बवाल और तनाव का एक और दिन, वजह है येरुशलम में अमेरिकी दूतावास
येरुशलम आज फिर सभी की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इसकी वजह है कि आज ही अमेरिका अपने इजरायल के तेल अवीव स्थित दूतावास को येरुशलम में शिफ्ट कर उसका उदघाटन कर रहा है।
नई दिल्ली स्पेशल डेस्क। येरुशलम आज फिर सभी की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इसकी वजह है कि आज ही अमेरिका अपने इजरायल के तेल अवीव स्थित दूतावास को येरुशलम में शिफ्ट कर उसका उदघाटन कर रहा है। इसकी सभी तैयारियां हो चुकी हैं और विशेष मेहमान के तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप इजरायल पहुंच चुकी हैं। इसका औपचारिक उदघाटन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए करेंगे। इसको लेकर सोमवार को भी गाजा पट्टी पर हिंसक झड़प होने की खबर है। आपको बता दें कि पिछले वर्ष 7 दिसंबर को ट्रंप ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी। हालांकि उनके इस फैसले की कई देशों ने निंदा की थी और इसको तनाव बढ़ाने वाला कदम बताया था।
1948 से है विवाद
इस मुद्दे पर बवाल की सबसे बड़ी वजह येरुशलम पर फिलिस्तीन और इजरायल में विवाद है। दोनों ही इस पर अपना अधिकार बताते रहे हैं। यहां की सीमा पर आए दिन झड़प होने की खबरें भी सामने आती रहती हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि 1948 से लेकर अब तक येरुशलम को लेकर फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद चल रहा है। साथ ही यूनाइटेड नेशन से लेकर दुनिया के ज्यादातर देश पूरे यरुशलम पर इजरायल के दावे को मान्यता नहीं देते हैं। वहीं दोनों ही देश इजरायल को अपनी राजधानी मानते हैं। इस मुद्दे पर भारत ने भी अमेरिका का साथ नहीं दिया है। गौरतलब है कि इजरायल के तेल अवीव में अमेरिका को मिलाकर कुल 86 देशों का दूतावास हैं। लेकिन यरुशलम पर चल रहे विवाद को लेकर अब तक वहां किसी भी देश ने अपना दूतावास नहीं बनाया है।
बदला ट्विटर हैंडल
तेल अवीव से येरुशलम में दूतावास बदलने से दो दिन पहले ही अमेरिकी दूतावास ने अपने ट्विटर हैंडल का नाम बदल दिया है। दूतावास ने ट्विटर पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा @usembassyta खाता @USEmbassyJerusalem में बदल दिया गया है। अमेरिकी दूतावास का सही अकाउंट हैंडल @USEmbassyjlm है।
विवाद सुलझाने का रास्ता
यहां पर ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इसी वर्ष फरवरी में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने तीन बिंदुओं की एक शांति योजना पेश की थी। इसके तहत उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा था कि फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता पाने के लिए प्रयास करेगा। वर्तमान में फलस्तीन को केवल पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है होगा। इजराइल के साथ फलस्तीन की शांति वार्ता की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए अब्बास ने कहा कि, यह हमारी आने वाली पीढ़ियों की खातिर हमारी रणनीतिक च्वाइस है। इसी दौरान दोनों देशों के वरिष्ठ नेताओं ने भी शांति के लिए मुलाकात की थी। इससे पहले जनवरी में येरुशलम के विवादित मुद्दे को सुलझाने के लिए मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल-फतेह अल-सिसी ने दो राष्ट्र का सिद्धांत सुझाया था। उनका कहना था कि पश्चिम एशिया में शांति के लिए स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र की स्थापना होनी चाहिए। इसकी सीमाएं 1967 से पहले की स्थिति में हों और पूर्वी यरुशलम इसकी राजधानी होनी चाहिए।
येरुशलम पर इजरायल का नया कानून
इजरायल की संसद ने येरुशलम पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक विशेष कानून पास किया है। इसके मुताबिक, इजरायल की सरकार को येरुशलम के किसी भी हिस्से पर अपना दावा छोड़ने के लिए अब संसद में सामान्य बहुमत की जगह दो तिहाई सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी। इजरायल की संसद में 120 सदस्य हैं। इस कानून के पास होने के बाद अब 80 सदस्यों के समर्थन के बाद ही कोई सरकार येरुशलम या उसके किसी हिस्से पर अपना दावा छोड़ पाएगी। इजरायल के इस कदम को शांति प्रयासों के लिए झटका माना जा रहा है। इस कानून को हालांकि साधारण बहुमत से पलटा जा सकता है। इसलिए इजरायल का यह कदम प्रतीकात्मक ज्यादा है।
क्यों है येरुशलम पर विवाद
साल 1948 में इजरायल ने अपनी आजादी का ऐलान किया था। जिसके एक साल बाद येरुशलम का बंटवारा हुआ। लेकिन 1967 में ‘सिक्स डे वॉर’ के नाम से मशहूर इजरायल और अरब देशों के बीच हुई जंग में इजरायल ने पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया था। यहां पर विवाद की एक बड़ी वज ये भी है कि येरुशलम को यहूदी, ईसाई और मुसलमान तीनों ही अपनी पवित्र जगह मानते हैं। यरुशलम का टेंपल माउंट यहूदियों के लिए सबसे पवित्र जगह है। वहीं मुसलमानों की तीसरी सबसे पाक मस्जिद अल-अक्सा भी यही पर है। इनके अलावा ईसाईयों की सपुखर चर्च भी यहां पर ही है।