प्रवासी भारतीय सम्मेलन 2019 : काशी में बोले भारतवंशी, भोजपुरी अब भी हमारी माई
पंद्रहवें प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान विश्व के 193 देशों के 5802 प्रतिनिधि शामिल होने विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी पहुंचे हैं।
[अभिषेक शर्मा],वाराणसी। पंद्रहवें प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान विश्व के 193 देशों के 5802 प्रतिनिधि शामिल होने विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी पहुंचे हैं। तीन दिवसीय आयोजन के क्रम में जहां पहले दिन युवा भारतवंशियों ने अपनी मेधा का परिचय देते हुए दो सत्रों में सार्थक परिचर्चा की वहीं दूसरे दिन प्रवासी और काशीवासी अपने बीच भारतवंशी मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ को पाकर अभिभूत नजर आए। प्रविंद जगन्नाथ के पूर्वज भी कई पीढियों पूर्व उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रसड़ा तहसील से मजदूर बनकर गए थे मगर आज यह परिवार वहां की शीर्ष राजनीतिक हस्ती है।
अपने भाषण में भी उन्होंने भाषा और बोली के संरक्षण से ही संस्कृति संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए मॉरीशस में भोजपुरी सम्मेलन जैसे आयोजनों की जानकारी देकर पूर्वांचल से खुद और भारतवंशियों को जोड़ा। प्रवासी भारतीयों का यह अब तक का सबसे बड़ा महाकुंभ माना जा रहा है। भारतवंशियों ने इस दौरान अपने अनुभवों को भी साझा किया तो अपनी संस्कृति और संस्कारों के संरक्षण के लिए बोली और भाषा के साथ ही भारत सरकार से भी अपेक्षाएं जाहिर कीं। सबसे अधिक इस बार आयोजन में तीन सौ से अधिक मॉरीशस के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।
मजदूर से मालिक तक का सफर
आज से 184 वर्ष पहले जिस देश में कुली और मजदूर के रूप में मॉरीशस भारतीय गए थे, आज उन्हीं के वशंज प्रधानमंत्री तक बन रहे हैं। ये सब इतना आसान नहीं था मगर भारतीयों ने यह सब आज हासिल किया है। 2 अगस्त 1834 में तत्कालीन कलकत्ता से चला जहाज 39 दिनों की यात्रा कर मॉरीशस के पोर्ट लुईस बंदरगाह पहुंचा। एटलस नामक जहाज में बिहार के 36 कुली थे, जिन्हें अंग्रेजों के गन्ने की खेतों और कारखाने में काम करना था। ये एक एंग्रीमेंट के तहत पांच साल के लिए यहां आए थे वो भी पांच रुपये प्रति माह में। इस कारण इन्हें गिरमिटिया कुली भी कहा जाता था। इनके वेतन में से प्रति माह एक रुपया इसलिए काटा जाता था ताकि वहां से वापस भारत जाएं तो अंग्रेजों को एक भी पैसा खर्च न करना पड़े।
1834 से 1924 तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों से 451746 कुली मॉरीशस गए। इनमें से अधिकतर का विवरण दस्तावेज के रुप मॉरीशस के महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट में संजो कर रखा गया है। ताकि आज के मॉरीशसवासियों को पता चल सके कि उनके वशंज कब और भारत के किस गांव से यहां पर आए थे। इसी दस्तावेज के आधार पर चौथी और पांचवीं पीढ़ी के लोग भारत में अपनी जड़ों को खोजने आते रहे हैं। मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ ने भोजपुरी बोली और हिंदी के संवादों से समूची सभा को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि भाषा नहीं तो संस्कृति भी सुरक्षित नहीं है। मॉरीशस में भारतीय संस्कृति, मूल्य और परंपरा के जीवित रहने की एक बड़ी वजह भाषा और बोली की जीवंतता भी है।
किए सवाल दिए सुझाव
प्रवासी भारतीयों ने आयोजन के पहले दिन मंच पर केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को देखा तो अपने भी मन की बात कहने से खुद को नहीं रोक सके। आस्ट्रेलिया से आए नवल किशोर सिंह ने ग्रामीण सड़कों की गुणवत्ता और कारोबारी सहूलियत पर सरकारी पहल करने की अपील की तो वहीं जापान से आए सौरभ शर्मा ने न्यूक्लियर एनर्जी में युवाओं को मौका देने के लिए सरकारी पहल को जरूरी बताया। नीदरलैंड की डा. नूपुर कोहली ने युवाओं के लिए शिक्षा और सीखने के अवसरों को और प्रगाढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया। वहीं सिलिकॉन वैली की नंदिनी टंडन ने आपसी भारतीय समूहों के योगदान को लेकर भी अपने सुझाव दिए।
