मालदीव संकट: जानें, चीन की तरफ क्यों झुके राष्ट्रपति यामीन
यामीन को अहसास दिलाया जाए कि उन्हें भारत की चेतावनियों को कम आंकने की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
नई दिल्ली [ हर्ष वी पंत ]। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा आपातकाल घोषित करने और दो शीर्ष जजों को गिरफ्तार करने तथा विपक्षी खेमे में खड़े पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम को नजरबंद करने के लिए सेना को आदेश देने के बाद मालदीव का संकट गंभीर हो गया है। पिछले सप्ताह वहां के सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद नौ विपक्षी नेताओं को इस आधार पर रिहा करने का फैसला किया था कि उनके खिलाफ चल रहे सारे मामले राजनीतिक रूप से प्रेरित और झूठे हैं।
यामीन सरकार ने इस निर्णय को मानने से इन्कार कर दिया, जिसकी वजह से राजधानी माले में भारी विरोध प्रदर्शन हुए और पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं। अब निर्वासित जीवन बीता रहे मालदीव के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने मौजूदा राष्ट्रपति यामीन की घोषणा को असंवैधानिक और गैरकानूनी ठहराते हुए देश में आए इस संकट के जल्द समाधान के लिए भारत से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यामीन के पास विकल्प सीमित हो गए थे इसलिए सब यही उम्मीद कर रहे थे कि वह जल्द ही मालदीव में आपातकाल की घोषणा करेंगे। हालांकि दो जजों की गिरफ्तारी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला वापस ले लिया, लेकिन राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
'चीन सबसे नजदीकी दोस्त'
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कोलंबो में निर्वासित जीवन बीता रहे नशीद की वापसी की राह खोलने के साथ ही इस साल होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें भाग लेने का अवसर देने वाला तो था ही, बल्कि यामीन के खिलाफ महाभियोग चलाने की संभावनाओं को भी प्रबल करने वाला था। अब हालात का आकलन करना कठिन है, क्योंकि यामीन ने अपने दूत सऊदी अरब, चीन और पाकिस्तान भेजने का फैसला करके स्पष्ट कर दिया कि उनके दोस्त देश कौन हैं? मालदीव ने हाल के कुछ वर्षों में जिस सक्रियता और उल्लास के साथ चीन का आलिंगन किया है उससे भारत चकित है। अब्दुल्ला यामीन जब पिछले साल चीन के दौरे पर गए थे तब दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते सहित 12 समझौते हुए थे। यामीन ने चीन के महत्वाकांक्षी मैरीटाइम सिल्क रोक इनिशिएटिव का भी समर्थन किया था। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने एलान किया था कि वह मालदीव को महत्वपूर्ण सहयोगी मानते हैं। बदले में यामीन ने यह दावा किया कि मालदीव चीन को अपना सबसे नजदीकी दोस्त मानता है और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ने कई छोटे और मध्य आकार वाले देशों के विकास में काफी मदद की है। जब चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बारे में दुनिया में नए सिरे से आशंकाएं खड़ी होनी शुरू हुई हैं और यहां तक कि कभी उसके समर्थक रहे देश उसका पुनर्मूल्यांकन करने की बात कर रहे हैं तब यामीन ने बीजिंग के पक्ष को मजबूत किया।
मुक्त व्यापार समझौता, चीन और मालदीव
पाकिस्तान के बाद मालदीव दक्षिण एशिया में चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने वाला दूसरा देश बन गया है। दरअसल यामीन सरकार ने इस मुक्त व्यापार समझौते को अपने देश की संसद यानी मजलिस से चोरीछिपे आगे बढ़ाया। इस पर वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा कि देश की जनता या सांसदों को बताए बिना चीन के साथ आनन-फानन इस तरह का समझौता गहरी चिंता की बात है। विपक्ष की चिंता पहले से ही चीन की तरफ झुके व्यापार घाटे में और बढ़ोतरी और देश की सामरिक दिशा को लेकर है। मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने तर्क दिया कि देश के चीन के कर्ज जाल में फिर से फंसने का परिणाम सामरिक संपत्तियों पर अतिरिक्त दबाव और हिंद महासागर क्षेत्र में अस्थिरता के रूप में सामने आएगा। यामीन इस सबसे बेपरवाह दिखते हैं। यामीन मालदीव को कहां ले जाना चाहते हैं, यह करीब-करीब स्पष्ट होता जा रहा है। एक तरफ वह इस्लामिक अतिवादियों के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं से बचने के लिए चीन की नजदीकी का फायदा उठाना चाहते हैं।
जब चीन के मैरिटाइम सिल्क रोड का हिस्सा बना मालदीव
2014 में चीनी राष्ट्रपति की पहली मालदीव यात्रा के बाद वह उसके मैरीटाइम सिल्क रोड का आधिकारिक तौर पर हिस्सा बन गया। इसके बाद चीन ने मालदीव में हुलहुले द्वीप के विकास और उसे माले से जोड़ने के लिए पुल और उसके मुख्य अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के निर्माण सहित भारी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के विकास के जरिये अपनी आर्थिक गतिविधियों को तेजी से बढ़ाया। वर्ष 2015 में अपनी जमीन पर किसी विदेशी के अधिकार की अनुमति देने के लिए यामीन सरकार ने संविधान में संशोधन किया। इससे इस द्वीपीय देश में चीनी सेना की मौजूदगी में बढ़ोतरी हो सकती है। कुछ समय पहले अपने दिल्ली दौरे के दौरान मालदीव के विशेष दूत ने कहा था कि उनका देश इंडिया फस्र्ट विदेश नीति का अनुसरण करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उनका कहना था कि मालदीव भारत को अपना सबसे महत्वपूर्ण दोस्त मानता है, लेकिन उनकी ओर से ऐसा उद्गार तब हुआ था जब भारत ने यामीन सरकार को कॉमनवेल्थ के मानवाधिकार और लोकतंत्र संरक्षण निकाय की दंडात्मक कार्रवाई से बचाया था। नई दिल्ली की मालदीव के विपक्ष से खासकर पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के साथ नजदीकी बढ़ाने की हालिया नीति संभवत: माले की नाराजगी की वजह बन रही है और शायद इसीलिए चीन की तरफ यामीन का झुकाव तेज हुआ है। दक्षिण एशिया में मालदीव ही एक ऐसा देश है जिसका भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक दौरा नहीं किया है।
मालदीव और भारत सरकार
भारत में ऐसे बहुत लोग हैं जो यामीन के खिलाफ उदासीन रुख अपनाने के लिए मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं। उनकी नजर में यामीन पिछले कुछ सालों से अपने देश के लोकतांत्रिक आधारों को लगातार ध्वस्त कर रहे हैं। बहरहाल अब वक्त आ गया है कि नई दिल्ली मालदीव में हालात का सावधानीपूर्वक लेखा-जोखा करे। नई दिल्ली को कोई भी कदम सोच समझकर उठाना चाहिए। पहला कदम यह हो सकता है कि वह क्षेत्र और क्षेत्र के बाहर के समान सोच वाले देशों के साथ एक साझा प्रतिक्रिया दे, लेकिन मौका आए तो नई दिल्ली को बल प्रयोग करने से भी हिचकना नहीं चाहिए, जैसा कि नशीद कह रहे हैं और जिसकी संभावना से चीन परेशान है। यामीन को यह अहसास दिलाया जाना चाहिए कि उन्हें भारत की चेतावनियों को कम करके आंकने की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए मालदीव में मौजूदा संकट का समाधान करते हुए राजनीतिक स्थिरता लाने में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी ही चाहिए।
(लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं)