उत्तराखंड की सभ्यता-संस्कृति यहां के रीति-रिवाज और त्योहारों को मनाने का तरीका बेहद ही अनूठा है। दीपावली जिसे हम पहाड़ी में इगास-बग्वाल के नाम से भी जानते हैं का भी प्रदेशवासी बेसब्री से इंतजार करते हैं। क्योंकि इस दिन वह सदियों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य

PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य

PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य
प्रदेश में इगास-बग्वाल के दिन भैलो खेलने का भी रिवाज है। जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। इस दिन का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि इस दिन वह एक साथ मिलकर भैलो खेलकर या नृत्य कर अपनी खुशी एक दूसरे के साथ बांटते हैं।

PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य
भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है। बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं।

PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य
यह परंपरा उत्तराखंड के हर कोने में सदियों से चली आ रही है। इस दिन लोग भैलो खेलने के साथ ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति में गुम हो जाते हैं। लोग समूहों में एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं, जिसकी छटा देखते ही बनती है।

PICS: इगास-बग्वाल(दिवाली) पर उत्तराखंड की परंपरा को जीवंत करता भैलो नृत्य
उत्तराखंड, एक ऐसा प्रदेश जहां की संस्कृति कर्इ रंगों से भरी हुर्इ है। जहां की बोली में एक मिठास है। जहां हर त्योहार को अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। इगास-बग्वाल यानी दीपावली भी एक ऐसा ही त्योहार है जो उत्तराखंड की परंपराओं को जीवंत कर देता है।
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