अटल जी को आखिरी प्रणाम, जिन्होंने समझाई मौन की ताकत
एक वक्त तो वह भी आया था जब कहीं न कहीं आपके लिए दूसरी भूमिका ढूंढी जा रही थी। लेकिन मैंने आपके चेहरे पर कभी दबाव नहीं देखा। मौन की ताकत को मैंने तभी पहचाना था।
अटल जी, आपको कैसे धन्यवाद दूं हर उस योगदान के लिए जो आपने समाज और देश को दिया। हर उस प्रयास के लिए जिससे भारतीय राजनीति और परिपक्वता की ओर बढ़ी। हर उस संदेश के लिए जिसने यह साबित किया कि मानवीयता सबसे उपर है। और हर उस क्षण के लिए जिसने व्यक्तिगत रूप से मुझे शब्दों और वाणी का मूल्य सिखाया। यह बताया कि जीवंतता ही जीवन को सार्थक बनाती है और धैर्य जीवन को सफल।
अटल जी, मुझे याद है वह पल जब मैं ने आपकी पार्टी के ही एक नेता के बारे में कुछ अप्रिय शब्द कहे थे। आपका चेहरा जो साधारणतया शांत होता था या चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कुराहट लिए होता था, वह एकबारगी सख्त हो गया था। वह मेरे लिए पहला मौका था जब आपने कहा था- 'अपने शब्द ठीक करो।' मैंने तत्काल आपसे क्षमा मांगी थी और आपने तुरंत भुला भी दिया था। अंतर्विरोधों को समेट कर रखने वाले इस व्यक्तित्व से शायद मैं पहली बार मिला था। आपका यही व्यक्तित्व सबसे जुदा था। यह सार्वजनिक है कि आपने अपनी पार्टी के एक करीबी नेता को भी माफी मांगने के लिए कहा था जब उन्होंने दूसरी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से थोड़ी अभद्रता दिखाई थी। इसी गुण ने तो आपको विराट बनाया था।
अटल जी, आप पार्टी के सर्वोच्च और सर्वस्वीकार्य नेता रहे। लेकिन ऐसे भी अवसर आए जब अंदरूनी स्तर पर कुछ दबाव उभरा। एक वक्त तो वह भी आया था जब कहीं न कहीं आपके लिए दूसरी भूमिका ढूंढी जा रही थी। लेकिन मैंने आपके चेहरे पर कभी दबाव नहीं देखा। मौन की ताकत को मैंने तभी पहचाना था। सभी जानते हैं कि पद की महत्वाकांक्षा ने कभी आपको नहीं जकड़ा। उस वक्त भी नहीं जब पार्टी के अंदर कवायद चल रही थी। आप चुप रहे और आपका धैर्य दूसरों पर हावी हो गया। शब्दों के बाजीगर तो आप रहे ही, चुप रहने की कला भी आपने बखूबी सिखाई। आपका धन्यवाद।
यह भी आपने ही बताया कि हर विवाद का अंत बातचीत और विमर्श ही है। आप अपने कमरे में बैठे पाकिस्तान से आने वाले फोन का इंतजार कर रहे थे। वह वक्त था जब पाकिस्तान से तल्खी फिर से बढ़ गई थी और वार्ता तक रुक गई थी। मुझे नहीं मालूम कि मध्यस्थ कौन था लेकिन फिर से वार्ता की शुरूआत का संकेत मिला था और आप खुश थे। विवादों को निपटाने का आपका यह सरल सहज रास्ता हर किसी को सिखाता है।
आपकी कविताओं में जीवन दर्शन और परेशानियों से जूझने का बल दिखता रहा है। मुझे तो आपकी जीवंतता और प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पद पर पहुंचने के बावजूद आपके स्वभाव की बाल सुलभता ने सिखाया। आवास की दीवार पर लगी दुर्लभ तस्वीर जिसमें भैरोसिंह शेखावत और लालकृष्ण आडवाणी भी आपके साथ है, आपने उसकी प्रति देने से मना कर दिया था। मैं ने मांगा और आपने सीधा जवाब दिया - नहीं मिलेगा। मैं ने थोड़ा हठ दिखाते हए कहा कि यह तो लेकर ही जाउंगा तो आपने कहा था- तुम हारोगे। दूसरे तीसरे दिन जब मैं ने आपसे कहा कि इसकी तीन प्रति बनाकर आपको दूंगा तो आप तैयार हो गए थे। व्यस्त दिनचर्या और राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में उलझे रहने के बावजूद यह बाल सुलभता, सहजता और चंचलता ही थी जिसने आपके व्यक्तित्व को और रोचक बना दिया था। काश मैं आपसे वह चंचलता उधार ले पाता।
1996 की बात है, आपके साथ गुजरात के राजकोट जाने का सौभाग्य मिला था। वहां जनता में उत्साह देखकर मैने कहा था- इस बार हल्दी लग जाएगी। आप चुप रहे। चुनाव नतीजों के बाद राष्ट्रपति भवन से आपके लिए चिट्ठी भी आ गई थी। आपको पता था कि वह सरकार अस्थायी है। लेकिन उसी दिन आपने यह भरोसा भी जता दिया था कि पांच साल के लिए भी चिट्ठी आएगी। वर्तमान की समझ और भविष्य के प्रति भरोसा रखने की समझ भी अतुलनीय थी। चौबीस दलों को साथ लेकर आप चले। हर किसी की भावना को समझा, हर किसी को इज्जत दी, सबकी सुनी और वही किया जो देश और समाज के लिए जरूरी था। सौम्य और सरल के साथ साथ एक निडर टीम लीडर होने की शर्त आपने सिखाई थी। अटल जी, आपको धन्यवाद और आखिरी प्रणाम।
- प्रशांत मिश्र।