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चीन को साधने के लिए काम करेगी भारत की 'पहले पड़ोस' की पॉलिसी

भारत-इंडोनेशिया का संबंध अत्यंत प्राचीन है तथा इतिहास, पुरातत्व, शिक्षा, संस्कृति और लोगों की आवाजाही के माध्यम से कई शताब्दियों से जुड़ा हुआ है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 12:38 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 12:39 PM (IST)
चीन को साधने के लिए काम करेगी भारत की 'पहले पड़ोस' की पॉलिसी
चीन को साधने के लिए काम करेगी भारत की 'पहले पड़ोस' की पॉलिसी

[राजीव रंजन चतुर्वेदी]। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इंडोनेशिया भारत के इतने पास है फिर भी कितनी दूर है। 'पहले पड़ोस' की नीति के साथ-साथ समुद्रतटीय पड़ोसी राष्ट्रों को पड़ोस में शामिल करने के सराहनीय कदम उठाने के बावजूद नरेंद्र मोदी की यह यात्रा अपने सरकार के चार साल के कार्यकाल पूरा करने के बाद हुई है। नवंबर 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने भारत एक्ट ईस्ट नीति की औपचारिक घोषणा की थी तब से दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में आज भी यह पूछा जाता है कि लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट क्या महज शब्दावली का फेर बदल है या फिर भारत के रुख में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन आया है। ऐसे में मोदी की इंडोनेशिया यात्रा का महत्व और भी बढ़ गया है।

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भारत-इंडोनेशिया का संबंध अत्यंत प्राचीन है और इतिहास, पुरातत्व, शिक्षा, संस्कृति, लोगों की आवाजाही के माध्यम से कई शताब्दियों से जुड़ा हुआ है। अतीत की यह घनिष्ठता तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब दो करीबी पड़ोसियों के नेतृत्व में भी बहुत सी समानताएं हैं। प्रधानमंत्री मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो (जोकोवी) अपने बहुलवादी समाजों को ध्यान में रखते हुए लोकतांत्रिक तरीके से अपने देश के समग्र विकास और क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं। मोदी और जोकोवी दोनों एक सामान्य पृष्ठभूमि से आए हैं और अपने समाज और देश की तरक्की और सबका साथ, सबका विकास के सिद्धांत के तहत अपने देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए प्रयत्नशील हैं।

दोनों नेता समावेशी सरकारों के साथ-साथ विकास की उच्च दर को प्राथमिकता दे रहे हैं; दोनों के पास क्षेत्रीय विकास के मिलते-जुलते विचार हैं और दोनों एक न्यायसंगत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में विश्वास करते हैं। यद्यपि दोनों देशों के बीच आपसी समझ के कई ज्ञापन, समझौते और नेक इरादे मौजूद हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन अभी भी अधूरा है। ऐसे में दो महत्वपूर्ण समुद्री पड़ोसी देशों को अपने अनुकूल एक मजबूत, विविधतापूर्ण और व्यापक संबंधों की ओर बढ़ने की जरूरत है। विगत के कुछ वर्षों में दोनों देशों के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में गर्माहट आई है। राष्ट्रपति जोकोवी की दिसंबर 2016 की भारत यात्रा और फिर 2017 के गणतंत्र दिवस में सभी आसियान देशों के साथ उनकी भागीदारी ने आपसी समझ को बढ़ाने का काम किया। पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच कई मंत्रिस्तरीय और उच्चस्तरीय आधिकारिक आदान-प्रदान हुए हैं। मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के रणनीतिक साझेदारी को और भी प्रगाढ़ करेगी।

आने वाले वर्षों में भारत के वैश्विक पुनरुत्थान में समुद्री मामलों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। इसलिए भारत के आंतरिक विकास के साथ ही विदेश नीति में समुद्री अनिवार्यता एक आवश्यक तत्व के रूप में उभरी है। इस परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मोदी का ब्लू इकोनॉमी या नीली अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण, इंडोनेशिया के जोकोवी के वैश्विक समुद्री धुरी के दृष्टिकोण से मेल खाता है। दोनों 24 खरब अमेरिकी डॉलर के मौजूदा अनुमानित संपत्ति मूल्य और 2.5 खरब अमेरिकी डॉलर के वार्षिक मूल्यवर्धन के साथ समुद्र, मत्स्य पालन, परिवहन, पर्यटन और हाइड्रोकार्बन के पारंपरिक क्षेत्रों और साथ ही साथ गहरे समुद्र के खनन, अक्षय ऊर्जा, सागर जैव प्रौद्योगिकी और कई अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्रदान करना जारी रखेंगे। मोदी सरकार ने भारत के समुद्री संबंधों के लिए व्यापक ढांचा तैयार किया है जिसमें भारत के समुद्री पड़ोसियों के साथ सुरक्षा सहयोग को गहन बनाना, हिंद महासागर में बहुपक्षीय सहकारी समुद्री सुरक्षा का निर्माण, नीली अर्थव्यवस्था पर सहयोग बढ़ाने के माध्यम से सभी के लिए सतत आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना, अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों के साथ सहयोग और भारत के समुद्री हितों का बचाव शामिल है।

इंडोनेशिया सुमात्रा के उत्तरी सिरे पर और मलक्का स्ट्रेट के नजदीक सबांग के रणनीतिक द्वीप तक भारत को आर्थिक और सैन्य भागीदारी प्रदान करने पर सहमत हो गया है। भारत सबांग के बंदरगाह और आर्थिक क्षेत्र में निवेश करेगा और एक अस्पताल का निर्माण करेगा। सबांग समझौता मोदी के एक्ट ईस्ट नीति का एक तर्कसंगत कदम होगा जो आर्थिक और सामरिक गतिविधियों के क्षेत्र में अपेक्षित गति प्रदान करेगा।

दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध और व्यापक हुए हैं। साथ-साथ गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों में वृद्धि और रोज उभरती नई सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी, वित्तीय और आर्थिक धोखाधड़ी, साइबर क्राइम जैसे अंतरराष्ट्रीय खतरों का सामना करने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, सूचना साझाकरण, तकनीकी सहयोग और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच बढ़ते सहयोग पर सहमति बनी है।

एक सफल रणनीतिक साझेदारी में आर्थिक भागीदारी की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकताओं में अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देना, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग, मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण, पर्यटन क्षेत्र में सहयोग, युवाओं के बीच व्यापक विचार विनिमय, आवागमन के माध्यमों को मजबूत करना और सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंधों को और मजबूत करने पर बल रहता आया है। अंतत: विदेशों में बसे भारतीयों से घनिष्ठ संबंध, शीघ्रता से उनके समस्याओं का निवारण, नियमों के सरलीकरण का प्रयास और भारत की उन्नति में उनकी भागीदारी को बढ़ाना मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है।

ऐसे में आप्रवासी भारतीयों से मोदी का रूबरू होना, उनके विदेश दौरे के कार्यक्रम में अक्सर शामिल रहता है। अपनी इंडोनेशिया यात्रा के दौरान भी मोदी ने वहां पर बसे भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि पास होने से अधिक साथ होने की ताकत ज्यादा होती है की अपनी सोच से प्रेरित प्रधानमंत्री मोदी की इंडोनेशिया की यात्रा दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा और मजबूती प्रदान करेगी।

[विजिटिंग फेलो, नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, सिंगापुर] 


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