बोली भाषा को भी महत्व देने की लंबी परिचर्चा का दौर चला जिसमें अमेरिका के राकेश शर्मा ने हिंदी को सबल बनाने की जरूरतों को लेकर अपने विचार साझा किए। दूसरी ओर आस्ट्रेलिया की विदिशा ने भारत में नौकरी के अवसरों को लेकर भी सवाल किए और सरकार से प्रवासियों को भारत में अवसर देने की वकालत भी की ताकि प्रवासी जड़ों की ओर भी अवसर तलाश सकें।
बोले आस्ट्रेलियाई प्रतिनिधि
आस्ट्रेलिया में कई दशकों से निवास कर रहे गुजरात के मूल निवासी हेमंत नाइक बताते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी को मेरे पिता जी ने पढ़ाया था। इस नाते उनसे संपर्क हुआ, वहीं आस्ट्रेलिया दौरे में उनके साथ परिचर्चा हुई तो उनकी मंशा के अनुरुप ही बापू की प्रतिमा लगाने का विचार आया। समय समय पर उन्होंने इस कार्य की प्रगति भी पूछी और अब भारत के निर्माता महात्मा गांधी को आस्ट्रेलिया में भी भारतवंशी नमन करने एक स्थान पर एकत्र होते हैं। वहीं उनकी पत्नी कल्पना बताती हैं कि काशी में बापू की प्रतिमा लगने से पीएम के संसदीय क्षेत्र से भी एक विशेष रिश्ता आस्ट्रेलियाई समुदाय का जुड़ेगा। आस्ट्रेलिया के ही शिक्षाविद् आशुतोष मिश्रा ने इसके लिए आस्ट्रेलिया जाकर भारतवंशियों संग विचार विमर्श कर योजना को इसी वर्ष काशी में अमलीजामा पहनाने की बात कही।
पहले कभी ऐसी इज्जत नहीं मिली
चार वर्षों में भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ा है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्रेडिट जाता है। मैं दुनिया भर में सफर करता हूं। पहले एयरपोर्ट पर भारत में जन्म की बात पता चलने पर अपमानित करने जैसा सलूक किया जाता था। जूते उतारो, कतार में लग जाओ, अनाप-शनाप कारणों से घंटों परेशान किया जाता था। अब भारत का होने की बात पर अचरज से देखा जाता है। बनारस में सबसे पहले श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर मत्था टेकने की तमन्ना है। पहली बार बनारस आया हूं। यहां के बारे में काफी सुना है अब इसे करीब से जानने का मौका मिला है। इसको लेकर मन में बहुत उत्साह है। तीस साल से विदेश में हूं अब जितनी इज्जत पहले कभी नहीं मिली।
जयेश त्रिवेदी, बिजनेसमैन मारीशस, (भावनगर, गुजरात)
बनारस जैसा दुनिया में कोई नहीं : बनारस के बारे में जैसा सोचा था उससे भी बढिय़ा दिखा। गंगा, घाट देखकर दिल की असीम गहराइयों तक सुकून मिला। तंग गलियों में आनंद की बयार बह रही है, ऐसा दुनिया में शायद ही कहीं हो। तीन दिन में पूरे बनारस को जान लेना चाहती हूं। समझ लेना चाहती हूं। यहां पहली बार आई हूं लेकिन लगता है वर्षों पुराना नाता है। माता-पिता से काशी के बारे में सुनती रहती थी। तब से एक बार यहां आने की तमन्ना थी। यहां की लस्सी पीना है। मंगलवार को यह हसरत भी पूरी होने की उम्मीद है। राजनीति में दिलचस्पी नहीं है लेकिन इतना है कि देश का विकास सर्वोपरि होना चाहिए। कुलमिलाकर बनारस आकर मजा आ गया।
विंध्या, एडवोकेट, अमेरिका, (मूल निवासी-आगरा)
शिव की नगरी काे प्रणाम : सबसे पहले शिव की नगरी को प्रणाम करता हूं। यहां आकर बहुत उत्साहित हूं। एक साथ इतने प्रवासियों के जुटने से विचारों का आदान प्रदान होगा। बनारस देखने का मन बहुत सालों से था। प्रवासी दिवस ने हम लोगों को एक मौका दिया है नए भारत, नए बनारस के दर्शन का। इन पलों को जी भरकर जीना चाहता हूं। दूसरे देशों में रहने वाले कुछ दोस्त भी आए हैं। इससे टूर में चार चांद लग गया। भारत में अपार संभावनाएं हैं। अब युवा यहीं रहकर आगे बढऩे को तवज्जो देने लगे हैं। यहां से कुंभ जाना है।
अर्नब, एडवोकेट, लंदन, (मूल निवासी-हैदराबाद)
दुनिया में मजबूत भारत की छवि : अ पने देश की माटी की बात ही निराली है। इसकी याद हमेशा सताती है। बनारस में प्रवासियों का मेला दिलों को मिलाने के साथ रिश्तों को मजबूत बनाएगा। इससे दुनिया की नजरों में भारत की छवि और मजबूत होगी। बनारस दर्शन के बाद कुंभ फिर दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड देखने का प्लान बनाकर आए हैं। बनारस के रहन, सहन, खानपान से वाकिफ तो हैं लेकिन हर बार सब कुछ नया लगता है। यहां का मस्तमौला अंदाज हर किसी को अपना मुरीद बना लेगा। पहले के और अब के बनारस में काफी बदलाव आ चुका है। कुलमिलाकर बनारसीपन का मजा जमकर उठाया जाएगा। तो चलिए तीन दिन भगवान शिव की नगरी बनारस के नाम।
शशिकांत चौबे, चाटर्ड एकाउंट, रियाद, सऊदी, (मूल निवासी बलिया)