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अपने चुटीले अंदाज़ से विरोधियों को ठहाके लगाने को मजबूर कर देते थे वाजपेयी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहसास कराया कि हिंदी में बोलना शर्मिंदगी का विषय नहीं है बल्कि गर्व का विषय है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 08:19 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 12:05 AM (IST)
अपने चुटीले अंदाज़ से विरोधियों को ठहाके लगाने को मजबूर कर देते थे वाजपेयी
अपने चुटीले अंदाज़ से विरोधियों को ठहाके लगाने को मजबूर कर देते थे वाजपेयी

नई दिल्ली, जागरण स्‍पेशल। भारत में लोकप्रिय नेता वही हो सकता है जिसकी हिंदी पर बेहतर पकड़ हो, जो लोगों के बीच उनके दुख दर्द उनकी बोली-बानी में प्रस्‍तुत करना जानता हो और उसकी बात लोगों के दिल को छू जाती हो। आजादी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे नेता रहे जिन्‍होंने हिंदी को लोकप्रिय बनाया। इन्‍होंने हिंदी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि गैर हिंदी क्षेत्रों और विदेश में भी लोगों को चाव से हिंदी को सुनने और पढ़ने के लिए विवश किया। यह अध्‍ययन का विषय हो सकता है कि अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की भाषण कला के कारण कितने गैर हिंदी भाषी लोगों ने हिंदी सीखी। दोनों नेताओं ने यह अहसास कराया कि हिंदी में बोलना शर्मिंदगी का विषय नहीं है, बल्कि गर्व का विषय है। 

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जनता की नब्‍ज को पहचानते थे वाजपेयी 
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व महज एक लोकप्रिय राजनेता का ही नहीं कवि हृदय वाले व्यक्ति का भी था। बताया जाता है कि जब ग्‍वालियर के गोरखी स्‍कूल में जब पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तब उन्‍होंने स्‍कूल में एक भाषण दिया वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ, तभी से उनकी भाषण कला धीरे-धीरे विकसित होती चली गई। उनकी विशिष्ट शैली की हिंदी ने उन्हें लोकप्रिय बनाया तो हिंदी को लोकप्रियता प्रदान करने का एक बड़ा श्रेय उन्हें जाता है। हर बात पर एक आशु कविता रच डालना अटल जी की आदत थी। वे इसी संवाद शैली में लोगों से रू-ब-रू होते थे। आजादी के बाद से पढ़े-लिखे सुसंस्कृत नेताओं की इस देश में एक लंबी परंपरा रही है, लेकिन वाजपेयी शायद इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने जनता को भाषाई संस्कार दिए।

पत्रकारिता से करियर शुरू करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे तो इसीलिए कि वह देश की नब्ज पहचानते थे। साल 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री रहते हए अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएन में अपना पहला भाषण हिन्दी में ही दिया था जो उस वक्त बेहद लोकप्रिय हुआ और पहली बार यूएन जैसे अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर भारत की राजभाषा गूंजी। यह पहला मौका था, जब संयुक्त राष्ट्र में भारत के किसी नेता ने हिंदी में भाषण दिया था और बाकी सदस्य देशों के लिए हिंदी से अन्य भाषाओं में अनुवाद की व्यवस्था की गई थी। इतना ही नहीं, भाषण खत्म होने के बाद यूएन में आए सभी देश के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर अटल बिहारी वाजपेयी का तालियों से स्वागत किया। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश देते अपने इस भाषण में उन्होंने बुनियादी मानवाधिकारों और रंगभेद जैसे तमाम गंभीर मुद्दों को उठाया था। बाद में एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने इसे अपने जीवन में सर्वाधिक प्रसन्नता का क्षण बताया।

गंभीर राजनीतिक विमर्श के साथ गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर 
संसदीय जीवन में उन्होंने यादगार भाषण ही नहीं दिए बल्कि अपने चुटीले अंदाज़ से विरोधियों तक को ठहाके लगाने को मजबूर कर दिया। भाषणों के दौरान सदस्यों की टोका-टाकी का वे कभी बुरा नहीं मानते थे बल्कि चुटीले अंदाज़ में कुछ ऐसा जवाब देते थे कि सामने वाला आदमी भी लाजवाब हो जाता था। उनके भाषणों में गंभीर राजनीतिक विमर्श के साथ गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर भी था। उनके भाषणों में बीच-बीच में ठहराव, हाथों की विभिन्‍न मुद्राएं, आंखों को बंद कर कंधे को झटकना उसे रोचक बना देता था।

