ग्लैमर नहीं मेहनत है यहां
फैशन शब्द से जब किसी की पहचान तक नहीं थी तब इंडियन क्राफ्ट को स्टाइल देकर फैशन डिजाइनिंग को जन्म दिया पद्मश्री रितु कुमार ने। 45 साल का सफर तयकर उन्होंने फैशन इंडस्ट्री को जिस मुकाम पर पहुंचाया है, वहां से सात समंदर की दूरियां सिमट गई हैं। फैब्रिक डिजाइन
फैशन शब्द से जब किसी की पहचान तक नहीं थी तब इंडियन क्राफ्ट को स्टाइल देकर फैशन डिजाइनिंग को जन्म दिया पद्मश्री रितु कुमार ने। 45 साल का सफर तयकर उन्होंने फैशन इंडस्ट्री को जिस मुकाम पर पहुंचाया है, वहां से सात समंदर की दूरियां सिमट गई हैं। फैब्रिक डिजाइन से कॅरियर की शुरुआत करने वाली रितु कुमार ने फैशन, कॅरियर और महिलाओं की खूबियों पर खुलकर की बात...
आप ट्रेडीशनल क्राफ्ट में इनोवेशन के
लिए जानी जाती हैं। रुझान कैसे बना?
मैं शुरू से क्राफ्ट, आर्ट और ट्रेडीशन के
साथ जुड़ी रहना चाहती थी। मुझे आर्ट और
लोगों से प्यार है। अपनी परंपरा के साथ
काम करते रहने से कई लोगों को रोजगार
मिल जाता है। यह महिला सशक्तीकरण का
जरिया भी बन जाता है। इंडिया में फैशन
परंपरा से जुड़ा हुआ है। इसलिए मेरा काम
इंडियन ट्रेडीशन के साथ क्राफ्ट एरिया से
शुरू हुआ है।
आजकल फैशन डिजाइनर्स इंडियन
कल्चर को लेकर नए प्रयोग कर रहे हैं।
क्या इन कपड़ों की मांग अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर है?
इंटरनेशनल लेवल पर बात अलग है।
डिजाइनर्स इंडियन कल्चर को लेकर
जितने एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं, वे
इंडियन मार्केट के लिए ही हैं।
इंटरनेशनल मार्केट में ऐसे कपड़े
नहीं चलते जो हम पहनते हैं।
उनकी लाइफस्टाइल के साथ
ये मैच नहीं करते हैं। वैसे
इंडिया के प्रिंट्स पूरी दुनिया में
लोकप्रिय हैं।
आप पद्मश्री से सम्मानित हुईं। फैशन
डिजाइनिंग को पद्म पुरस्कारों तक ले
जाने पर कैसा फील करती हैं?
मुझे खुशी इस बात की हुई कि इस सम्मान
से फैशन डिजाइनिंग जैसे फील्ड को पहचान
मिली। पद्मश्री जब शुरू हुई थी तब से
मेडिसिन, स्पोट्र्स, पारंपरिक संगीत, नृत्य
और इंजीनियरिंग आदि में ही Óयादातर
पद्मश्री मिली है। जब भारत को आजादी
मिली थी तो टेक्सटाइल जैसा फील्ड कोई
जानता भी नहीं था। इस प्रोफेशन के रूप में
तो इसका जन्म भी नहीं हुआ था। बहुत
अ'छा लगा कि फैशन डिजाइनिंग और
आईटी जैसे नए फील्ड्स में भी पद्मश्री
मिली।
फैशन डिजाइनिंग में काफी ग्लैमर नजर
आता है, लेकिन अंदर मेहनत कितनी है?
आमतौर पर लोग इसे ग्लैमर की ही फील्ड
समझते हैं। सजी-धजी मॉडल्स की जो इमेज
लोगों के पास पहुंचती है वह तो आखिर में
सामने आती है, लेकिन इसके पीछे बेहद
कॉम्पलिकेटेड प्रॉसेस है। जैसे कोई मेडिकल
साइंस करता है, इंजीनियरिंग करता है वैसे ही
गारमेंट में टेक्सटाइल पर काफी स्टडी करनी
पड़ती है। वैसे इसमें रिटेल, मॉडलिंग,
फोटोग्राफी जैसे कई क्षेत्र हैं। यह
मल्टीडाइमेंशन फील्ड है।
कामयाबी के इस सफर में
एक महिला होने के नाते
किस प्रकार की
चुनौतियां सामने आईं?
