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अपनी क्षमताओं को पहचानता भारत, PM मोदी ने देश की विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने का किया प्रयास

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने का प्रयास किया है। यही कारण है कि भारत स्वयं को विश्व में अब भू-राजनीति के एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम हुआ है।

By JagranEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Fri, 30 Sep 2022 09:53 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 09:53 AM (IST)
अपनी क्षमताओं को पहचानता भारत, PM मोदी ने देश की विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने का किया प्रयास
वर्तमान में भारत अपनी विदेश नीति में आत्मविश्वास और दृढ़ता का गुण ला रहा है।

पवन चौरसिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल ही में एससीओ (शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन) सम्मलेन में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद गए थे। केवल भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व का मीडिया इस सम्मलेन को बहुत ही निकट से देख रहा था। ऐसा होता भी क्यों न। जहां एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार किसी बहुपक्षीय सम्मलेन में भाग ले रहे थे, वहीं दूसरी ओर कोविड महामारी के शुरू होने के लगभग ढाई साल बाद चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग पहली बार विदेश यात्रा कर रहे थे। इसके साथ-साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पहली बार एक-दूसरे के सामने खड़े थे। परंतु इन सबके बीच पश्चिमी देशों की मीडिया में यदि किसी घटना की सुर्खियां बनी तो वह था भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रूसी राष्ट्रपति के समक्ष दो टूक यह कह देना कि, ‘यह युग युद्ध का नहीं है।’

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पुतिन ने भी इस बात को संजीदगी से लेते हुए यह बताने की कोशिश की थी कि रूस भारत की चिंताओं के प्रति गंभीर है और इसको लेकर सार्थक प्रयास कर रहा है। यह गौर करने वाला विषय है कि जो पश्चिमी मीडिया मोदी सरकार की अनेक मुद्दे पर आलोचना करने से नहीं थकता है, वह मोदी की अत्यंत प्रशंसा कर रहा है। यहां एक सवाल यह भी है कि भारत के इतने बड़े सहयोगी देश को युद्ध के संदर्भ में दो टूक कह पाने की हिम्मत मोदी कैसे कर पाए? दरअसल यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की ‘गैर-पारंपरिक सोच’ रखने वाली नई विदेश नीति को दर्शाता है। वैसे तो इस नई विदेश नीति में कई महत्वपूर्ण आयाम हैं, लेकिन इसके तीन स्तंभों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

डी-हाइफेनेशन

इसका शाब्दिक अर्थ है दो परस्पर जुड़ी हुई वस्तुओं को अलग करना। भारत आज अपने हितों को केंद्र में रख कर विरोधाभासों का समावेश कर रहा है। दरअसल भारत यह समझ चुका है कि एक पक्ष से अच्छे संबंधो को दूसरे पक्ष यानी उसके विपक्षी से बिगड़े हुए संबंध के रूप में जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। भारत अपने कौशल से परस्पर विरोधियों के साथ मधुर संबंध बनाकर चल रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें मोदी की पश्चिम एशिया नीति में दिखाई देता है जहां ईरान, सऊदी अरब और इजराइल के रूप में तीन बड़े ध्रुव उपस्थित हैं। इन देशों में आपस में वैर भाव है, परंतु भारत ने इन तीनों के साथ बहुत ही अच्छे रिश्ते बना लिए हैं।

भारत कई दशकों तक अपने ‘विस्तारित पड़ोस’ यानी पश्चिम एशिया को केवल अपनी घरेलू राजनीति, खाड़ी देशों में काम करने वाले प्रवासी भारतीयों की भलाई और अपनी ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से ही देखा करता था। इस कारण हम पश्चिम एशिया के एक बहुत महत्वपूर्ण देश इजराइल से हमेशा दूर भागते रहे और लंबे समय तक सार्वजानिक रूप से उसे वह महत्ता नहीं दी जिसका वह हकदार था। परंतु नरेन्द्र मोदी ने भू-राजनीति को भली-भांति समझते हुए न केवल इजराइल का खुले दिल से स्वागत किया, बल्कि 2017 में प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में इजराइल का दौरा कर सभी तरह के संशय को समाप्त कर दिया। इजराइल से हम केवल रक्षा क्षेत्र में ही सहयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि जल-प्रबंधन, कृषि और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी वह एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरा है। इतना ही नहीं, अमेरिकी दबाव के बावजूद हमने ईरान से अपने रिश्ते नहीं तोड़े और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह में ईरान के साथ मिल कर काम किया।