वाजपेयी खुद पर भी हंसना जानते थे। संसद में उनका एक प्रसिद्ध डायलॉग था- 'अध्यक्ष महोदय 40 साल तक प्रतिपक्ष में रहा हूं, कभी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया।' एक बार वे गलती से बोल गए-' 40 साल तक प्रतिपक्ष में रहा हूं, कभी मर्यादाओं का पालन नहीं किया है।' लोकसभा में हंसी का सैलाब उमड़ पड़ा। अटलजी खुद भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए और बोले- 'अध्यक्ष महोदय, यह चमड़े की जुबान है, कभी-कभी फिसल जाती है।'इस बारे में वरिष्‍ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने बताया कि अटल जी के भाषण की अद्भुत कला थी। उन्हें यह कला अपने पिता से मिली थी। इसके लिए उन्हें कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी। वाजपेयी के भाषण में हास्य, विनोद और मुद्दे की बात हुआ करती थी। 

वाजपेयी बिना किसी पर्ची के बोलते थे और मुद्दों को सही समय पर सटीक तरीके से रखते थे, उनकी सभा में हर विचारधारा के लोग उन्हें सुनने आते थे। अटल बिहारी के व्यक्तित्व का प्रभाव ही था वो हारी हुई बाजी भी जीत लेते थे। उन्‍होंने बताया कि उनके भाषण का विषय कितना भी नीरस होता था, वो उन्हें रोचक बना देते थे और हंसते-हंसाते लोगों को समझा देते थे। विषय अगर पेचीदा होता तो वे मुहावरों और कहावतों के ज़रिए उसे सरल बना देते थे कि सुनने वाले को भी लगता था कि वो कोई नई बात कह रहे हैं। उनकी भाषण कला से प्रभावित होकर ही प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनका परिचय करवाते हुए कहा कि यह लड़का भविष्‍य में भारत का प्रधानमंत्री बनेगा।

लोकसभा में भाषण के लिए करते थे तैयारी 
वाजपेयी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा बताते हैं कि सार्वजनिक भाषणों के लिए वाजपेयी कोई ख़ास तैयारी नहीं करते थे, लेकिन लोकसभा का भाषण तैयार करने के लिए वो ख़ासी मेहनत किया करते थे। शक्ति के मुताबिक संसद के पुस्तकालय से पुस्तकें, पत्रिकाएं और अख़बार मंगवाकर वाजपेयी देर रात अपने भाषण पर काम करते थे। वो पॉइंट्स बनाते थे और उस पर सोचा करते थे। वो पूरा भाषण कभी नहीं लिखते थे, लेकिन उनके दिमाग़ में पूरा ख़ाका रहता था कि अगले दिन उन्हें लोकसभा में क्या-क्या बोलना है।

मैं वाजपेयी जैसा भाषण कभी नहीं दे पाया : आडवाणी 
भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने एक बार पत्रकार से बातचीत में बताया था कि जब अटल जी चार वर्ष तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके तो उन्होंने मुझसे अध्यक्ष बनने की पेशकश की। मैंने ये कहकर मना कर दिया कि मुझे हज़ारों की भीड़ के सामने आपकी तरह भाषण देना नहीं आता। उन्होंने कहा संसद में तो तुम अच्छा बोलते हो। मैंने कहा संसद में बोलना एक बात है और हज़ारों लोगों के सामने बोलना दूसरी बात। बाद में मैं पार्टी अध्यक्ष बना, लेकिन मुझे ताउम्र कॉम्पलेक्स रहा कि मैं वाजपेयी जैसा भाषण कभी नहीं दे पाया। यह अनायास नहीं है कि देश के पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खुद स्‍वीकार किया कि मैं प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बन सका क्‍योंकि मेरी पकड़ हिंदी पर नहीं थी।

