इमरान उस पाक के मौजूदा सितारे हैं, जो भारत-विरोधी भावनाओं पर चमकता है
इमरान खान बेशक दुनिया के ऐसे पहले राजनेता हैं, जो पहले एक क्रिकेट हीरो थे और अब जल्द ही पाकिस्तान के 30वें प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं।
[महेंद्र वेद]। इमरान खान बेशक दुनिया के ऐसे पहले राजनेता हैं, जो पहले एक क्रिकेट हीरो थे और अब जल्द ही पाकिस्तान के 30वें प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ भी कभी क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन अब वे भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं। इमरान खान शरीफ के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले दो साल से मुहिम चला रहे थे।
आज नतीजा यह है कि शरीफ नेपथ्य से बाहर नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान की तरह भारत के लोगों को भी क्रिकेट और क्रिकेटरों से लगाव है। लिहाजा वे भी इमरान खान की इस जीत का स्वागत करना चाहेंगे। वास्तव में ऐसे शहरी भारतीय जिन्हें इमरान का वह पुराना क्रिकेट कौशल याद है, उन्हें तो उनकी यह जीत अच्छी ही लग रही होगी। वैसे तटस्थ तौर पर कहें तो इमरान ने सियासी तकाजों के चलते भारत के खिलाफ बातें कही जरूर हैं, लेकिन वह अपने पूर्व साथी खिलाड़ी जावेद मियांदाद की तरह भारत-विरोधी नहीं रहे।
लिहाजा हम कह सकते हैं कि आपका स्वागत है इमरान खान! लेकिन जरा ठहरें, भारत और पाकिस्तान जैसे दो पड़ोसी देशों के बीच क्रिकेटही सब कुछ नहीं। हमें पाकिस्तान के संदर्भ में पिछले कड़वे अतीत के साथ-साथ हालिया तनाव और टकराव के दौर को भी नहीं भूलना चाहिए। इमरान खान के भारतीय प्रशंसकों को भी उनकी सियासी प्रवृत्तियों के बारे में पता नहीं होगा। हमें यह समझना होगा कि इमरान दरअसल उस पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के मौजूदा सितारे हैं जो भारत-विरोधी भावनाओं पर ही फलताफूलता है।
पाकिस्तान के घरेलू और विदेशी पर्यवेक्षकों समेत अनेक विश्लेषकों व मीडिया के एक हिस्से का आकलन भी यही है कि इमरान खान और उनकी पार्टी की यह जीत पाकिस्तानी सैन्य-तंत्र द्वारा इन चुनावों के बारीक प्रबंधन का नतीजा है। इससे साफ संकेत मिलता है कि भारत के प्रति पाकिस्तान का रवैया और सख्त हो सकता है। हालांकि कुछ कूटनीतिक कदम भी उठाए जा सकते हैं। वैश्विक मामलों की समझ भी यही कहती है कि बातचीत बंद रखना कूटनीति में स्थाई मुद्रा नहीं हो सकती। इसके अलावा चूंकि दोनों ही देश परमाणु शक्ति-संपन्न हैं, लिहाजा यह पहलू भी इनसे जुड़े दूसरे तत्वों को चिंतित करता है।
इस समय अमेरिका भारत का प्रमुख रक्षा सहयोगी है, वहीं दूसरी ओर चीन तकरीबन हर मामले में पाकिस्तान का साथ देता है और वह चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपेक) के निर्माण के लिए अरबों का निवेश भी कर रहा है। ये दोनों ही देश भारत व पाकिस्तान पर संवाद बहाली और शांति बनाए रखने पर जोर देते हैं। इसके पीछे दोनों के अपने-अपने स्वार्थ भी हैं। दरअसल अमेरिका को अफगानिस्तान से सम्मानजनक ढंग से वापसी के लिए पाकिस्तान की जरूरत है, जहां पर कि यह पिछले 17 वर्षों से फंसा है और जीत के कोई संकेत भी नजर नहीं आ रहे हैं। वहीं चीन सीपेक के निर्माण की खातिर पाकिस्तान में शांति चाहता है।
इमरान खान सियासत में इस शीर्ष मुकाम तक तब पहुंचे, जब एशिया में भू-राजनीतिक जंग तीव्र हो चुकी है। भारत को अमेरिका के साथ देखा जा रहा है, जबकि पाकिस्तान और चीन दूसरे समूह में हैं, जिसे रूस का भी गुपचुप समर्थन है जो अमेरिका के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए चीन के करीब जा रहा है। गौरतलब है कि इमरान खान ने अपने अमेरिका-विरोधी रुख को कभी नहीं छिपाया।
फिलहाल पाकिस्तान का यही रवैया है, चूंकि यह चीन के नजदीक जा रहा है। इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक साक्षात्कार में कहा भी था-मुझे यकीन नहीं है कि ट्रंप मुझसे मिलना चाहेंगे। उन्होंने अफगाानिस्तान में छिड़ी जंग के लिए भी अमेरिका को दोष दिया और कहा कि पाकिस्तान को दूसरों के द्वारा इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।
बहरहाल इन चुनावों में अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित होने के बाद इमरान खान का अपने पहले संबोधन में यह कहना प्रत्याशित ही लगा कि वे भारत से आपसी कारोबार समेत विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर ताल्लुकात चाहते हैं और इस संदर्भ में कश्मीर पर भी बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक कदम आगे बढ़े तो वे दो कदम आगे बढ़ाएंगे, लेकिन यहां पर इमरान को यह समझना होगा कि भारत तो हमेशा पाकिस्तान से संवाद के लिए तैयार है, बशर्ते पाकिस्तान बातचीत का माहौल तो बनाए। आखिर यह कैसे हो सकता है कि एक तरफ पाकिस्तान से आतंकवाद का निर्यात और कश्मीर में अस्थिरता फैलाना जारी रहे और बातचीत भी चलती रहे?
