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अमेरिका को नहीं भा रही मोदी-पुतिन की दोस्ती, भारत एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदेगा

अपने सुरक्षा दायरे को मजबूत बनाने के लिए भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने जा रहा है

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 30 Apr 2018 08:16 PM (IST)Updated: Tue, 01 May 2018 10:30 AM (IST)
अमेरिका को नहीं भा रही मोदी-पुतिन की दोस्ती, भारत एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदेगा
अमेरिका को नहीं भा रही मोदी-पुतिन की दोस्ती, भारत एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदेगा

नई दिल्ली, प्रेट्र। अपने सुरक्षा दायरे को मजबूत बनाने के लिए भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने जा रहा है। हालांकि दोनों देशों के बीच इसके लिए सहमति बन चुकी है, लेकिन अभी औपचारिक समझौता नहीं हो सका है। उम्मीद है कि इसी साल समझौते को अंतिम रूप दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन के साथ सितंबर या फिर अक्टूबर में शिखर वार्ता होनी है, उससे पहले इस अहम समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं।

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-सितंबर या फिर अक्टूबर में दोनों की बैठक होने की संभावना

-अमेरिका ने दोनों देशों को धमकाने के लिए बनाया है काटसा कानून

एस-400 मिसाइल सिस्टम एस-300 का परिष्कृत रूप है। भारत इसे चार हजार किमी लंबी चीनी सीमा पर तैनात करने के लिए खरीद रहा है। इसकी कीमत 40 हजार करोड़ रुपये है। इस सिस्टम की खास बात यह है कि हवा में चार सौ किमी दूर से ही यह दुश्मन की मिसाइल, लड़ाकू विमान व ड्रोन को यह नेस्तनाबूद कर सकता है।

अमेरिका को नहीं भा रही दोस्ती

अमेरिका ने जनवरी में काटसा कानून को प्रभावी बना दिया है। इसके जरिये वह रूस व उससे दोस्ती रखने वाले देशों पर शिकंजा कसना चाहता है। ऐसे में भारत व रूस की इस डील के बाद अमेरिका की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक है। काटसा का जो दायरा है, उसके हिसाब से भारत को भी एस-400 समझौता सिरे चढ़ने के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि भारत के मामले में अमेरिकी सरकार खुद सशंकित है। रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस संसद में कह चुके हैं कि भारत पर प्रतिबंध अमेरिका के खुद लिए घातक हो सकते हैं।

चीन है पहला खरीदार

रूस के एस-4000 मिसाइल सिस्टम का पहला विदेशी खरीदार चीन है। चीन इसे रूस से हासिल करके अपनी सीमा पर तैनात करने की कार्यवाही कर रहा है। चीन की सरकार ने रूस से अर्सा पहले ही यह सिस्टम खरीद लिया था। जाहिर है कि इसके बाद भारत के लिए भी खुद को चाकचौबंद करना जरूरी हो गया है। ऐसे में उसे भी एस-400 जैसा या फिर उससे बेहतर सिस्टम सीमा पर लगाना होगा। भारत व रूस के बीच इस आशय का समझौता 2016 में हुआ था जबकि चीन ने 2014 में ही रूस से इसे खरीदने का करार कर लिया था।


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