नरेंद्र मोदी ने हिंदी को बनाया लोकप्रिय 
वाजपेयी की तरह ही वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने साथ संवाद करने वाले हर शख्स के साथ निजी और आत्मीय रिश्ता बना लेते हैं। उनकी यह क्षमता शायद उनकी सबसे अहम खूबियों में से एक है। वाजपेयी की तरह उन्‍होंने भी भारत ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी हिंदी को लोकप्रिय बनाया। देश-विेदेश में लोग उन्हें सुनते हैं, उनके साथ संवाद करते हैं, उनसे प्रेरित होते हैं और जोरदार तरीके से तमाम लोगों के बीच उनके संदेशों को साझा करते हैं। यहां तक कि कई लोग तो मोदी की तरह ही बनना चाहते हैं, साथ ही, कई अन्य उनसे सीखना चाहते हैं। यह बात न सिर्फ भारतीय संदर्भ में सच है, बल्कि ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर भी इसकी पुष्टि हुई है। इसका नमूना 'द वर्ल्ड लीडर्स ऑन फेसबुक (फेसबुक पर दुनिया के नेता)' नामक स्टडी में भी देखने को मिला है। यह स्टडी बर्सन कोहन एंड वोल्फे ने की है और इसे 2 मई 2018 को ट्विटर और सोशल मीडिया से जुड़ी अन्य साइट्स पर जारी किया गया।
चूंकि वाजपेयी कवि थे तो वे भाषण के दौरान अपनी बात कहने के लिए कई तरीकों को इस्‍तेमाल करते थे। कई बार उनके भाषण अभिधा में न होकर लक्षण और व्‍यंजना में होते थे। वाजपेयी के बनस्पित नरेंद्र मोदी अपनी बात को अभिधा में रखना पसंद करते हैं। यही कारण है कि हिंदी भाषी तो उनकी भाषण कला के मुरीद हैं, मगर गैर हिंदी हिंदी प्रदेशों के लोग उनकी बातों को आसानी से समझ लेते हैं।

भाषणों में श्रोताओं से बना लेते हैं संबंध 
मोदी की सबसे बड़ी और असाधारण बात उनकी भाषण कला है। वे अपनी इस कला से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करना जानते हैं। विकास और अन्य मुद्दों पर वे जितनी स्पष्टता और प्रभावी तरीके से अपनी बात रखते हैं कि बिना किसी तैयारी के उनका आशु भाषण भी लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। देश के अन्य नेताओं की तरह से लिखा हुआ भाषण नहीं पढ़ते हैं। उनकी विशेषता है कि वे अपनी वाक शैली से किसी भी प्रकार के श्रोता वर्ग से अपना संबंध बना लेते हैं। 

अचानक से पैदा नहीं हुआ है मोदी से यह अटूट जुड़ाव 
ऐसे में सवाल यह है कि वास्तविक जीवन और सोशल मीडिया दोनों स्तर पर आम लोगों से मोदी के इस जुड़ाव की क्या वजह है? इसका सीधा जवाब उनकी विश्वसनीयता है, जो उन्होंने पिछले कई दशकों में बनाई है। मोदी कुछ भी आधे-अधूरे मन से नहीं करते हैं और सिर्फ इसलिए कोई काम नहीं करते कि दूसरा ऐसा काम कर रहा है। इसके अलावा, वह इस कारण से भी कोई काम नहीं करते कि यह आसान काम है। मोदी के हर काम और प्रोजेक्ट में उनका दृढ़ विश्वास होता है।

सोशल मीडिया का बेहतर इस्‍तेमाल 
सोशल मीडिया का बेहतर इस्‍तेमाल और सार्वजनिक विमर्श को लोकतांत्रिक स्वरूप देने में इस माध्यम की क्षमता को पहचाने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय नेता हैं। अप्रसांगिक होने के डर से देश के बाकी नेताओं द्वारा सोशल मीडिया ज्‍वाइन करने के लिए मजबूर होने से काफी पहले मोदी ट्विटर और फेसबुक से जुड़े हुए थे। दरअसल, वे जनता और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के बीच सीधा संवाद करने में यकीन करते हैं। राष्ट्रीय नुमाइंदा और आवाज का दावेदार बनने से कई साल पहले मोदी ने ही सबसे पहले हर भारतीय को एक समान आवाज मुहैया कराने में तकनीक की ताकत की अहम भूमिका को पहचाना था।

बचपन से ही वाद विवाद प्रतियोगिताओं में लेते थे हिस्‍सा 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शानदार भाषण कला का विकास उनमें अचानक नहीं हुआ बल्कि बचपन में ही इसका बीजारोपण हो गया था। प्रधानमंत्री के स्कूली दिनों के शिक्षक रहे डॉ. प्रह्लाद पटेल ने बताया कि स्कूल स्तर से वाद विवाद प्रतियोगिताओं, सामूहिक परिचर्चा और नाटक जैसी पाठ्येत्तर गतिविधियों में हिस्सा लेते हुए वे इस कला में निपुण हुए। डॉ. पटेल ने बातचीत में बताया कि मैंने नरेंद्र मोदी को गुजराती और संस्कृत पढ़ाई है। दसवीं कक्षा तक कुछ वर्ष उन्हें पढ़ाया।

