Covid-19: पाकिस्तान के उलेमाओं को इबादत के नाम पर लोगों की मौत से भी परहेज नहीं!
पाकिस्तान के उलेमाओं ने मस्जिद में नमाज पढ़ने का एलान कर सरकार की मुश्किलें तो बढ़ाई ही हैं साथ ही समाज को भी बर्बाद करने का बीड़ा उठा लिया है।
नई दिल्ली। पूरी दुनिया इस समय सदी की सबसे बड़ी जंग लड़ रही है। पूरी दुनिया का एक ही दुश्मन भी है जिसने दिसंबर 2019 से प्रकोप मचाया है। इस दुश्मन का नाम कोरोना वायरस है। इस वायरस ने दौड़ती-भागती दुनिया के पांवों में बेड़ियां डालने का काम किया है। इसने इस दुनिया के भागते रथ को पूरी तरह से थाम दिया है। सड़कें, मोहल्ले, शहर, राज्य देश पूरी तरह वीरान मालूम पड़ रहे हैं। पूरी दुनिया इस वायरस पर कैसे जीत हासिल की जाए इसका रास्ता तलाशने में जुटी है।
चर्च, गुरुद्वारे और दुनिया के बड़े इस्लामिक देशों में मस्जिदें बंद पड़ी हैं। ऐसा शायद पहले कभी न हुआ हो कि ईस्टर पर हुई प्रार्थना सभा में चर्च खाली पड़ा हो या भारत में नवरात्र के दिनों में मंदिरों में सन्नाटा छाया रहा हो। ये सभी कुछ सिर्फ इसलिए हुआ, क्योंकि हर किसी ने इंसान की जिंदगी को अनमोल माना और सबसे बड़ा धर्म भी यही माना कि सबसे पहले इंसानी जिंदगी को बचाया जाए,लेकिन इस पर अफसोस ही किया जा सकता है कि ऐसा हर कोई नहीं मानता। इसे न मानने वालों में पाकिस्तान शीर्ष पर है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां के उलेमाओं का मानना है कि देश में जारी लॉकडाउन मस्जिदों पर लागू नहीं होता है। इसलिए उन्होंने हमेशा की तरह मस्जिदों में नमाज पढ़ने का एलान कर दिया है। ये एलान किसी एक उलेमा ने नहीं किया है, बल्कि वहां के सभी उलेमा इस फैसले में शामिल हैं। पाकिस्तान के अखबार डॉन के मुताबिक. इसको लेकर बाकायदा कराची प्रेस क्लब में इन उलेमाओं ने पत्रकारों को अपने फैसले की जानकारी भी दी। आपको बता दें कि सोमवार को सरकार की नाक के नीचे इस्लामाबाद में ही मुफ्तियों, मौलवियों और उलेमाओं की बैठक हुई थी जिसमें 50 से अधिक लोगों ने भाग लिया था।
इसमें शिरकत करने वालों में कुछ प्रतिबंधित संगठनों से भी जुड़े थे। यहांं पर ये बताना जरूरी नहीं होना चाहिए कि ये संगठन प्रतिबंधित क्यों हैं। आपको बता दें कि इस फैसले का स्वागत देश के लगभग सभी धार्मिक संगठनों ने भी किया है। इनमें से कुछ संगठन भारत समेत दूसरे देशों में आतंकवाद फैलाने काम करते हैं। इसमें एक राय से फैसला भी किया गया और सरकार से मांग भी की गई थी। मांग थी कि सरकार मस्जिदों में नमाज पढ़ने को लेकर पाबंदी को खत्म करे और फैसला था कि मस्जिदों में तत्काल प्रभाव से नमाज पढ़ना शुरू किया जाएगा। इसमें यदि सरकार ने अड़ंगा लगाया तो ये ठीक नहीं होगा। इसमें ये भी कहा गया था कि मस्जिदों पर लॉकडाउन लागू नहीं होता है।
मंगलवार को ही एनसीसी की बैठक में जब लॉकडाउन को बढ़ाने पर फैसला लिया गया और कुछ जगहों पर इसमें ढील देने की बात कही गई तो उसमें मस्जिद का जिक्र नहीं था। इससे बौखलाए उलेमाओं ने प्रेस क्लब में मस्जिदों में नमाज पढ़ने का एलान कर दिया। इससे दिलचस्प एक और बात है जिसको यहां पर बताना बेहद जरूरी हो जाता है। प्रेस क्लब में पत्रकारों को संबोधित करने के दौरान वहां राउत ए हिलाल के चेयरमैन, मुफ्ती तकी उसमानी और मुफ्ती मुनीबुर्रहमान के अलावा जमीयत उलेमा ए इस्लाम के चीफ मौलाना फजलुर्रहमान भी शामिल थे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में यहां तक कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान देश में बैंक रोज की तरह काम कर हैं, जबकि वो कोई जरूरी उपाय भी नहीं कर रहे हैं।
