आखिर यूएन महासचिव गुटेरेस ने क्यों की कोरोना महामारी की दूसरे विश्व युद्ध से तुलना, जानें
दूसरा विश्वयुद्ध जहां महज 70 देशों के बीच लड़ा गया था वहीं कोरोना से पूरी दुनिया जंग लड़ रही है।
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसको दूसरे विश्व युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक बताया है। उनके इस बयान के बाद सभी के मन में ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा। दरअसल उन्होंने वर्तमान के संकट की तुलना दूसरे विश्व युद्ध से करके इसके गंभीर परिणाम की तरफ दुनिया का ध्यान खींचा है। उन्होंने चेताया है कि यदि कोरोना वायरस के प्रकोप को दुनिया से जल्द से जल्द खत्म न किया गया तो ये इंसान और इंसानियत दोनों पर भारी पड़ सकता है।
आपको बता दें कि दूसरा विश्व युद्ध 1939 से लेकर 1945 तक चला था। इसमें 70 देशों की थल-जल-वायु सेनाओं ने हिस्सा लिया था। इसकी वजह से पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटकर रह गई थी। इसमें इन देशों ने अपनी जीत के लिए पूरी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता झोंक दी थी। आपको जानकर हैरत हो सकती है कि इस युद्ध में 70 देशों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया। यह युद्ध मानव इतिहास का सबसे ज्यादा घातक युद्ध साबित हुआ था। इसमें 5 से 7 करोड़ लोगों की जान गई थी। यह एकमात्र ऐसा युद्ध था जिसने परमाणु बम की शक्ति की त्रासदी को झेला था। इस त्रासदी को झेलने के बाद ही इस पर पर्दा भी गिरा था। यही वजह है कि इसको मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध कहा जाता है।
1939 में इसकी शुरुआत जर्मनी द्वारा पोलैंड पर किए गए हमले से शुरू हुई थी। इसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी ब्रिटेन समेत कुछ दूसरे देशों ने इसमें उसका साथ दिया और इसको सही बताया था। 1941 तक जर्मनी यूरोप के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा चुका था। जून 1941 में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया। दिसंबर 1941 में जापान भी इस युद्ध में कूद गया। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर जबरदस्त हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर कब्जा कर लिया था।
इस हमले से अमेरिका बुरी तरह से हिल गया था। 1943 में जर्मनी को पूर्वी यूराप में लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था। वहीं अमेरिका लगातार प्रशांत महासागर में बने अपने अड्डों को दोबारा हासिल करता जा रहा था। इस बीच इटली पर भी मित्र राष्ट्रों ने हमला कर दिया। 1944 में पश्चिमी मित्र देशों ने फ्रांस पर हमला कर दिया जो पहले से ही जर्मनी के अधीन हो चुका था। दूसरी तरफ सोवियत संघ ने भी जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला कर दिया था। 1945 सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर जीत का झंडा गाड़ कर उसको अपने कब्जे में ले लिया था। यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अंत मई 1945 को जर्मनी के बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के बाद हुआ था। इसी दौरान जापान को भी परमाणु बम के हमले के बाद हार का मुंह देखना पड़ा था।
ये महज एक कहानी नहीं है न ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का एक मामूली बयान है। बल्कि इसमें उस डर का अहसास साफतौर पर दिखाई दे रहा है जो पूर्व में लाखों लोगों की मौत की वजह बना था। दूसरा विश्वयुद्ध दुनिया के केवल 70 देशों के बीच लड़ा गया था। वहीं कोरोना वायरस से आज दुनिया के 200 से अधिक देश लड़ रहे हैं। यूएन की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को खतरा है वहीं दूसरे विश्व युद्ध की बात करें तो उससे भी पूरी दुनिया आर्थिकतौर पर प्रभावित हुई थी।
इसके कारण प्रभावित हो रही है जिससे मंदी आएगी। जिसकी वजह से अस्थिरता, अशांति और संघर्ष बढ़ रहा है। हम सभी को इससे निपटना है और यह तभी संभव हो पाएगा, जब सभी देश राजनीति भूलकर एक साथ आएंगे। सभी को समझना होगा कि इस महामारी से मानवता को खतरा है। गुटेरेस ने कहा कि वे कोरोना को लेकर दुनिया के नेताओं के संपर्क में है। पूरी दुनिया एक साथ इस बीमारी की चपेट में हैं। इससे निपटने के लिए सभी को एक साथ मिलकर काम करना होगा। हालिया इतिहास में ऐसा भयानक संकट नहीं पैदा हुआ था। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कोरोना दुनिया के दक्षिणी हिस्से में तेजी से फैलेगा और लाखों लोगों की मौत इसके चपेट में आने से होगी।
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