उन्होंने बताया कि स्कूली स्तर पर कोई भी पाठ्येत्तर गतिविधि होती तो ‘नरेन्द्र’का आग्रह रहता था कि उनका नाम पहले से ही इसमें लिख दिया जाए। खास तौर पर वाद विवाद प्रतियोगिता, सामूहिक परिचर्चा, नाटक के मंचन आदि में वे प्रारंभ से ही काफी सक्रियता से हिस्सा लेते थे। पटेल ने बताया ‘बच्चा आगे जाकर किस दिशा में जायेगा, इसका थोड़ा आभास बाल्यकाल में ही हो जाता है। बचपन के दिनों से ही नरेन्द्र में अच्छे वक्ता के गुण दिखने लगे थे। संस्कृत शिक्षक होने के नाते मैंने उन्हें संस्कृत पढ़ने और श्लोक याद करने की सलाह दी।’ संभवत: स्कूल के दिनों के इसी अभ्यास का परिणाम है कि नरेन्द्र मोदी के भाषणों में शब्दों का शानदार चयन और संस्कृत के श्लोकों एवं प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक दर्शन का समावेश मिलता है, जिसके कायल उनके समर्थक तो हैं हीं, विरोधी भी हैं।

भाषणों पर एक टीम करती है काम 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों का अध्‍ययन करने वाले शिव विश्वनाथन ने बताया कि एक पूरी टीम पीएम के भाषणों पर काम करती है। भाषण से पहले कैबिनेट मंत्रियों के इनपुट लिए जाते है। जिस विषय पर भाषण है, वहां के विशेषज्ञों के इनपुट्स भी डाले जाते है और विदेशों में रहने वाले भारतीयों के भी इनपुट्स को शामिल किया जाता है। जहां पर भाषण देना है, वहां का स्‍थानीय इनपुट देना उनकी भाषण की विशेषता है। उन्होने बताया कि एक रिसर्च टीम नरेंद्र मोदी के लिए दिन रात काम करती है। और उनके रिसर्च पर अपनी भाषा की जादूगरी से मोदी चार चांद लगा देते है। ऐसा जरूरी नहीं है कि वो मिली रिपोर्ट्स के आधार पर ही भाषण दें। वो खुद भी अध्ययन करके जाते है और संभल कर भाषण देने में विश्वास करते हैं। 
नरेंद्र मोदी की जीवनी ‘मैचलेस मोदी’ पर काम कर रहे सुधीर बिष्ट मानते हैं कि वित्‍त और कानून संबंधी विषयों पर वह केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से इनपुट जरूर लेते हैं। मोदी जेटली पर बहुत भरोसा करते हैं। दोनों के बीच इमरजेंसी के दौर से संबंध हैं। अगर बात रक्षा और आतंरिक सुरक्षा जैसे मसलों की हो तो मोदी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी बात जरूर करते हैं। आईटी और टेलिकॉम जैसे मसलों पर किसी अहम मंच से भाषण देने से पहले वह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र से इनपुट लेना पसंद करते हैं। 
जहां तक चुनावी रैलियों में भाषण की बात है कि तो मोदी किसी भी रैली को संबोधित करने से पहले सिर्फ इनपुट लेते हैं। वह किसी का लिखा भाषण नहीं पढ़ते। उन्हें धाराप्रवाह बोलना पसंद है। वह देश के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। पार्टी संगठन में काम करते हुए मोदी ने सारे देश को नापा हुआ है इसलिए वह अपने सुनने वालों से सीधा रिश्ता कायम करने में देर नहीं करते। वह रैली से ठीक 15 मिनट पहले अपनी टीम से ताजा अपडेट लेते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वे भाषण में सबसे ताजा सूचना तक मिली जानकारी को भी शामिल करें। इसके साथ वह इन रैलियों में जाने से पहले सोशल मीडिया में पिछले तीन-चार दिन की तमाम सूचनाओं की जानकारी भी लेते हैं। इन सबको समेट कर वह राजनीतिक रैलियों का भाषण तैयार करते हैं। यही कारण है कि पीएम लोगों का दिल जीतने में सफल होते हैं और उन भाषणों की चर्चा लंबे समय तक होती है। 

पूरी दुनिया को बनाया मुरीद 

वाजपेयी की तरह ही संयुक्‍त राष्‍ट्र में हिंदी में भाषण देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया। यहां तक कि पाकिस्तानी समाचार पत्र ने मोदी की भाषण कला की प्रशंसा करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक अधिवेशन में उनके भाषण ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के संबोधन को फीका कर दिया।  


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