भारत और बांग्लादेश संबंधों की आधी सदी, नई ऊंचाइयों पर दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध
भारत और बांग्लादेश ने जहां अपने कूटनीतिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे किए हैं वहीं एक संप्रभु देश के रूप में बांग्लादेश अपना 50वां विजय दिवस समारोह मनाने को तैयार है। पिछले डेढ़ दशकों में भारत और बांग्लादेश ने अपने विवाद के मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया है।
विवेक ओझा। साल 2021 बांग्लादेश और साथ ही भारत के लिए ऐतिहासिक महत्व का वर्ष है। यह वर्ष बांग्लादेश के 50वें विजय दिवस समारोहों का है जो उसके आत्मनिर्धारण के अधिकारों के लिए लड़ी गई लड़ाई का प्रतीक है। वर्ष 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति योद्धाओं को साहस, नैतिक बल, प्रतिरक्षा और वित्तीय सहयोग देने वाला भारत बांग्लादेश की इस खुशी में शामिल हो रहा है। भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द बांग्लादेश के 50वें विजय दिवस समारोहों में शामिल होने के लिए 15 से 17 दिसंबर तक इस पड़ोसी देश की राजकीय यात्र पर हैं। आज ही के दिन यानी 16 दिसंबर को 1971 में आधुनिक हथियारों और सैन्य साजोसामान से लैस पाकिस्तान के 93,000 से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के अदम्य साहस और वीरता के आगे घुटने टेक दिए थे और इसी के साथ दुनिया के मानचित्र पर बांग्लादेश नाम से एक नए देश का उदय हुआ था।
भारत बांग्लादेश संबंध इतिहास, कला और संस्कृति, भाषा और स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शो से प्रभावित रहे हैं। वर्ष 1905 में ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय के विरोध में भारत में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी और सांस्कृतिक संबंधों को रवींद्र नाथ टैगोर की रचनाओं से एक नया आयाम मिला। माउंटबेटन प्लान के बाद जहां एक तरफ भारत पाकिस्तान के विभाजन का मार्ग खुल गया, वहीं पूर्वी पाकिस्तान भी एक भौगोलिक राजनीतिक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया। पूर्वी पाकिस्तान की जनता बांग्ला भाषा वाली थी, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान उर्दू भाषा की प्रधानता वाला था। पाकिस्तान अपने पूर्वी क्षेत्र (अब बांग्लादेश) पर उर्दू भाषा और सुन्नी मान्यताएं थोपना चाहता था। इसलिए यह तय था कि किसी न किसी समय यह क्षेत्र पाकिस्तान से अलग होने के लिए आंदोलन करेगा। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि माउंटबेटन प्लान के तहत तब के असम के सिलहट जिले में एक जनमत संग्रह कराने का प्रविधान किया गया था जिसके जरिये यह तय होता कि असम के सिलहट की बांग्लाभाषी जनता असम का हिस्सा बनी रहेगी या फिर वह पूर्वी पाकिस्तान का भाग बनेगी। छह जुलाई, 1947 को हुए सिलहट जनमत संग्रह का फैसला पूर्वी पाकिस्तान के पक्ष में हुआ और असम ने एक समृद्ध जिले और उसके राजस्व को खो दिया। सिलहट पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) का अंग बन गया।
पूर्वी पाकिस्तान आर्थिक रूप से काफी सशक्त था। विदेशी आर्थिक सहयोग और अनुदान भी इस क्षेत्र को अपेक्षाकृत अधिक मिलता था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने अपनी सैन्य और धार्मिक कट्टरता के आवेश में पूर्वी पाकिस्तान के संसाधनों का ऐसा दोहन किया कि आर्थिक रूप से वह हाशिए पर चला गया। आजादी के समय पाकिस्तान की आधी से अधिक आबादी उसके पूर्वी भाग यानी पूर्वी पाकिस्तान में रहती थी जो लगभग सवा दो हजार किलोमीटर लंबे भारतीय भू-क्षेत्र के जरिये पश्चिमी पाकिस्तान से विभाजित था। पूर्वी पाकिस्तान और भारत के मध्य उस समय सांस्कृतिक जुड़ाव विद्यमान था।
