राज्यों के ढुलमुल रवैये से जानलेवा बना वायु प्रदूषण, केंद्र से पैसे लेकर भी कुछ नहीं किया
केंद्र सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 23 राज्यों को पैसा और कार्ययोजना दोनों मुहैया करा चुकी है। अब तक किसी राज्य ने कोई काम शुरू नहीं किया है।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर भले ही जानलेवा बना हुआ है, लेकिन राज्यों का रवैया इसे लेकर अब भी ढुलमुल है। यह स्थिति तब है, जब केंद्र सरकार इससे निपटने के लिए 23 राज्यों को पैसा और कार्ययोजना दोनों मुहैया करा चुकी है। बावजूद इसके अब तक किसी राज्य ने इसे लेकर कोई काम शुरू नहीं किया है। और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि एक साल के अंदर केंद्र से भी कोई पूछताछ नहीं हुई।
दिल्ली-एनसीआर की स्थिति प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब
दिल्ली-एनसीआर की स्थिति प्रदूषण के लिहाज से बेहद खराब है। यहां प्रदूषण के कारकों में कुदरती धूल, कोहरा और मंद हवा ही नहीं बल्कि मानव निर्मित गतिविधियां भी शामिल हैं। सर्दियों में तो दिल्ली-एनसीआर की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है। इस स्थिति के लिए 93 फीसद तक मानव गतिविधियां ही जिम्मेदार होती हैं। विडंबना यह कि यहां की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि प्रदूषक तत्व स्वयं से छंट भी नहीं पाते। आइआइटी कानपुर, आइआइटी दिल्ली और आइआइटी पुणे (दिल्ली शाखा) के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार संयुक्त रिसर्च पेपर में यह बात कही गई है।
राज्यों को दिया गया था 132 बिंदुओं का एक्शन प्लान
राज्यों को जो प्लान दिया गया था, वह करीब 132 बिंदुओं का एक्शन प्लान था। इसमें वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर रोकथाम से लेकर धूल से होने वाले प्रदूषण और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण, बायोमास जलाने से होने वाले प्रदूषण आदि से निपटने की पूरी योजना है।
120 दिनों में सभी कामों पर अमल करना था
खास बात यह है कि जो प्लान दिया गया है, उनमें अधिकतम 120 दिनों में सभी कामों पर अमल करना था। लेकिन इस बीच पत्ता तक नहीं हिला।
संसद में उठे सवाल, तो राज्यों के ढुलमुल रवैये का पता चला
मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक राज्यों के रवैये का पता तब चला, जब संसद में उठ रहे सवालों के बीच राज्यों से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी ली गई। इस दौरान पता चला कि ज्यादातर राज्यों ने अब तक योजना के तहत कोई भी काम नहीं किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्टो के आधार पर शहरों का चयन
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना (एनसीएपी) बनाई है। 23 राज्यों के 122 शहरों को इसमें शामिल किया है। खास बात यह है कि इन शहरों का चयन विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 और 2018 की उन रिपोर्टो के आधार पर किया गया है, जिनमें वायु प्रदूषण के चलते लोगों की हो रही मौत और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चेताया गया था। इन शहरों में वायु की गुणवत्ता भी मानकों के अनुरूप नहीं है। बता दें कि स्वच्छ वायु की गुणवत्ता का निर्धारण पीएम-10 और पीएम 2.5 के स्तर पर होता है। जिसमें पीएम-10 का स्तर 100 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से नीचे और पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से कम होना चाहिए।
किस शहर को मिला कितना पैसा
-योजना के तहत 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 28 शहरों को 10-10 करोड़ रुपये दिए गए।
-पांच से 10 लाख की आबादी वाले प्रत्येक शहर को 20 लाख रुपये दिए गए।
-पांच लाख से कम आबादी वाले प्रत्येक शहर को 10 लाख रुपये दिए गए।
-2024 तक पीएम-10 और पीएम-2.5 के स्तर को 20 से 30 फीसद तक कम करने का लक्ष्य दिया गया।
ये प्रमुख शहर हैं योजना में शामिल
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना में दिल्ली, मुंबई, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, वाराणसी, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, पटना, रायपुर, विजयवाड़ा, सूरत, भोपाल, ग्वालियर, जयपुर, जोधपुर, कोटा, आगरा, प्रयागराज, आदि शहर शामिल हैं। इस योजना में उत्तर प्रदेश के कुल 15 शहरों को, पंजाब के नौ, मध्य प्रदेश के छह, बिहार के तीन और झारखंड के एक (धनबाद) शहर को शामिल किया गया है।