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बात बिगड़ने की वजह बने युवराज

बीसीसीआई की कार्य समिति ने सोमवार को एकमत से सहारा समूह की यह अहम मांग ठुकरा दी है कि उसकी पुणे फ्रेंचाइजी को इंडियन प्रीमियर लीग के अगले टूर्नामेंट में छह विदेशी खिलाड़ी उतारने की स्वीकृति दी जाए। ऐसी जानकारी मिली है।

By Edited By: Published: Mon, 13 Feb 2012 05:51 PM (IST)Updated: Mon, 13 Feb 2012 05:51 PM (IST)
बात बिगड़ने की वजह बने युवराज

नई दिल्ली। बीसीसीआई की कार्य समिति ने सोमवार को एकमत से सहारा समूह की यह अहम मांग ठुकरा दी है कि उसकी पुणे फ्रेंचाइजी को इंडियन प्रीमियर लीग के अगले टूर्नामेंट में छह विदेशी खिलाड़ी उतारने की स्वीकृति दी जाए। ऐसी जानकारी मिली है।

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नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बीसीसीआई के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, अध्यक्ष ने कार्य समिति को सहारा की मांगों के बारे में बताया। अहम मुद्दों में से एक अगले टूर्नामेंट में छह विदेशी खिलाडि़यों को उतारने की स्वीकृति देना था। पूरी कार्य समिति का नजरिया एकमत था कि यह मांग अस्वीकार्य है और इसलिए इसे खारिज कर दिया गया। इस मुद्दे पर विस्तार से रोशनी डालते हुए अधिकारी ने कहा, यह मांग निश्चित तौर पर तर्कसंगत नहीं है क्योंकि सदस्यों का मानना है कि इससे आठ अन्य फ्रेंचाइजियां नाराज हो जाएंगी। सदस्यों का मानना है कि एक नाराज पक्ष की मांग को मानने के लिए आप बीसीसीआई की संपत्ति के आठ अन्य साझेदारों की नाराजगी मोल नहीं ले सकते।

एक अन्य मुद्दा बीसीसीआई के बैंक गारंटी का एक हिस्सा लौटाना था क्योंकि मैचों की संख्या 94 से घटाकर 74 कर दी गई। बीसीसीआई को यह प्रस्ताव भी अस्वीकार्य लगा। सदस्यों ने हालांकि दो अन्य मांगों को स्वीकार्य माना। अधिकारी ने कहा, बेशक वे युवराज सिंह का विकल्प लेने के हकदार हैं और इसे लेकर कभी कोई संदेह नहीं था। यहां तक कि अध्यक्ष ने भी यह बात साफ कर दी थी। अधिकारी ने कहा, दूसरा, वे रणनीतिक साझेदार चाहते थे और बीसीसीआई को ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता कि आखिर क्यों उन्हें साझेदार नहीं मिले। लेकिन समिति को लगा कि छह विदेशी खिलाडि़यों को खिलाने की उनकी मांग पर बातचीत नहीं हो सकती। समिति ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

बीसीसीआई के मांग खारिज करने से नाराज सहारा समूह ने बोर्ड को मुंबई में उनकी बैठक की सूचना लीक करने का आरोप लगाया। सहारा समूह ने एक बयान में कहा, एन श्रीनिवासन ने सहारा के उठाए गए मुद्दों के संबंध में नियमों के आधार पर सीमाएं बताने का प्रयास किया। उन्होंने सुंदर रमन [आईपीएल सीईओ] से कहा कि वह नियमों को संदर्भ में रखकर सभी मुद्दों को विस्तार से बताएं। बयान के मुताबिक, सुब्रत राय सहारा ने बीसीसीआई अधिकारियों से आग्रह किया कि वे नियमों को विस्तार से नहीं बताए। उन्होंने कहा कि खेलों में किसी भी मतभेद को पूरी खेल भावना के साथ लिया जाना चाहिए और इसी के मुताबिक इसका हल निकलना चाहिए।

इसमें कहा गया, उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष और उनकी टीम से आग्रह किया कि नियमों का हवाला देना और इसके प्रत्येक शब्द पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है। आखिर यह बीसीसीआई के खुद के नियम हैं और भारत सरकार के संवैधानिक नियम नहीं। सहारा समूह युवराज सिंह के विकल्प सहित कई अन्य मुद्दों पर मतभेद के कारण चार फरवरी को आईपीएल की नीलामी से हट गया था। सहारा समूह ने कहा, खिलाडि़यों के मुद्दे पर चर्चा की गई जिससे कि सभी को बराबरी का मौका मिल सके। यह सुनिश्चित करने के लिए 2013 में खुली नीलामी की जरूरत का सुझाव भी सामने रखा गया।

बयान में कहा गया, युवराज सिंह के स्तर का कोई भी भारतीय खिलाड़ी नहीं बचा होने के कारण हमें अंतिम एकादश में एक अतिरिक्त विदेशी खिलाड़ी उतारने की स्वीकृति दी जानी चाहिए थी। हमें अहसास हुआ कि युवराज की क्षमता वाले खिलाड़ी की भरपाई के लिए यह भी काफी नहीं होगा। सहारा साथ ही चाहता है कि उसके द्वारा दी गई बैंक गारंटी को बीसीसीआई वापस करे। बयान के अनुसार, तथ्य यह है कि 2008 में आईपीएल में प्रवेश करने वाली शुरूआती आठ टीमों में से किसी ने फ्रेंचाइजी फीस के संदर्भ में बैंक गारंटी जमा नहीं कराई। लीग में बाकी बची नौ टीमों में से केवल सहारा ने फ्रेंचाइजी फीस के संबंध में बैंक गारंटी जमा कराई है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पिछले 12 साल में सहारा कभी बीसीसीआई को भुगतान करने से नहीं चूका है, यह भेदभावपूर्ण है।

इसमें कहा गया, इसी तरह अगर आईपीएल से जुड़े मुद्दे सुलझ जाते हैं तो हम भारतीय क्रिकेट टीम के प्रायोजन पर भी चर्चा कर सकते हैं, हालांकि यह बता दिया गया है कि हमें खेल और सामाजिक विकास कार्यक्रम की अपनी घोषणाओं को क्रिकेट से कुछ पैसा सामाजिक गतिविधियों में लगाकर इसे संतुलित करना होगा। सहारा ने कहा कि वह हटने के बाद भारतीय टीम के लिए नया प्रायोजक ढूंढने का प्रयास कर रहा था लेकिन हमें यह जानकर काफी हैरानी हुई कि वे इस मौके में दिलचस्पी तो रखते थे लेकिन मौजूदा कीमत का 50 से 60 प्रतिशत से अधिक देने के इच्छुक नहीं थे।

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