पाकिस्तान के शासक अपने ही देश के पूर्वी भू-भाग के लोगों को बेहतर सुविधाएं देने में विफल होते गए। उन्होंने इस क्षेत्र के संसाधनों का भरपूर दोहन किया। लिहाजा इस पूर्वी क्षेत्र के लोगों ने आंदोलन की राह अपनाई जिसे कुचलने के अनेक कुत्सित प्रयास किए गए। अनेक जगहों पर सेना द्वारा महिलाओं के साथ दुष्कर्म के आरोप भी लगे। इस मानवतावादी संकट की घड़ी में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को सहायता देने का निर्णय लिया। भारत ने बांग्लादेश के निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक अभियान भी चलाया जिसमें कई अन्य देशों ने भी मदद की। अंतत: 16 दिसंबर, 1971 को भारत समर्थित मुक्तिवाहिनी सेना ने ढाका पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और पूर्वी पाकिस्तान का क्षेत्र बांग्लादेश नामक एक नए राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाला भारत विश्व का पहला देश था। भारत ने उसी वर्ष बांग्लादेश के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को स्थापित किया।
संबंधों में चुनौतियों के क्षण : इसी वर्ष अक्टूबर में बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिंदुओं को निशाना बनाया गया और इससे घटित सांप्रदायिक दंगे की बात दुनियाभर में हुई। यहां यह सवाल उठता है कि क्या भारत को बांग्लादेश को कठोर शब्दों में संदेश देना चाहिए था या फिर बांग्लादेश पर आर्थिक राजनीतिक प्रतिबंधों का इस्तेमाल करना चाहिए था, जैसा कि अमेरिका अक्सर करता है। क्या कुछ इस्लामिक चरमपंथी संगठनों के भारत बांग्लादेश संबंधों को खराब करने की लंबे समय से चली आ रही कवायद के बीच भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को तनावपूर्ण कर लेना चाहिए था? जवाब है नहीं, क्योंकि उसी बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आपसी सहमतियों के साथ हिंदू मंदिरों के संरक्षण और जीर्णोद्धार के मामले पर भी सहमतियां बनते लोगों ने देखा है।
हाल में हुई एक घटना के बाद यह सवाल उठा कि जब अमेरिकी वित्त मंत्रलय के ‘आफिस आफफारेन असेट्स कंट्रोल’ ने बांग्लादेश के सुरक्षा बल रैपिड एक्शन बटालियन और कुछ सुरक्षा अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया है और बांग्लादेश ने अमेरिका के इस फैसले पर नाराजगी जताई है तो क्या भारत को अपने पड़ोसी मित्र बांग्लादेश के पक्ष में अमेरिका को कुछ संदेश नहीं देना चाहिए था। यहां भारत का दृष्टिकोण साफ है कि बांग्लादेश और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में जहां अमेरिका मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में बांग्लादेश सहित दक्षिण एशियाई देशों और विश्व के कुछ अन्य देशों से उचित न्यायपूर्ण कार्यवाही और लोकतांत्रिक माहौल बनाने की अपेक्षा करता है तो इससे देशों को अपनी आंतरिक राजनीति को सुधारने की जरूरत समझ आएगी। ऐसा इसलिए भी है कि चाहे बंगाल की खाड़ी हो या प्रशांत महासागर के क्षेत्र, अमेरिका की स्थिति और प्रभाव की उपेक्षा नहीं की जा सकती। इसी कड़ी में अमेरिका ने हाल ही में कई देशों के 10 संगठनों और 15 लोगों पर प्रतिबंध लगाए, जिनमें बांग्लादेश भी शामिल है। मालूम हो कि ये प्रतिबंध मानवाधिकार हनन और प्रताड़ना के मामलों में शामिल रहने पर लगाए गए हैं।