इन उलेमाओं ने दावा और वादा दोनों ही किया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए काफी जगह है इसलिए वहां पर सख्ती से एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने, सेनिटाइजर का इस्तेमाल करने का सख्ती से पालन किया जाएगा। लेकिन सबसे बड़ी अफसोस की बात ये है कि उलेमा जब ये बातें कर रहे थे तो वो खुद एक-दूसरे से सटकर बैठे थे। इसकी तस्दीक डॉन अखबार के डिजिटल एडिशन में छपी फोटो कर रही है। इसको समाज के साथ किया गया इन उलेमाओं का बेहद घटिया मजाक ही कहा जा सकता है।
आपको बता दें कि आज ही डॉन अखबार में तीन फोटो ऐसी छपी हैं जो पाकिस्तान में जारी लॉकडाउन की कहानी को बयां करने के लिए काफी हैं। इनमें से एक फोटो लाहौर के बादाम बाग सब्जी मंडी की है जहां जबरदस्त भीड़ है और लोग सब्जी और फल खरीद रहे हैं। दूसरी फोटो क्वेटा की है जहां सरकार की तरफ से गरीबों को राशन की सप्लाई की गई है। तीसरी फोटो हैदराबाद में हबीब बैंक के बाहर मौजूद महिलाओं की भीड़ की है।
इन उलेमाओं का इस तरह का बयान ऐसे समय में आया है, जब पाकिस्तान में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या 5983 तक पहुंच गई है। पंजाब, जो इससे सबसे अधिक प्रभावित है वहां पर इसके अब तक 2945 मामले सामने आ चुके हैं। सिंध में 1518, खैबर पख्तूनख्वा में 865, बलूचिस्तान 248, गिलगिट बाल्टिस्तान में 233, इस्लामाबाद 131 और गुलाम कश्मीर 43 मामले अब तक सामने आ चुके हैं। डॉन अखबार के मुताबिक ये सभी आंकड़े 15 अप्रैल सुबह 9 बजे तक के हैं। इतना ही नहीं उलेमाओं का ये बयान इसलिए भी गैर जिम्मेदाराना है, क्योंकि पिछले ही दिनों यहां पर तबलीगी जमात की वजह से कोरोना वायरस के मामले अचानक तेजी से बढ़े हैं। इस बात से ये सभी अच्छी तरह से वाकिफ भी हैं। ऐसे में ये सवाल उठना जरूरी हो जाता है कि क्या पाकिस्तान के उलेमाओं को इबादत के नाम पर लोगों की मौत का जरा भी इल्म नहीं है।
पाकिस्तान के उलेमाओं के उलट भारत के भी उलेमा हैं जो लगातार इस बात को कह रहे हैं कि सभी लोग अपने घरों में रहें और वहीं पर रहकर इबादत करें। भारत के चीफ इमाम ने पिछले दिनों दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान साफ कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री के लॉकडाउन के एलान के तुरंत बाद ही देश की सभी मस्जिदों को बंद करने और सभी को घर में रहने और वहीं नमाज पढ़ने का आदेश दे दिया था। उनकी निगाह में मौजूदा समय में खुदा की सबसे बड़ी इबादत यही है कि इंसानों को बचाया जाए। इंसानों की जान इस वक्त सबसे कीमती है। आपको बता दें कि भारत में इस तरह की कोई तस्वीर सामने नहीं आई है कि जहां किसी ने जबरदस्ती मस्जिद में ही नमाज पढ़ने की बात कही हो या सरकार के सामने ऐसी कोई भी मांग की है। भारत के सभी धर्मों से जुड़े लोगों का एक सुर में मानना है कि सबसे बड़ी इबादत आज के समय में इंसान और इंसानियत को बचाना है।
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