राजनीतिक संकट में उलझे वेनेजुएला पर भारत फिलहाल तटस्थ रहेगा
राजनीतिक संकट में उलझे दक्षिणी अमेरिकी देश वेनेजुएला को लेकर फिलहाल तटस्थ रहने की नीति अपनाई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीतिक संकट में उलझे दक्षिणी अमेरिकी देश वेनेजुएला को लेकर फिलहाल तटस्थ रहने की नीति अपनाई है। भारत अपनी जरूरत के एक बड़े हिस्से का कच्चा तेल वेनेजुएला से लेता है ऐसे में वह मौजूदा राष्ट्रपति निकोलस मादुरो या विपक्षी दल के नेता जुआन गुआदो के बीच कोई स्पष्ट चुनाव नहीं करना चाहता। भारत ने दोनों पक्षों को शांति से मौजूदा हालात का हल निकालने का आग्रह किया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक, भारत वेनेजुएला के हालात पर करीबी नजर रखे हुए है। हम मानते हैं कि सभी पक्षों को आपसी बातचीत के जरिए सकारात्मक तरीके से बगैर किसी हिंसा का इस्तेमाल किए हालात का समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए। हम यह भी मानते हैं कि वेनेजुएला में लोकतांत्रिक व्यवस्था, शांति और वहां के लोगों की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि वेनेजुएला के साथ उसके बेहद करीबी और अच्छे संबंध हैं।
भारत की इस सदी प्रतिक्ति्रया के पीछे इसकी ऊर्जा सुरक्षा की मजबूरी है। इराक, सउदी अरब और ईरान के बाद भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल वेनेजुएला से लेता है। पिछले वर्ष 2018 में भारत ने उससे औसतन 3.30 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद की है। वैसे यह वर्ष 2017 के मुकाबले 17 फीसद कम है। अंतर्राष्ट्रीय जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका के संभावित प्रतिबंध को देख वेनेजुएला कम कीमत में तेल बेचने को तैयार हो सकता है जो भारत के लिए फायदेमंद होगा।
ईरान के संबंध में ऐसा हो चुका है। अभी ईरान से आयातित तेल के एक हिस्से का भुगतान भारत रुपए में करता है। हां, अगर आगे चलकर वेनेजुएला पर अंतर्राष्ट्रीय पर प्रतिबंध लगता है तो भारत के लिए समस्या आ सकती है। भारत भी वेनेजुएला के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि कई वर्षो तक भारत उसका सबसे बड़ा तेल खरीददार देश रहा है।
वेनेजुएला में राजनीतिक समस्या का असर सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी पर भी पड़ेगा। वहां के एक सरकारी कंपनी के तेल फील्ड में ओएनजीसी की 40 फीसद की हिस्सेदारी है। ओएनजीसी को इस हिस्से के बदले मिलने वाली रायल्टी में देरी हो रही है।
भारत सरकार वहां दूसरे तेल ब्लाक भी खरीदने की कोशिश कर रही थी लेकिन राजनीतिक हालात को देख इसमें कोई प्रगति नहीं हुई है। इसके अलावा भारतीय फार्मास्यूटिक्लस कंपनियां भी वहां बड़ा काफी कारोबार करती थी लेकिन वहां महंगाई दर के एक हजार फीसद से ज्यादा होने और स्थानीय मुद्रा में लगातार गिरावट की वजह से भारतीय कंपनियां वेनेजुएला जाने को इच्छुक नहीं है।
भारत की तटस्थता की दूसरी वजह यह है कि वेनेजुएला में सत्ता परिवर्तन पर अभी दुनिया में दो फाड़ है। एक तरफ अमेरिका के पक्ष में कनाडा समेत कई पश्चिमी देश हैं दो दूसरी तरफ रूस व चीन के साथ कई दक्षिणी अमेरिकी देश हैं। भारत वैश्विक हालात को देखते हुए सारा दांव किसी एक पक्ष पर नहीं लगाना चाहता। ऐसे में भारतीय कूटनीतिकारों को भरोसा है कि वे ईरान मुद्दे की तरफ यहां भी बीच का रास्ता निकाल सकते हैं। वैसे भी मौजूदा राष्ट्रपति मादुरो ने वर्ष 2012 में बतौर विदेश मंत्री भारत की यात्रा की थी।