मुक्तसर श्री दुर्गा मंदिर
रामबाड़ा बाजार स्थित श्री दुर्गा मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है। करीब सौ साल पुराने इस मंदिर में दुर्गा माता के अलावा संतोषी माता, विष्णु जी, हनुमान जी, लक्ष्मी माता जी, कृष्ण जी, गणेश जी, राधा-कृष्ण जी, श्याम खाटू जी, गरुड़ जी की मूर्तियों सहित राम परिवार, शिव परिवार की मूर्तियां भी विराजमान हैं।
श्री मुक्तसर साहिब। रामबाड़ा बाजार स्थित श्री दुर्गा मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है। करीब सौ साल पुराने इस मंदिर में दुर्गा माता के अलावा संतोषी माता, विष्णु जी, हनुमान जी, लक्ष्मी माता जी, कृष्ण जी, गणेश जी, राधा-कृष्ण जी, श्याम खाटू जी, गरुड़ जी की मूर्तियों सहित राम परिवार, शिव परिवार की मूर्तियां भी विराजमान हैं।
पौराणिक महत्व
मां दुर्गा जगत माता हैं। जगत माता होने के चलते इनको जगदम्बा भी कहा गया है। मां दुर्गा की मान्यता इसलिए च्यादा है कि क्योंकि इन्हें ब्रहमा, विष्णु और महेश्वर तीनों ही देव पूजते हैं। अन्य देवों का जन्मदिन वर्ष में सिर्फ एक बार ही मनाया जाता है। जैसे महांशिवरात्रि, रामनवमी, श्री कृष्ण जन्माष्टमी आदि सभी पर्व वर्ष में एक बार आता है लेकिन यह पर्व वर्ष में 18 बार मनाया जाता है। छह-छह महीने के अंतराल में नौ-नौ दिन नवरात्रों के रूप में मां का पूजन होता है क्योंकि मां सभी को शक्ति प्रदान करने वाली हैं। ब्रहमा को सृष्टि रचने की, विष्णु को पालन करने की तथा शंकर को संहारिनी शक्ति प्रदान करती है। मां के रूप अनेक हैं। मां ने महिषासुर, शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड, मधु-कैटब जैसे अनेकों दैत्यों का नाश किया। चंड-मुंड का नाश करने के लिए मां ने चंडी रूप धारण किया।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी पंडित रूबी शर्मा के अनुसार, इस मंदिर में दुर्गा जी की मूर्ति मुक्तसर के मान परिवार के सदस्य नाहर सिंह द्वारा जयपुर (राजस्थान) से पैदल चलकर सिर पर उठाकर लाई गई थी। इस मंदिर का निर्माण भी मान परिवार की ओर से किया गया था। करीब पांच कनाल जगह में बने इस मंदिर की बेहद मान्यता है। दुर्गा मां की पूर्ति के आगे खड़े होकर जो भी मुराद की जाती है वह हमेशा पूरी होती है। मंदिर में हमेशा अखंड ज्योति जलती रहती है।
उन्होंने बताया कि नवरात्र में अष्टमी की रात में दुर्गा स्तुति 501 पाठ का आयोजन किया जाता है। रात को करीब साढ़े आठ बजे शुरू होने वाला यह पाठ नौवीं को तड़के करीब चार बजे संपन्न होता है। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर मात्था टेकने के लिए पहुंचते हैं।
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