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जानिए- अफगानिस्तान में भारत की कूटनीतिक उपस्थिति से क्‍यों भयभीत है पाकिस्तान

रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने दशकों से अफगान मामलों में एक सक्रिय लेकिन नकारात्मक भूमिका निभाई है और इस्लामाबाद काबुल में एक कमजोर सरकार चाहता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Nov 2019 08:56 AM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 09:14 AM (IST)
जानिए- अफगानिस्तान में भारत की कूटनीतिक उपस्थिति से क्‍यों भयभीत है पाकिस्तान
जानिए- अफगानिस्तान में भारत की कूटनीतिक उपस्थिति से क्‍यों भयभीत है पाकिस्तान

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। अफगानिस्तान पर अपनी ताजा रिपोर्ट में अमेरिकी संसद की स्वतंत्र और द्विदलीय कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने कहा है कि अफगानिस्तान में भारत की सामरिक, कूटनीतिक और वाणिज्यिक उपस्थिति से पाकिस्तान भयभीत है। रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने दशकों से अफगान मामलों में एक सक्रिय, लेकिन नकारात्मक भूमिका निभाई है और इस्लामाबाद काबुल में एक कमजोर सरकार चाहता है।

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भय का कारण

रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में भारत की कूटनीतिक और वाणिच्यिक उपस्थिति और इसके लिए अमेरिका का समर्थन पाकिस्तान की चिंता को बढ़ाता है। भारत ने यहां भारी निवेश किया हुआ है। पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत का असर कम हो और पाकिस्तान के खिलाफ अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल न हो। वहीं भारत की कोशिश है कि उसके अफगान सरकार के साथ अच्छे ताल्लुक बरकरार रहें और तालिबान का असर इतना न बढ़े कि वो भारत के लिए मसला पैदा करे।

ऐसे उपजे संबंध

अफगानिस्तान में भारतीय हित पाकिस्तान के साथ व्यापक क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता से उपजा है, जो मध्य एशिया के साथ मजबूत और प्रत्यक्ष वाणिच्यिक और राजनीतिक संबंध स्थापित करने के भारतीय प्रयासों को बाधित करता है।

भारत विरोधी ताकतों को समर्थन

रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में मौजूद अफगान तालिबान जैसे भारत विरोधी आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी है।

आतंकियों को पनाह

रिपोर्ट में कहा गया है कि, पाकिस्तान तालिबानी और हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को अपने यहां सुरक्षित पनाह दे रहा है। अमेरिकी अधिकारियों ने लंबे समय से पाकिस्तान में आतंकी पनाहगाहों को अफगानिस्तान की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना है।

दिखाई नकारात्मक सक्रियता

सीआरएस की रिपोर्ट के मुताबिक एक अहम पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान ने इतने सालों में अफगानिस्तान के मामलों में अपने मंसूबों को साधने के लिए नकारात्मक सक्रियता दिखाई। पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने अफगान के विद्रोही समूहों के साथ अच्छे संबंध रखे। इसमें खासकर हक्कानी नेटवर्क के साथ पाकिस्तान के खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के अच्छे रिश्ते हैं।

चाहता है कमजोर सरकार

सीआरएस ने कहा, पाकिस्तान कमजोर और अस्थिर अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहता है, जो उसके इशारों पर चले। पाक वहां पश्तून जातीय के नेतृत्व वाली सरकार बनाने के प्रयास में है। क्योंकि पाकिस्तान में पश्तून एक बड़ा अल्पसंख्यक है।

सरकार गिरने की जताई आशंका

सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट में अफगान मिलिट्री विद्रोही होने और सरकार के गिरने की आशंका भी जाहिर की है। सीआरएस ने चेतावनी दी है कि अमेरिका-तालिबान वार्ता रद्द होने के बाद तालिबान फिर से पूरे देश में अपना कब्जा जमा सकता है।

विवाद

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते अधिकतर समय तनाव भरे रहे हैं। अगर ऐतिहासिक तौर पर देखें तो दोनों पड़ोसियों के बीच कई मामले अनसुलझे हैं। दोनों के बीच 1,600 मील लंबी सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। वहीं पाकिस्तान में एक लाख से अधिक अफगान शरणार्थियों की उपस्थिति से अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंध और भी जटिल हो गए हैं।

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