इमरान खान ने अपने संबोधन में जिस तरह चीन, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों को पाकिस्तान का खास दोस्त बताया, उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि उनकी विदेश नीति संबंधी प्राथमिकताएं क्या रहने वाली हैं। उन्होंने अपने मुल्क में गरीबी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से निपटने के लिए चीन से सबक लेने की बात कही। यह बताता है कि वे चीन की नीतियों से किस कदर अभिभूत हैं। लगता यही है कि इमरान के राज में पाकिस्तान पर चीन का प्रभाव और बढ़ेगा, जिससे भारत की चिंताएं बढ़ सकती हैं।
हालांकि ज्यादातर भारतीय मीडिया इमरान खान को एक अनपरखी चीज कह रहा है, लेकिन लगता यही है कि उनकी सहानुभूति अपने यहां के उन चरमपंथी तथ्वों और तालिबान के प्रति रहेगी जो भारत को अपने सबसे बड़े बैरी की तरह देखते हैं।
यहां पर यह समझना जरूरी है कि इमरान खान पाश्चात्य शिक्षा और क्रिकेट की उपज हैं, जिसने उन्हें नाम और शोहरत दी, लेकिन हैरानी है कि न तो पाश्चात्य शिक्षा और न ही क्रिकेट उन्हें पश्चिमी विचारों और मूल्यों की सीख दे पाए। वे अब भी काफी रूढ़िवादी हैं और पाकिस्तानी महिलाओं में आधुनिकता और खुलेपन के खिलाफ बोलते हैं। भले ही इमरान ने अतीत में एक अंग्रेज लड़की से निकाह किया हो और उनके दुनियाभर में अनेक आधुनिक महिलाओं से रिश्ते भी रहे हों, (जैसा उनकी पूर्व पत्नी रेहम ने अपनी हालिया किताब में आरोप भी लगाया), लेकिन लगता यही है कि इमरान नहीं चाहते कि उनके अपने मुल्क की महिलाएं आधुनिक बनें।
यहां पर एक और बात का जिक्र जरूरी है। इमरान खान ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद जब सियासत में कदम रखा, तब उनके गुरु थे आइएसआइ के पूर्व प्रमुख मरहूम लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल। ऐसा लगता है कि उनका यह वैश्विक नजरिया और आतंकियों के प्रति सहानुभूति की प्रवृत्ति उन्हें गुल से ही मिली है, जो कि भारत-विरोधी शख्स के रूप में जाने जाते थे। ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इमरान खान के विरोधी उन्हें तालिबान खान के नाम से पुकारते हैं।
इन चुनावों में इमरान खान पर पाकिस्तानी सेना का किस हद तक वरदहस्त रहा, इसका पता इससे भी चलता है कि सेना ने निर्वासित जीवन बिता रहे अपने पूर्व मुखिया परवेज मुशर्रफ को भी वतन वापस लौटते हुए चुनाव लड़ने से रोक दिया। इसके बाद मुशर्रफ ने भी इमरान के समर्थन का ऐलान कर दिया। जाहिर है कि इस बार सेना ने नेतृत्व के लिए इमरान को चुना है। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि भारत के प्रति उनका रवैया क्या रहेगा। इस लिहाज से तो यही कहना होगा कि हां, वे एक अनपरखी चीज हैं।
इमरान खान बेशक दुनिया के ऐसे पहले राजनेता हैं, जो पहले एक क्रिकेट हीरो थे और अब जल्द ही पाकिस्तान के 30वें प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ भी कभी क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन अब वह भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं। इमरान खान शरीफ के खिलाफ पिछले दो साल से मुहिम चला रहे थे। आज नतीजा यह है कि शरीफ नेपथ्य से बाहर नजर आ रहे है।
[विदेशी मामलों के जानकार]