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नेपाल के रास्ते बांग्लादेश भेजे जा रहे हैं गौ-वंशीय पशु, ऐसे सामने आया सच Gorakhpur News

महराजगंज जिले के मधवलिया गो-सदन और आसपास के क्षेत्रों से नेपाल के रास्‍ते बांग्‍लादेश को पशुओं की तस्‍करी की जाती थी। जांच में इसका खुलासा हुआ है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 09:16 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 08:30 AM (IST)
नेपाल के रास्ते बांग्लादेश भेजे जा रहे हैं गौ-वंशीय पशु, ऐसे सामने आया सच Gorakhpur News
नेपाल के रास्ते बांग्लादेश भेजे जा रहे हैं गौ-वंशीय पशु, ऐसे सामने आया सच Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। यूपी के महराजगंज जिले के मधवलिया गो-सदन से नेपाल के रास्‍ते बांग्‍लादेश पशुओं की तस्‍करी की जाती थी। मामला सामने आने पर यूपी सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए डीएम समेत पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया है।

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यहां सक्रिय हैं अंतरराष्ट्रीय पशु तस्कर

यह गो सदन नेपाल सीमा से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां अंतरराष्ट्रीय पशु तस्करों का नेटवर्क लंबे समय से सक्रिय है। तस्‍कर खुले में घूम रहे बेसहारा पशु तस्करों के साफ्ट टारगेट बना रहे थे। खुली सीमा का लाभ उठा प्रतिदिन 10 से 20 की संख्या में गोवंशीय पशु नेपाल व बिहार सीमा के रास्ते बांग्लादेश पहुंचाए जा रहे थे। पशु तस्करों ने गो सदन के आसपास स्थित गांवों में अपना आशियाना भी बना लिया है। जांच में गोसदन में तैनात गो सेवकों व सुपरवाइजरों की भूमिका भी संदिग्ध मिली है।

देर रात कराते थे सीमा पार

देर रात हरी झंडी मिलने के बाद ही तस्कर गायों को नेपाल सीमा को पार करा देते थे। पांच सौ एकड़ विस्तृत भू भाग में फैले गो सदन मधवलिया में वर्तमान समय में लगभग 1200 गो वंशीय पशुओं को रहने के लिए शेड बनाया गया है। बाकी पशु गोसदन क्षेत्र में खुले में रहते थे। गो सदन परिसर में खुले में घूम रहे पशु ही तस्करों के निशाने पर होते थे। जिन पशुओं को तस्करी करानी होती थी, उन्हें ही खुले में छोड़ा जाता था।

महज कोरम पूर्ति तक सीमित थी चिकित्सा व्यवस्था

गोसदन में रह रही गायों की चिकित्सा के लिए प्रशासन द्वारा प्रतिदिन एक पशु डाक्टर की ड्यूटी लगाई गई थी, लेकिन यह व्यवस्था भी महज कागजों में ही सिमटकर रह गई। प्रतिदिन बड़ी संख्या में गो वंशीय पशु तड़पकर काल के गाल में समाते रहे, लेकिन जिम्मेदारों ने सुधि नहीं ली।

गायों का चमड़ा व हड्डी बेचने में भी खेल

मरी हुई गायों का चमड़ा व हड्डी बेचकर भी गोसदन प्रबंधन द्वारा आय अर्जित की जाती रही है। जांच में यह बात उजागर हुई कि जिम्मेदारों द्वारा बेचे गए चमड़े व हड्डी से प्राप्त आय का कोई विवरण रजिस्टर में दर्ज नहीं किया गया है। 

चारा के पैसे के लिए हर माह 13.91 लाख का गोलमाल 

मधवलिया गोसदन से क्या गोवंश की तस्करी की जा रही थी? क्या तस्करी के इस खेल से पर्दा न उठ जाए, इसलिए 1546 गायों के गायब होने की जानकारी छिपाई गई या फिर इन गायों की प्रबंधन की लापरवाही से मौत हुई? सवाल तो यह भी खड़ा हो रहा है कि गायों की संख्या बढ़ाकर दिखाने के पीछे जिम्मेदार कहीं चारा तो नहीं डकार रहे थे। जांच के बाद अब इससे पर्दा उठने लगा है। अपर आयुक्त की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, उसके मुताबिक मधवलिया गोसदन के इंट्री रजिस्टर में 2500 गायों की संख्या दर्ज की गई है। जबकि मौके पर महज 954 हैं। एक गाय को चारे के लिए शासन प्रतिदिन 30 रुपये देता है। इस हिसाब से गोसदन के जिम्मेदार 1546 गायों का प्रतिदिन 46380 रुपये डकार रहे थे। यानी एक माह में 13.91 लाख का गोलमाल किया जा रहा था।

गो-सदन की भूमि में गड़बड़झाला

मामले को गोवंश की तस्करी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। गोसदन के समीप बसे गांवों में पशु तस्करों ने वर्षों से ठिकाना बनाया हुआ है। नेपाल सीमा गोसदन से महज आठ किमी दूर है। ऐसे में तस्कर आसानी से गोवंशियों को नेपाल की सीमा में पहुंचाकर उन्हें बांग्ला देश तक ले जाते रहे हैं। कुछ माह पहले काफी संख्या में गोवंश के मरने की सूचना भी फैली थी, जिसमें बाद में प्रबंधन ने चार के मरने की पुष्टि की थी।

कहने को मधवलिया से सटे मैरी व पिपरहिया गांव के पशु आश्रय केंद्र भी गोसदन के परिसर में ही चल रहे थे लेकिन ये कागजों में ही थे। गोसदन की 328 एकड़ भूमि को महज 13 हजार रुपये के हिसाब से हुंडा दे दिया गया था। अकेले एक व्यवसायी को 105 एकड़ भूमि आवंटित कर दी गई। अब कोई अधिकारी कुछ भी बोलने से कतरा रहा है।


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