Article 370: भारत के एकीकरण में नेहरू-पटेल की भूमिका पर पक्ष-विपक्ष में तीखी तकरार
अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के प्रस्ताव पर लोकसभा में हुई पूरी चर्चा में नेहरू-पटेल की भूमिका को लेकर पक्ष और विपक्ष में तीखी तकरार हुई।
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। भारत के एकीकरण में जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका को लेकर कांग्रेस और भाजपा में चलती रही जंग एक बार फिर सामने आ गई। जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के प्रस्ताव पर लोकसभा में हुई पूरी चर्चा में नेहरू-पटेल की भूमिका को लेकर पक्ष और विपक्ष में तीखी तकरार हुई।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने जम्मू कश्मीर के भारत में पूरी तरह विलय न होने का जिम्मेदार प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को ठहराया तो कांग्रेस की ओर से जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतों को भी भारत का हिस्सा बनाए जाने का श्रेय दिया गया। सत्तापक्ष की ओर से सीधा आरोप लगा कि कांग्रेस जानबूझकर पटेल को कमतर बनाने का प्रयास करती रही है और वह आज भी जारी है।
अनुच्छेद 370 समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव और जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन और आरक्षण का विधेयक पर सदन में चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने प्रारंभ से ही जम्मू कश्मीर के भारत में विलय में पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की अहमियत का उल्लेख किया।
तिवारी ने कहा कि जम्मू कश्मीर को पाक कबायलियों से आजाद कराने के बाद जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल करते वक्त 'इंस्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन' में भारत ने कुछ वायदे किये थे। उसके तहत ही 17 नवंबर को संविधान में धारा 370 को शामिल किया गया।
जैसे ही तिवारी ने जम्मू कश्मीर समेत हैदराबाद और जूनागढ़ को भारत में शामिल करने कराने का श्रेय नेहरू को दिया तो गृहमंत्री अमित शाह ने तिवारी के भाषण के बीच में खड़े होकर कहा, 'आप सरदार पटेल की भूमिका को नजरअंदाज कर रहे हैं।'
शाह ने बाजी पलटते हुए कहा- 'मैं मानता हूं कि नेहरू के ही नेतृत्व में भारतीय सेना वहां गई थी लेकिन यह भी सच है कि नेहरू के ही फैसले से युद्धविराम की घोषणा कर दी गई थी और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर उनके कब्जे में चला गया। अगर ऐसा नहीं होता तो आज पीओके भी हमारा भाग होता।'
कांग्रेस के शशि थरूर ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय में नेहरू की भूमिका पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि नेहरू पर सत्ता पक्ष जो लानत मलानत कर रहा है वह तथ्यों के साथ खिलवाड़ है। यह गलत है कि नेहरू ने अकेले जम्मू कश्मीर को शामिल किया।... 15-16 अक्टूबर 1949 को नेहरू, पटेल और शेख अब्दुल्ला के बीच बैठक हुई। उस वक्त के कश्मीर मामलों के मंत्री एन गोपाल स्वामी अयंगर ने नोट्स लिये। बाद में यह ब्यौरा पटेल को भेजा गया और पूछा कि यदि वे इससे सहमत हैं तो आगे बढ़ा जाए।
पटेल की तरफ से 17 अक्टूबर को सहमति आई और उसके बाद उसी दिन ही संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया। इस पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि माना कि नेहरू को अब्दुल्ला की चिंता नहीं थी या कश्मीर की चिंता थी। लेकिन 1953 में उन्हें गिरफ्तार कर कोडाइकनाल भेज दिया गया। उन्होंने इस मामले पर इंदिरा जी को एक पत्र लिखा।
सिंह ने कांग्रेस के जयराम रमेश की हालिया पुस्तक 'इंटरवाइंड लाइव्स : पीएन हक्सर एंड इंदिरा गांधी' का हवाला देते हुए कहा कि इंदिरा उस वक्त स्विटजरलैंड में थी और नेहरू ने उन्हें लिखा कि उन्हें दुख है कि शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करना पड़ा।...
इससे पहले अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने आजादी के वक्त रियासतों के भारत में विलय के लिए कांग्रेस के मनीष तिवारी पर पटेल के काम को नजरअंदाज करने का सीधा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जूनागढ़ और हैदराबाद को भारत में जोड़ने के लिए मनीष ने पटेल के योगदान को जिस तरह से नकारा है, इससे निश्चय ही सरदार वल्लभ भाई पटेल की आत्मा को दुख पहुंचा होगा।
चर्चा में भाग लेते हुए संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि अगर हैदराबाद को नेहरू के हाथ में दिया होता तो आज हैदराबाद की स्थिति विपरीत होती। पटेल की वजह से ही जूनागढ़ और हैदराबाद भारत का हिस्सा बने। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने एतिहासिक भूल की है।
बाद में चर्चा में भाग लेते हुए केंद्रीय संचार, इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि आजादी के वक्त 562 रियासतों में से 561 का मामला सरदार पटेल ने संभाला। इन सभी रियासतों में आज तक कोई दिक्कत नहीं आई। लेकिन नेहरू ने केवल एक जम्मू कश्मीर का मामला संभाला जिसमें आज तक गड़बडी़ चल रही है।
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