सांस्कृतिक कूटनीति का संकल्प

लंबे समय तक हम अपनी सांस्कृतिक क्षमता को कमतर आंकते रहे। ‘पंथनिरपेक्षता’ के नाम पर हम अपनी प्राचीन संस्कृति को विश्व पटल पर प्रदर्शित करना तो दूर, उसका नाम लेने तक से भी बचते रहे। परंतु वर्तमान में भारत की विदेश-नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आज सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद उसके लिए कोई अछूत नहीं रह गया है। नया भारत अपनी संस्कृति पर गर्व तो करता ही है, साथ ही पूरे विश्व को यह संदेश भी देता है कि यह महान संस्कृति किसी धर्म या संप्रदाय-विशेष की संकीर्ण भावना से ग्रसित नहीं है, बल्कि यह तो विश्व-कल्याण और विश्व-शांति के लिए एक जीवित उदाहरण है। चाहे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को वैश्विक स्तर पर मनाया जाना हो या विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गुजरात में आयुष सरीखी प्राचीन चिकित्सा पद्धति के लिए शोध केंद्र स्थापित करना हो, यह सब दर्शाता है कि भारतीय सभ्यता में वसुधैव कुटुंबकम की भावना निहित है।

भारत आज दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए अपनी बौद्ध धरोहर को भली-भांति उपयोग में ला रहा है। मोदी सरकार द्वारा संस्कृत, हिंदी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं का अभूतपूर्व रूप से प्रयोग और प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। हमने अपने प्रवासी भारतीयों को अपना ‘सांस्कृतिक राजदूत’ मान कर उनका विशेष ध्यान रखना चालू कर दिया है। विभिन्न देशों द्वारा भारत से चुराई गई या ले जाई गई अनेक मूर्तियों एवं कलाकृतियों को लौटाने का जो सिलसिला चल रहा है, वह मोदी सरकार की अपनी धरोहर को लाने और उसे उसके उचित स्थान पर स्थापित करने का एक सुपरिणाम समझा जाना चाहिए।

स्थापित मान्यता से आगे की विदेश नीति

एक तरफ भारत चीन को नियंत्रण में लाने के लिए अमेरिका के साथ क्वाड जैसा समूह बनाकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर की आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं में सुधार लाने के लिए रूस के साथ ब्रिक्स में अपना पूरा योगदान दे रहा है। भारत के इस आत्मविश्वास को दुनिया न केवल समझ रही है, बल्कि उसका सम्मान भी कर रही है। इसीलिए भारत ने रूस से जब अत्याधुनिक मिसाइल सुरक्षा सिस्टम एस-400 खरीदा तो अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध नहीं लगाया, जबकि कई अन्य देशों को ऐसा करने पर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका और रूस आपसी विवाद के बावजूद भारत को स्थायी सदस्य बनाए जाने के मुद्दे पर एक नजर आते हैं। इन तमाम तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत आज और अधिक यथार्थवादी, व्यावहारिक व गतिशील बन रहा है। मोदी सरकार ने विदेश-नीति में पहले से स्थापित मान्यताओं और अवधारणाओं को ‘शाश्वत सत्य’ न मानते हुए उसमें कई प्रकार के प्रयोग किए हैं, जिनमें से अधिकांश सफल हुए। जैसाकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल के वक्तव्यों में कहा है कि वर्तमान केंद्र सरकार न तो किसी देश को खुश करने के लिए और न ही किसी देश से पुष्टिकरण (वेलिडेशन) प्राप्त करने के लिए अपने निर्णय लेती है। इससे देश का स्वाभिमान भी कहीं अधिक बढ़ता नजर आ रहा है।

[शोधार्थी, स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू]


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