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Assembly Election Results 2021: जानें कैसे क्षेत्रीय दलों के बढ़ते आधार में गुम हुई कांग्रेस की सियासी जमीन

असम और केरल में कांग्रेस के फीके प्रदर्शन में क्षेत्रीय दलों ने जहां कुछ हद तक भूमिका निभाई वहीं पश्चिम बंगाल में ममता की लहर में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक भी उड़ गया और पार्टी सूबे में दयनीय मुकाम पर पहुंच गई है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 04 May 2021 12:54 PM (IST)Updated: Tue, 04 May 2021 12:54 PM (IST)
Assembly Election Results 2021:  जानें कैसे क्षेत्रीय दलों के बढ़ते आधार में गुम हुई कांग्रेस की सियासी जमीन
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की सियासी जमीन ही नहीं उसकी सियासत भी गुम होती जा रही है।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद एक बार फिर साफ हो गया है कि क्षेत्रीय दलों के लगातार बढ़ते प्रभाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की सियासी जमीन ही नहीं उसकी सियासत भी गुम होती जा रही है। इन राज्यों के चुनाव में करीब-करीब सभी जगह क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को प्रत्यक्ष या परोक्ष नुकसान पहुंचाते हुए उसे सत्ता की दहलीज से दूर रखा है। असम और केरल में कांग्रेस के फीके प्रदर्शन में क्षेत्रीय दलों ने जहां कुछ हद तक भूमिका निभाई, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता की लहर में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक भी उड़ गया और पार्टी सूबे में दयनीय मुकाम पर पहुंच गई है। 

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पांच राज्यों के चुनाव से फिर साबित, क्षेत्रीय दल कांग्रेस की सत्ता की उम्मीदों को लगा रहे पलीता 

बंगाल में कांग्रेस का यह हाल तब हुआ है जब उसने वामपंथी दलों और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ चुनावी गठबंधन किया था। बंगाल की निर्वतमान विधानसभा में मुख्य विपक्षी की हैसियत वाली कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि मौजूदा चुनाव में बमुश्किल एक विधायक ने उसका खाता भर खोला है। इस हालत में पहुंची कांग्रेस को जाहिर तौर पर यह बात तो टीस देती ही रहेगी कि एक समय बंगाल में उसकी प्रमुख नेता रहीं ममता के आगे सूबे में वह कहीं नहीं ठहरती। 

इसी तरह असम में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में खड़ी की गई नई क्षेत्रीय पार्टियों असम जातीय परिषद और राइजोर दल ने सैद्धांतिक रूप से तो भाजपा की खिलाफत की लेकिन वोटों के गणित में उन्होंने विपक्ष के वोट में बंटवारा किया। इसका सीधे नुकसान कांग्रेस को हुआ और भाजपा को इसका फायदा मिल गया क्योंकि वोट प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस की अगुआई वाले महाजोत गठबंधन और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के बीच एक फीसद से भी कम का अंतर रहा।

वैसे राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने के बजाय गठबंधन पर ज्यादा निर्भरता भी कांग्रेस को चुनाव दर चुनाव नुकसान पहुंचा रही है। कांग्रेस ने असम में बदरूदीन अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ से गठबंधन कर जहां अपना नुकसान किया, वहीं अजमल को इसका फायदा मिल गया। 

बंगाल और त्रिपुरा में वामपंथी किला ध्वस्त होने के बाद माकपा की हैसियत भी एक क्षेत्रीय पार्टी से ज्यादा नहीं रह गई और यहां भी कांग्रेस पिनरई विजयन के खिलाफ तमाम मुद्दों के होते हुए हर पांच साल में सत्ता बदलने के सूबे के दस्तूर को इस बार तोड़ नहीं पाई। पांच राज्यों के चुनाव के दौरान कुछ सूबों के उपचुनाव के नतीजे भी क्षेत्रीय पार्टियों के बढ़ते दबदबे से कांग्रेस को हो रहे नुकसान का संकेत देते हैं। 

तेलंगाना के नागार्जुन सागर विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस के स्थानीय दिग्गज के जना रेड्डी टीआरएस के नए चेहरे के मुकाबले हार गए, जबकि पिछले पांच-छह चुनाव से यह कांग्रेस का गढ़ था। 2014 में नए तेलंगाना राज्य के गठन के बाद कांग्रेस को इस सूबे में अपनी सियासी पकड़़ बनाए रखने की उम्मीद की थी, मगर क्षेत्रीय दल तेलंगाना राष्ट्र समिति पिछले दो चुनाव से लगातार अपना आधार बढ़ाते हुए एकछत्र राज कर रहा है। वहीं कांग्रेस अब तेलंगाना में वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। 

आंध्र प्रदेश का बंटवारा कर इसी तेलंगाना का विरोध करते हुए जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़ी और नतीजा यह हुआ कि आज जगन अपनी क्षेत्रीय पार्टी के बूते आंध्र के मुख्यमंत्री हैं तो कांग्रेस का सूबे में अस्तित्व ही लगभग नदारद है। इसी तरह पुडुचेरी में कांग्रेस से अलग होकर क्षेत्रीय पार्टी बनाने वाले एन रंगास्वामी ने एनडीए के साथ गठबंधन कर सूबे की सत्ता हासिल कर ली है। 


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