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In-Depth: रिश्तों की पुरानी डोर पर चढ़ाना होगा चांदी का अर्क, वरना...

भारत को नेपाल से रिश्तों की मधुरता बनाए रखनी होगी ताकि चीन को वहां पैर पसारने का कोई मौका न मिल सके

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 11 Apr 2018 10:06 AM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2018 10:23 AM (IST)
In-Depth: रिश्तों की पुरानी डोर पर चढ़ाना होगा चांदी का अर्क, वरना...
In-Depth: रिश्तों की पुरानी डोर पर चढ़ाना होगा चांदी का अर्क, वरना...

कैलाश बिश्नोई। भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराना नाता है, जो इन्हें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से जोड़ता है। नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी और बेटी का है। बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेशी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है। नेपाल भारत के लिए सामरिक व रणनीतिक महत्व भी रखता है। भारत और चीन दोनों के बीच बफर स्टेट के रूप नेपाल का भू-सामरिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है। भारत एवं नेपाल के मध्य 1850 किमी लंबी खुली सीमा है। वहां जाने के लिए किसी वीजा और पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। नेपाली भारत में बिना किसी कार्य परमिट के काम कर सकते हैं, बैंक खाता खोल सकते हैं और अपनी संपत्ति रख सकते हैं।

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6 लाख भारतीय नेपाल में करते हैं काम

भारत में करीब 60 लाख नेपाली काम करते हैं। यही नहीं 45,000 से ज्यादा नेपाली नागरिक भारतीय सेना तथा अर्धसैनिक बलों में सेवारत हैं। दूसरी तरफ छह लाख से ज्यादा भारतीय भी नेपाल में रोजगार कर रहे हैं। निवेश और कारोबार की दृष्टि से देखें तो एक तरफ जहां भारतीय कंपनियां नेपाल में सबसे बड़ी निवेशक हैं वहीं दूसरी तरफ नेपाल के कुल कारोबार में 66 प्रतिशत व्यापार भारत के साथ होता है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच प्रति सप्ताह 60 उड़ानें होती हैं। नेपाल जाने वाले सभी पर्यटकों में बीस प्रतिशत भारतीय होते हैं और वहां जाने वाले विदेशी पर्यटकों में से लगभग 40 प्रतिशत भारत होते हुए जाते हैं।

चीन ने की नेपाल को भड़काने की कोशिश

वास्तव में नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर है, परंतु पिछले कुछ वर्षों से चीन भारत-नेपाल संबंधों में खटास लाने की भरपूर कोशिशों में लगा हुआ है। डोकलाम विवाद के पश्चात उसने नेपाल को उकसाने की भी कोशिश की कि वह भारत-चीन के साथ लगती सीमा पर विवादित क्षेत्रों के निपटारे के लिए बातचीत शुरू करे। भले ही भारत -नेपाल की सीमा का एक छोटा सा हिस्सा ही विवादित है, फिर भी चीन नेपाल पर अपने तमाम सीमाई विवाद अतिशीघ्र सुलझाने के लिए दबाव बना रहा है।

नेपाल की चीन से करीबी भारत के लिए खतरा

नेपाल की चीन के साथ बढ़ती नजदीकी भारत के लिए चिंता का विषय है। नेपाल-चीन के मध्य रेल संपर्क बहाली सिलीगुड़ी गलियारे पर खतरा बढ़ा सकती है, क्योंकि यही एक गलियारा है जो पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। नेपाल में चीन की पैठ बढ़ने से भारत के अलगाववादियों और माओवादियों तक उसकी पहुंच सुगम हो जाएगी। साथ ही भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा संबंधी अन्य समस्याएं उभरने की भी आशंका है।

नेपाल में भारत की योजनाएं लेटलतीफी की शिकार

वर्तमान में भारत-नेपाल आर्थिक सहयोग के तहत छोटी-बड़ी लगभग 400 परियोजनाएं चल रही हैं, पर अधिकतर लेटलतीफी की शिकार हैं। भारत द्वारा परियोजनाओं में की गई देरी के कारण नेपाल के लोगों को यह भी लगता है कि भारत नेपाल के बुनियादी ढांचे को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं है। नेपाल ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया में भारत की एक छवि बनी है कि भारत केवल वादा करता है, जबकि चीन करके दिखाता है। इसलिए इसको अपने पुराने तौर-तरीकों को बदलना होगा तथा परियोजनाओं को पूरा करने में तत्परता व गंभीरता दिखानी होगी। साथ ही भारत को नेपाल के साथ बड़े भाई जैसा व्यवहार करने से भी परहेज करना होगा और यह दिखाने की कोशिश करनी होगी कि वह वास्तव में नेपाल की लोकतांत्रिक महत्वाकांक्षाओं और राजनीतिक गरिमा का हितैषी है।

...ताकी चीन को मौका न मिल जाए

भारत नेपाल संबंधों का अतीत चाहे जो भी रहा हो, पर वर्तमान में भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि नेपाल एवं चीन के मध्य बढ़ती समीपता उसके एवं नेपाल के कूटनीतिक संबंधों के लिए खतरे से कम नहीं है। ऐसे में भारत को नेपाल से रिश्तों की मधुरता हर हालत में बनाए रखनी होगी, ताकि चीन को वहां पैर पसारने का कोई मौका न मिल सके। यह सच्चाई है कि भारत की घेरेबंदी करने में जुटा चीन अब पाकिस्तान के बाद नेपाल को अपना मोहरा बनाना चाहता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नेपाली प्रधानमंत्री की भारत यात्रा से साजिश का चक्रव्यूह बुनने वाले चीन का दांव उल्टा पड़ेगा।


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