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श्रीलंका के राजनीतिक संकट पर भारत की कड़ी नजर, चीन है मुख्‍य वजह

संसद में राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास पारित होने के बाद चीन की चिंता बढ़ गई है। चीन ने उम्मीद जताई है कि श्रीलंका में जल्द ही राजनीतिक स्थिरता कायम हो जाएगी।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 11:35 AM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 11:35 AM (IST)
श्रीलंका के राजनीतिक संकट पर भारत की कड़ी नजर, चीन है मुख्‍य वजह
श्रीलंका के राजनीतिक संकट पर भारत की कड़ी नजर, चीन है मुख्‍य वजह

कोलंबो, जेएनएन। श्रीलंका के सियासी संकट में पिछले कुछ दिनों में कई नाटकीय घटनाक्रम दिखाई दिए। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को बर्खास्त करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना के फैसले को पलट दिया है। इसके बाद बुधवार को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया। भारत के इस पड़ोसी देश में राजनीतिक संकट किस करवट बैठेगा, ये कह पाना अभी थोड़ा मुश्किल होगा। लेकिन संसद द्वारा राजपक्षे पर अविश्वास जताने के बाद बने हालात क्या रुख लेंगे, इस पर भारत की नजदीकी नजर है। भारत चाहेगा कि इस पड़ोसी देश में हमारी पक्षधर सरकार बने।

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भारत के 'पक्ष' में नजर नहीं आ रहे थे राजपक्षे

ये बात जगजाहिर है कि महिंदा राजपक्षे भारत से दिक्कतें रही हैं। उन्होंने अपनी हार के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। जानकारों की मानें तो साल 2015 में भारत ने राजपक्षे को सत्‍ता से बेदखल करने के लिए अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर सिरीसेना और विक्रमसिंघे के बीच समझौता कराया था। दरअसल, भारत ने यह कदम तब उठाया जब राजपक्षे ने सामरिक दृष्टि से बेहद महत्‍वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को कई वर्षों की लीज पर दे दिया। इस दौरान भारत ने श्रीलंका की राजनीति के तीनों धुरंधरों को साधने की कोशिश की थी। इसी कड़ी में पिछले हफ्ते विक्रमसिंघे नई दिल्‍ली आए थे और पीएम मोदी से मुलाकात की थी। लेकिन ऐसा लग रहा है कि बात बन नहीं पाई। यही वजह हे कि श्रीलंका में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है।

भारत असली चिंता, श्रीलंका में चीन का बढ़ता प्रभाव

भारत की तमिल राजनीति के हिसाब से श्रीलंका काफी महत्व रखता है। उधर, चीन ने श्रीलंका में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। ऐसे में चीन भी श्रीलंका के राजनीतिक संकट पर नजरें लगाए बैठा है। दरअसल, राजनीतिक स्थिरता की जरूरत जितनी श्रीलंका को है, उतनी ही जरूरत दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भी नजर आती है। श्रीलंका की घटनाओं का भारत पर किस तरह असर पड़ता है, ये साफ दिखाई देता है। भारत की चिंता का एक कारण यह भी है कि चीन लगातार श्रीलंका समेत आसपास के देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है। चीन ने श्रीलंका को उस कगार पर ला खड़ा किया है, जहां वो आर्थिक संकट में भी फंसता दिख रहा है।

चीन ने राजनीतिक स्थिरता कायम होने की उम्मीद जताई

संसद में राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास पारित होने के बाद चीन की चिंता बढ़ गई है। चीन ने उम्मीद जताई है कि श्रीलंका में जल्द ही राजनीतिक स्थिरता कायम हो जाएगी। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि श्रीलंका चीन का पारंपरिक दोस्त है। और चीन वहां के बदलते हालात पर पैनी नजर बनाए हुए है।

राजपक्षे के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित

पड़ोसी देश श्रीलंका में राजनीतिक संकट और गहरा गया है। प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया है। राजपक्षे की पार्टी ने स्पीकर के फैसले को मानने से इन्कार कर दिया और कहा है कि राजपक्षे प्रधानमंत्री बने रहेंगे। संसद का यह फैसला राष्ट्रपति सिरिसेन के लिए बड़ा झटका है, तो अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के लिए बड़ी जीत। एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद को भंग करने और दोबारा चुनाव कराने के राष्ट्रपति के फैसले को पलटते हुए उस पर 7 दिसंबर तक के लिए रोक दी थी। राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर अदालत उसी दिन अंतिम फैसला सुनाएगी।

122 सांसदों ने किया समर्थन

कोर्ट के फैसले के बाद स्पीकर ने बुधवार को संसद का सत्र बुलाया था। राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने 26 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। सिरिसेन ने संसद को भंग कर अगले साल चुनाव कराने की भी घोषणा कर दी थी। संसद में राजपक्षे समर्थकों के हंगामे के बीच स्पीकर ने ध्वनिमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि 225 सदस्यीय सदन के ज्यादातर सदस्यों ने राजपक्षे के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन किया। स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने वाले 122 सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र के साथ राष्ट्रपति को फैसले की जानकारी दी और उनसे संविधान के मुताबिक आगे की कार्रवाई करने का आग्रह किया है। साथ ही गुरुवार सुबह दस बजे तक लिए सदन को स्थगित कर दिया।

कोई पीछे हटने को तैयार नहीं...!

अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने अपनी सरकार को बहाल करने की मांग की है। उन्होंने कहा, 'हम अब यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएंगे कि 26 अक्टूबर से पहले जो सरकार थी वह जारी रहे। मैं सभी नौकरशाहों और पुलिस को बताना चाहता हूं कि उन्हें ऐसी सरकार के गैरकानूनी आदेशों को नहीं मानना चाहिए जो लोगों का विश्वास हासिल करने में विफल रही है।' लेकिन राजपक्षे के वरिष्ठ सहयोगियों दिनेश गुनावर्दना और वासुदेव नयनकारा ने स्पीकर की कार्रवाई को अवैध करार दिया है। वहीं, सरकार में मंत्री विमल वीरावासना ने अविश्वास प्रस्ताव को ही गैरकानूनी करार देते हुए कहा है कि राजपक्षे प्रधानमंत्री बने रहेंगे।


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