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अटल बिहारी वाजपेयीः ये हैं 'भारतरत्न' के कालजयी वाक्य जो संसद में गूजे थे

समय-समय पर ये बातें अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में कहीं और आज तक याद रखी जाती हैं।

By Vikas JangraEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 11:25 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 12:01 AM (IST)
अटल बिहारी वाजपेयीः ये हैं 'भारतरत्न' के कालजयी वाक्य जो संसद में गूजे थे
अटल बिहारी वाजपेयीः ये हैं 'भारतरत्न' के कालजयी वाक्य जो संसद में गूजे थे

नई दिल्ली [जेएनएन]। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का वाकचातुर्य किसी से छिपा नहीं है। संसद में उनकी भाषण कला का तो लोहा नेहरू तक ने माना था। कहा तो यहां तक जाता है कि कई बार तो नेहरू उन्हें सुनने के लिए सदन जाया करते थे। हम आपको यहां सदन में कहे कुछ ऐसे ही कालजयी वाक्यों को आपके लिए लाए हैं। समय-समय पर ये बातें अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में कहीं और आज तक याद रखी जाती हैं। 

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पाक के कब्जे वाले कश्मीर को भूल नहीं सकते
शायद स्थिति आ गई है, हम सुरक्षा परिषद को स्पष्ट कह दें, कश्मीर के बारे में आपका एक ही काम है कि आप पाकिस्तान के आक्रमण को हटाइए। अगर आप यह काम नहीं करते हैं तो फिर सुरक्षा परिषद को भारत विरोधी अभियान करने का एक मंच बनाने का जो पाकिस्तान का प्रयास है, उसमें हम साथ नहीं देंगे और अगर सुरक्षा परिषद कश्मीर के बारे में बहस करेगी तो भारत उस बहस से अलग रहने के लिए मजबूर हो जाएगा। कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है, हम उसको भूल नहीं सकते। (23 जून 1962 को राज्यसभा में भाषण)

चीनी शिकंजे से जमीन वापस ली जाए
यह बहस निरर्थक है, क्योंकि आक्रमण हो चुका है, चढ़ाई जारी है। चीन ने हमारी छाती पर पैर जमा दिए हैं। हम स्वयं को लज्जित-परास्त महसूस करते हैं। बहस इसपर होनी चाहिए कि चीनी शिकंजे से अपनी जमीन को वापस लेने के लिए हम क्या करने जा रहे हैं? (दो सितंबर 1963 को राज्यसभा में भाषण)


आजादी को सुरक्षित रखने वाले हथियार पवित्र
हम किसी भी स्रोत से हथियार प्राप्त करें, हमारी नीति समान रहेगी। हथियार न साम्यवादी हैं और न ही पूंजीवादी। वे न पूरब से संंबंधित है, न ही पश्चिम से। अगर ये हथियार हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं, हमारी आजादी को सुरक्षित रखते हैं तो वे हमारे लिए पवित्र हैं। (दो सितंबर 1963 को राज्यसभा में भाषण)

पाकिस्तान का अस्तित्व नहीं रहेगा
जिस दिन पाकिस्तान भारत के विरुद्ध शत्रुता छोड़ देगा, पाकिस्तान का अस्तित्व नहीं रहेगा। पाकिस्तान की नींव ही भारत के खिलाफ घृणा पर आधारित है। जिस दिन वह घृणा छोड़ देगा, यह विभाजन की दीवार शायद टिकेगी नहीं क्योंकि राज्य अलग हो गए हैं, मगर जनता तो एक है और मजहब बदलने से कौमियत नहीं बदलती। (16 अगस्त 1961 को लोकसभा में भाषण)

तिब्बत पर सरकार की नीति क्या है
भारत सरकार की तिब्बत के प्रति नीति क्या है? क्या हाथ पर हाथ रखे रहने की नीति है? क्या अनिश्चय की नीति है, क्या असहायता की नीति है? आखिर तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्वक हल करने के लिए हम कौन सा कदम उठा रहे हैं? दलाई लामा को जगह देने मात्र से तिब्बत की समस्या हल नहीं होती। (4 सितंबर 1959 को लोकसभा में भाषण)


हिंदुओं के कारण भी भारत सेकुलर
सेकुलरवाद पर बहस हो रही है। मुझे तो बड़ी खुशी है कि सेकुलरवाद को हम राष्ट्रीय बहस का विषय बनाना चाहते थे और इसमें हम सफल भी हो गए। मैंने नरसिंह राव जी का भाषण बड़े ध्यान से सुना है। कभी उन्होंने मजाक में गुुरु बनाया था। मैं मजाक में कह रहा हूं जो उस समय मैंने कहा था कि आज गुरु की जरूरत नहीं है, गुरु घंटाल की आवश्यकता है। अगर भारत सेकुलर है तो उसके पीछे एक कारण यह है कि भारत में 82 प्रतिशत हिंदू हैं। (12 जून 1996 को लोकसभा में भाषण)

धृतराष्ट्र को दुर्योधन-दुशासन ने घेर रखा है
अयोध्या एक चुनौती है जिसको अवसर में बदला जा सकता है। हम अवसर में बदलना चाहते हैं या नहीं, यह हमारी नीयत पर निर्भर करता है। यह सरकार ऐसा कर पाएगी, इसका मुझे भरोसा नहीं है। हां, मुझे इसका भरोसा नहीं है क्योंकि मैं नहीं जानता कि प्रधानमंत्री निर्णय नहीं ले पाते हैं या उनके सहयोगी उन्हें निर्णय नहीं लेने देते हैं। अगर धृतराष्ट्र को दुर्योधन और दुशासन ने सचमुच घेर रखा है-फिर अगर वे चाहें तो भी न्याय के पथ पर नहीं चल सकते हैं। (17 दिसंबर 1992 को लोकसभा में भाषण)

भाजपा से लड़िए, राम से नहीं
भाजपा से आपको एक दिन लडऩा है, मगर राम से मत लडि़ए। भाजपा से लडऩे का भी यह तरीका नहीं है कि प्रतिबंध लगा दो, उसकी मान्यता समाप्त कर दो, उसको चुनाव लडऩे से वंचित कर दो। (21 दिसंबर 1992 को लोकसभा में भाषण)

ऑल इंडिया रेडियो है या ऑल इंदिरा रेडियो
ऑल इंडिया रेडियो का न्यूज बुलेटिन जो 15 मिनट का होता है, उसमें 12 मिनट श्रीमती इंदिरा गांधी का गुणगान करने की इजाजत है। ऑल इंडिया का नाम बदलकर ऑल इंदिरा रेडियो कर दो क्योंकि उसकी विश्वसनीयता खत्म हो रही है। कोई सुनेगा नहीं। (8 मई 1981 को लोकसभा में भाषण)


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