं थे। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ सकते। किसी दूसरे को उम्मीदवार बना दीजिए। इसपर पर अटल जी ने कहा, 'दूध में इकट्ठे और महरी में न्यारे नहीं चल सकता। अर्थात जब सब अच्छा हो, तब साथ-साथ और परेशानी में अलग छोड़ दें, यह ठीक नहीं है। उन्होंने चौहान से कहा कि आप पर्चा भर दीजिए, पार्टी कार्यकर्ता और नेता मिल जुलकर देख लेंगे। चौहान चुनाव जीत गए।

कभी किसी पर नहीं की व्यक्तिगत टिप्पणी
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में दूसरे दलों के नेताओ को अपना दुश्मन नहीं, सिर्फ राजनीतिक विरोधी मानते थे। उन्होंने कभी किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। एक बार तत्कालीन कोयला मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिहार जाकर लालू यादव के खिलाफ सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया जो वाजपेयी जी को अच्छा नहीं लगा। अटल जी ने रविशंकर प्रसाद को चाय पर बुलाया और पूरी मुलाकात के दौरान कुछ नहीं कहा। परेशान रविशंकर जब जाने लगे तो वाजपेयी जी बोले, रवि बाबू, अब आप भारत गणराज्य के मंत्री हैं, सिर्फ बिहार के नहीं, इस बात का आपको ध्यान रखना चाहिए।

इंदिरा गांधी कपड़े पहनाएगी, खाना खिलाएगी
1975-76 के आपात काल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जेल भेज दिए गए। उनके करीबी रहे डा. नारायण माधव घटाटे उनसे मिलने गए। उस समय जेल में लालकृष्ण आडवाणी, श्यामानंद मिश्र और मधु दंडवते भी नजरबंद थे। डा. घटाटे को वाजपेयी जी को जेल की कपड़ों में देखकर अजीब लगा। हठात उनके मुंह से निकला-यह क्या है? अटल जी के चेहरे पर चिर परिचित मृदु मुस्कान तैर आई। बोले-बस इंदिरा गांधी कपड़े पहनाएगी, इंदिरा गांधी खाना खिलाएगी। हम अपनी जेब से कानी कौड़ी भी खर्च नहीं करेंगे।

राजनाथ से कहा, बहुत बड़े पुजारी बन रहे हैं
1999 में राजनाथ सिंह भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष थे। लखनऊ मेंदन सवेरे घर पर पूजा कर रहे थे कि अटल बिहारी वाजपेयी जी का फोन आया। पत्नी ने बताया लेकिन राजनाथ सिंह ने हाथ के इशारे से मना कर दिया। कुछ देर बाद फिर फोन आया तो राजनाथ ने बात की। वाजपेयी जी ने पूछा कि क्या कर रहे हैं? राजनाथ ने बताया कि पूजा पर बैठे हैं। अटल जी ने तुरंत चुटकी ली, बहुत बड़े पुजारी बने हो? दिल्ली कब आना है? आकर फोन कर लीजिएगा। राजनाथ ने दिल्ली पहुंचकर फोन किया तो आदेश मिला कि कल सुबह राष्ट्रपति भवन पहुंच जाइएगा। राजनाथ ने पूछा, राष्ट्रपति भवन क्यों? इसपर अटल जी ने कहा, मूर्ख हैं क्या? अगले ही दिन राजनाथ सिंह केंद्र में कैबिनेट मंत्री बना दिए गए।

40 साल का राजनीतिक जीवन खुली किताब
अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने मंत्रिमंडल के प्रति विश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस के बाद प्रधानमंत्री के रूप में चर्चा का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा, पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करूंगा । भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता। अगर डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं। 40 साल का मेरा राजनीतिक जीवन खुली किताब है। कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए। नीयत पर शक नहीं होना चाहिए। मैंने यह खेल नहीं किया है। मैं आगे भी नहीं करूंगा। (28 मई 1996)


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