अभी गठबंधन की मशक्कत नहीं संगठन पर फोकस करेगी राहुल गांधी की कांग्रेस
कांग्रेस का यह भी मानना है कि अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक हालातों के हिसाब से चुनावी गठबंधन की दशा-दिशा तय होगी।
नई दिल्ली, संजय मिश्र। अपनी राजनीतिक वापसी की राह तलाश रही कांग्रेस इस साल चुनावी गठबंधन पर मशक्कत करने की बजाय उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पार्टी की जमीन बनाने की कसरत पर जोर देगी। इसीलिए समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के अगले आम चुनाव में गठबंधन नहीं करने के एलान को लेकर कांग्रेस ज्यादा बेचैन नहीं है।
कांग्रेस का यह भी मानना है कि अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक हालातों के हिसाब से चुनावी गठबंधन की दशा-दिशा तय होगी। इसलिए अभी से गठबंधन की सियासत में उलझने की बजाय इन राज्यों में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लक्ष्य पर फोकस करना ज्यादा अहम है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि केंद्र की भाजपा सरकार जिस तरह विपक्षी दलों के नेताओं को केंद्रीय एजेंसियों के सहारे घेरने में लगी है, उसमें कोई भी क्षेत्रीय दल चुनाव से इतना पहले गठबंधन का जोखिम नहीं लेगा। अखिलेश की गठबंधन पर ताजा नकारात्मक नजरिये को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
सपा के रुख से विपक्षी गोलबंदी के प्रयासों पर प्रतिकूल असर होने की बात से भी पार्टी सहमत नहीं है। इस बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता आरपीएन सिंह ने कहा कि हर पार्टी को अपनी राजनीतिक दिशा तय करने का अधिकार है। जहां तक 2019 के लिए गठबंधन की बात है तो इसमें अभी एक साल से ज्यादा वक्त है। जब चुनाव आएगा तब कांग्रेस इस बारे में बातचीत करेगी। आरपीएन के इस बयान से स्पष्ट है कि पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के पहले शुरू हुई विपक्षी गोलबंदी की पहल को पार्टी इस साल सीमित दायरे में ही रखने की कोशिश करेगी। सरकार को संसद में घेरने से लेकर बड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर जरूरत के हिसाब से ही विपक्षी एकता जीवंत बने रहने का संदेश देने का प्रयास होगा।
उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े सूबों में कांग्रेस तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी बन चुकी है। इस हालत में अभी से गठबंधन का संदेश जाने से इन सूबों के संगठन की हालत और पतली हो सकती है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि चुनावी गठबंधन में संभावित सीटों की तस्वीर का कार्यकर्ताओं को अनुमान होता है। ऐसे में गठबंधन होने का संदेश जाते ही कार्यकर्ता घर बैठ जाएगा और कोई भी पार्टी ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। अखिलेश के गठबंधन पर बयान को इस सियासी संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए और कांग्रेस पर भी यही बात लागू होती है।
लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का उत्तरप्रदेश में लगभग सफाया हो चुका है। ऐसे में पार्टी के सामने सूबे में संगठन को चुनावी मुकाबले में दम दिखाने लायक बनाने की मुश्किल चुनौती है। बिहार में भी लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद बनी नई राजनीतिक परिस्थितियों में अपनी ताकत में इजाफा करने की पार्टी कोशिश करेगी, ताकि गठबंधन में पहले से ज्यादा सीटें हासिल की जा सके।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी मोर्चा में से किसी एक को चुनने की मशक्कत से कांग्रेस को जूझना है। इन तीनों राज्यों के मुकाबले झारखंड में पार्टी की स्थिति थोड़ी बेहतर है। इसीलिए झारखंड मुक्ति मोर्चा से अच्छे रिश्तों के बाद भी जनाधार बढ़ाने के लिए कांग्रेस संयुक्त राजनीतिक कार्यक्रमों से परहेज करने की रणनीति अपना रही है।
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