अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद, किताबों, भाषा और महापुरुषों के बारे में कहा था...
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि संसद को समाज का दर्पण होना चाहिए। समाचार पत्रों को भी समाज का दर्पण होना चाहिए।
नई दिल्ली, जेएनएन। विद्वान और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी ने समय-समय पर संसद से लेकर सड़क तक के मसलों पर बेबाक टिप्पणी की है। उनकी बातें लोगों को याद हैं...
संसद: संसद को समाज का दर्पण होना चाहिए। समाचार पत्रों को भी समाज का दर्पण होना चाहिए। लेकिन अगर संसद से तथ्य छिपाए जाएंगे, अगर उन्मुक्त वाद-विवाद के लिए वातावरण नहीं होगा, अगर संख्या के बल पर बात गले के नीचे उतरवाने की कोशिश की जाएगी, तो संसद राष्ट्र के हृदय का एक स्पंदन नहीं रहेगी। अन्य संस्थाओं की तरह ही एक संस्था मात्र रह जाएगी, वह कानून पर मुहर लगाएगी, मगर देश में न तो कोई बुनियादी परिवर्तन ला सकेगी और न तो देश को अराजकता की ओर जाने से रोक सकेगी। इस अवमूल्यन को देखते हुए समाचार पत्रों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। लोकसभा में बैठकर कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं अपने दायित्व का पालन नहीं कर पाता। क्या बोलें? किसके सामने बोलें? जिन्हें सुनाना चाहते हैं वे सुनते नहीं। जो सुनते हैं वो समझ नहीं रहे हैं। जो समझ रहें हैं, वे जवाब नहीं दे रहे। संसद में वार्तालाप कम हो गया है। अपनी बात कहने की रस्म अदायगी ज्यादा हो रही है। ये खतरे की घंटी है। विधानसभाओं का तो और भी बुरा हाल है। उनका कार्यकाल घटाया जा रहा है। जितने अध्यादेश निकाले गए, ऑर्डिनेंस निकाले गए हैं, उन्हें भी पास नहीं करते। ये अध्यादेश टेबल पर रखे जाते हैं, स्वीकृत नहीं होते। अध्यादेश रद होते हैं, विधानसभा स्थगित हो जाती है, फिर अध्यादेश निकाल दिए जाते हैं। ऐसे में देश के मानस का प्रतिबिंबीकरण कैसे होगा?
किताब: वैसे खरीद कर पढ़ने की हमारी आदत भी कम है। हम उधार लेकर ज्यादा पढ़ते हैं। वर्ष में एक पुस्तक खरीदने का तो सबको संकल्प करना चाहिए। कम से कम एक- अब एक से तो कम नहीं हो सकती, आधी किताब तो आप खरीद नहीं सकते। हम घर का सामान खरीदते हैं, घर को सजाने के लिए वस्तुएं लाते हैं। क्या घर में कुछ पुस्तकें नहीं होनी चाहिए? पुस्तकों जैसा कोई साथी नहीं है- कोई मित्र नहीं है। पुस्तकें जड़ नहीं -चेतन होती हैं। पुस्तकें बोलती हैं- पुस्तकें गाती हैं, पुस्तकें पाठक को गुदगुदाती हैं। पुस्तकों में नवरस हैं। पुस्तकों में षड्रिपु हैं। जब चाहे तब आप उस रस का पान कर सकते हैं।
महापुरुष: मैं फिर कहता हूं, विचारों में मतभेद रहेंगे, लेकिन विचार भिन्नता के कारण, हम त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा करने वाले महापुरुषों के साथ अन्याय करने की गलती नहीं कर सकते, इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा।
भाषा: भाषाओं की अनेकता या बहुलता हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का परिचय देती हैं। बहुभाषी देश में आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में भाषा की उपयोगिता हम सभी जानते हैं। हमारे यहां यह बड़ा सुखद संयोग है कि हिंदी को सबसे पहले और सबसे अधिक समर्थन मिला, वह अहिंदी भाषा क्षेत्रों से मिला।