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जम्मू के साथ 70 साल पुराना सियासी भेदभाव दूर करेगा चुनाव आयोग, जानिए, कैसे

प्रस्तावित परिसीमन में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सात सीटें बढ़ने की उम्मीद है। यह सीटें संभवत जम्मू संभाग में ही बढ़ेंगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 09:10 PM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 09:10 PM (IST)
जम्मू के साथ 70 साल पुराना सियासी भेदभाव दूर करेगा चुनाव आयोग, जानिए, कैसे
जम्मू के साथ 70 साल पुराना सियासी भेदभाव दूर करेगा चुनाव आयोग, जानिए, कैसे

राज्य ब्यूरो, जम्मू। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में बदलने जा रही राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में जम्मू संभाग के साथ बीते 70 साल से चला आ रहा राजनीतिक भेदभाव समाप्त होने की पूरी उम्मीद है। 31 अक्टूबर के बाद भारतीय चुनाव आयोग राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। प्रस्तावित परिसीमन में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सात सीटें बढ़ने की उम्मीद है। यह सीटें संभवत: जम्मू संभाग में ही बढ़ेंगी।

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प्रस्तावित परिसीमन 2011 की जनगणना के मुताबिक होगा

स्थानीय भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और अन्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित परिसीमन 2011 की जनगणना के मुताबिक होगा। इसके आधार पर जम्मू संभाग की आबादी 69,07,623 है, जबकि कश्मीर की आबादी 53,50,811 है।

चुनाव आयोग की निगरानी में होगा जम्मू-कश्मीर में परिसीमन

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत चुनाव आयोग केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में परिसीमन करने के लिए प्राधिकृत है। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य में जिसका लद्दाख भी एक हिस्सा है, की विधानसभा में गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित 24 सीटों समेत कुल 111 सीटें हैं। इनमें दो सीटें नामांकन कोटे की हैं। शेष 87 सीटों में चार लद्दाख, 46 कश्मीर और 37 जम्मू संभाग में हैं। इन्हीं 87 सीटों के लिए चुनाव होता है।

आबादी और क्षेत्रफल में कम होने के बावजूद शासन की बागडोर कश्मीरी मुस्लिमों के हाथ में रही

पहले लद्दाख को भी कश्मीर का हिस्सा माना जाता था। इस तरह से कश्मीर में 50 सीटें होती थी। इसका फायदा हमेशा कश्मीर केंद्रित सियासत करने वाली नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस समेत अन्य दलों ने लिया। हमेशा मुख्यमंत्री कश्मीर का बना और शासन की बागडोर कश्मीरी मुस्लिमों के हाथ में रही। ऐसा तब जब कश्मीर में आबादी और क्षेत्रफल कम है। इससे जम्मू और लद्दाख राजनीतिक, विकास और आर्थिक मद्दों पर उपेक्षित होते रहे। इसके चलते जम्मू में कई बार परिसीमन की मांग उठी, लेकिन कश्मीरी नेतृत्व ने इसे हमेशा नकारा।

..तो ऐसी होगी विधानसभा

जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार प्रो. हरि ओम ने कहा कि अब जम्मू-कश्मीर की प्रशासनिक, राजनैतिक और भौगोलिक व्यवस्था पूरी तरह बदलने जा रही है। अगर पारदर्शी तरीके से बिना किसी दुराग्रह के परिसीमन होता है तो जम्मू में सीटें बढ़ेंगी। ऐसे में जम्मू संभाग में 44 सीटें हो जाएंगी। इससे राजनीतिक असंतुलन कम हो जाएगा। इसके अलावा भाजपा ने हमेशा जम्मू के साथ राजनीतिक पक्षपात दूर करने का भी यकीन दिलाया है और वह चाहेगी कि उसका यह वादा पूरा हो।

केंद्र के लिए अब कोई मुश्किल नहीं

प्रो. हरि ओम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य संविधान अब समाप्त हो चुका है। केंद्र शासित जम्मू कश्मीर अब पूरी तरह से केंद्र सरकार और भारतीय संविधान के दायरे में है। इसलिए जम्मू-कश्मीर संविधान के नियमों और प्रावधानों की अब कोई अहमियत नहीं है। इसलिए परिसीमन कराने में कोई मुश्किल नहीं है।

आखिरी बार 1995-96 में हुआ था परिसीमन

जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार परिसीमन की प्रक्रिया वर्ष 1995-96 में जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 141 और 47 के तहत हुई थी। वर्ष 2002 में जम्मू-कश्मीर में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1957 और जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 47 की धारा तीन में संशोधन कर राज्य में परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी थी।


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