बांग्लादेश इस समय भारत के लिए दुनिया के पांच सबसे बड़े निर्यात गंतव्यों में शामिल हो चुका है। वर्ष 2020-21 में भारत का बांग्लादेश को किया गया निर्यात वार्षिक स्तर पर 46 प्रतिशत बढ़ गया है। अमेरिका (15.41 अरब डालर), चीन (5.92 अरब डालर), संयुक्त अरब अमीरात (5.34 अरब डालर) के बाद बांग्लादेश भारत के लिए चौथा सबसे बड़ा (3.16 अरब डालर) निर्यात गंतव्य बन चुका है जो भारत बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों की महत्ता को दर्शाता है। बांग्लादेश ने हांगकांग को पीछे छोड़ते हुए भारत के साथ निर्यात संबंधों में एक नया मुकाम हासिल किया है। भारत बांग्लादेश के साथ अपने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को मजबूती देने के लिए उसके साथ प्रस्तावित कांप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट पर जनवरी, 2022 से वार्ता करने के लिए तैयार है। चूंकि बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है और भारत बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है, ऐसे में आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई देने का प्रयास स्वाभाविक भी है।
भारत ने केवल तंबाकू और अल्कोहल को छोड़कर 2011 से ही दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते के तहत बांग्लादेश को सभी प्रशुल्क रेखाओं (टैरिफ लाइंस) पर बांग्लादेश को शुल्क मुक्त और कोटा मुक्त बाजार पहुंच उपलब्ध कराया है। दोनों देशों ने अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास रहने वाले समुदायों के विकास के लिए त्रिपुरा और मेघालय (प्रत्येक राज्य में दो) में कुल चार सीमा हाट खोले हैं। दोनों देश एशिया पैसिफिक ट्रेड एग्रीमेंट के सदस्य हैं और साफ्टा के तहत भी आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। दोनों देशों के मध्य मुक्त व्यापार समझौते पर भी विचार किया जा रहा है।
भारत बांग्लादेश मित्रता पाइपलाइन 136 किमी लंबी है जिसमें 130 किमी बांग्लादेश में व छह किमी भारत के भू-भाग में है। इसके तहत बंगाल के सिलीगुड़ी से डीजल की आपूर्ति बांग्लादेश के पार्वतीपुर और दिनाजपुर जैसे उत्तरी क्षेत्र के जिलों को की जाएगी। असम स्थित नुमालीगढ़ रिफाइनरी द्वारा भारतीय भू-भाग वाले पाइपलाइन के निर्माण कार्य का वित्त पोषण किया जाएगा। भारत के नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग से बांग्लादेश लाभान्वित हो सकता है। बांग्लादेश ने भारत के सौर ऊर्जा में भी अपनी रुचि प्रदर्शित की है।
हाल ही में विश्व बैंक के प्रमुख निकाय अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम ने बांग्लादेश के साथ नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए समझौता किया है। इसके तहत विश्व बैंक बांग्लादेश में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करेगा। स्पष्ट है कि बांग्लादेश में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के लिए बड़ी संभावना विद्यमान है। बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश की सामरिक अवस्थिति भारत के लिए उपयोगी है। बांग्लादेश में प्राकृतिक गैस और तेल, खनिज संसाधन, मत्स्य संसाधन के भंडार के चलते भारत इस क्षेत्र में ब्लू इकोनामी के विकास की संभावनाएं तलाश सकता है। बांग्लादेश में प्राकृतिक गैस की उपलब्धता को ध्यान में रखकर ही चीन ने बांग्लादेश में पायरा डीप सी पोर्ट विकसित करने पर चर्चा की है।
भारत बांग्लादेश को सार्क के एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करता है। बांग्लादेश के आतंकी संगठनों, अलगाववादी युवाओं और उनके आइएसआइ के साथ गठजोड़ भारत के हितों के प्रतिकूल हैं। इसलिए भारत ने समय समय पर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि बांग्लादेश अपनी भूमि का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने दे। इसी क्रम में भारत ने बांग्लादेश के साथ प्रत्यर्पण संधि और पारस्परिक विधिक सहायता समझौते, नशीले पदार्थो की तस्करी को रोकने संबंधी समझौते संपन्न किए हैं।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]