जैसे हर महिला
चुनौतियां महसूस
करती है, वैसे ही मैंने
भी महसूस किया। पहली बात तो कॅरियर
और फैमिली को बैलेंस करना मुश्किल होता
है। हम महिलाओं में मल्टीटास्क करने की
जो काबिलियत है, वही हमें सफल बनाती है।
चाहे कोई महिला क'छ के गांव में एंब्रॉयडरी
कर रही हो या वह कॉरपोरेट बैंक में बैठी हो,
मल्टीटास्कर होना उसकी खूबी है और मुझे
लगता यही एक क्वालिटी हमें आगे ले जाती
है। कामयाबी की राह में फैमिली सपोर्ट होना
भी बहुत जरूरी व महत्वपूर्ण है। मैं
भाग्यशाली रही कि मैंने अपने पति के साथ
काम शुरू किया और मुझे अपने परिवार का
पूरा सपोर्ट मिला।
क्या आपने कभी सोचा था कि इस
मुकाम तक जाएंगी?
अगर काम में आपकी दिलचस्पी है तो वह
आपको आगे लेकर जाती है और फिर मुझे
पता था कि मुझे किस तरफ जाना है। कई
बार सफलता नहीं भी मिली। शुरू के
प'चीस साल में तो किसी पत्रकार से
मिली भी नहीं। उस वक्त इतनी पत्रिकाएं
या अखबार नहीं थे, जो थे भी उनकी
फैशन में दिलचस्पी नहीं थी। मैंने भी
इतनी कल्पना नहीं की थी।
क्या भारतीय कढ़ाई कम हो रही
हैं?
कढ़ाई के लिए जितना मार्केट चाहें,
उतना मौजूद है। कढ़ाई पर पिछले
बीस-तीस सालों में काफी काम हुआ
है। मैंने खुद ही जरदोजी में बहुत
काम किया है। अब तो भारत में
ब्राइडल मार्केट इतनी बढ़ गई है कि
वहां कढ़ाई और हैंडीक्राफ्ट्स के लिए
कोई मुश्किल नहीं है। मुश्किल
वीवर्स की है, जो जुलाहे हैं उनकी
प्रॉब्लम है। कढ़ाई तो हर छोटे
बुटीक में भी हो रही है।
हाथ की कढ़ाई आसान
काम है। उसके
लिए आपको कोई साधन नहीं चाहिए, जबकि
हैंडलूम्स के लिए काफी बंदोबस्त चाहिए।
कढ़ाई के लिए सिर्फ कपड़ा और हाथ
चाहिए। वह आसान है।
हैंडलूम वीवर्स के लिए आप कितना काम
कर रही हैं?
मुश्किल यह हो गई है कि सस्ते कपड़ों के
लिए लोगों को और विकल्प मिल गए हैं।
बहुत सारे फैब्रिक मार्केट में आ गए है। सस्ते
की वजह से ही पॉलिएस्टर जैसे कपड़े
मैकेनाइÓड फॉर्म में बनते हैं। इस प्रतियोगिता
ने हैंडलूम्स का सर्वाइवल मुश्किल बना दिया
है। अब जितनी हैंडलूम्स बची हैं वे सिर्फ
अपर लेवल मार्केट में ही सप्लाई हो सकती
हैं। बहुत ही अ'छी साडिय़ां बुनने वाले
मास्टर वीवर्स के सामने भी यह प्रतियोगिता
पंहुच गई हैं।
अब उसको बनाए रखना, आगे बढ़ाना और
इनोवेशन करना डिजाइनर्स का काम रह
जाता है। मैं काम बनारस, ओडिशा, आंध्र
प्रदेश, गुजरात में काम कर रही हूं। उम्मीद
है कि वीवर्स को इससे फायदा होगा। हमारा
अगला प्रोजेक्ट है कि हम हैंडलूम को पूरे
देश में बढ़ावा देंगे। महिलाओं के कल्याण
और हैंडलूम को प्रोमोट करने के लिए हमारे
प्रयास जारी हैं।
नई पीढ़ी की पसंद-नापसंद के हिसाब
से आपने अपने डिजाइंस को कितना
बदला है?
नई जेनरेशन को आज सब कुछ चाहिए।
उसे जींस और टी-शर्ट चाहिए तो इसका यह
मतलब नहीं है कि वे अपनी ट्रेडीशंस से कट
गए हैं। उन्हें वेयरेबल और ईजी चीजें
चाहिए। उन्हें कैजुअल चाहिए। वे हर वक्त
साड़ी तो नहीं पहनना चाहेंगी, लेकिन अगर
आप इनके लिए बनाए गारमेंट में ट्रेडीशन
का कोई एलीमेंट डाल दें तो वह उनको
बहुत पसंद आता है। इनके लिए डिजाइन
करना हमारे लिए चैलेंज है।
फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में लेखन की
क्या स्थिति है? आपने भी किताब
लिखी है?
मैंने कॉस्ट्यूम्स एंड टेक्सटाइल्स ऑफ
रॉयल इंडिया किताब लिखी है, जो फैशन
डिजाइनिंग पर नहीं, बल्कि इंडियन रॉयल
कॉस्ट्यूम्स पर है। मैं मानती हूं कि
आजकल फैशन डिजाइनिंग फील्ड में
लेखन बहुत Óयादा हो रहा है। टेक्सटाइल्स
पर सैंकड़ों किताबें हैं और काफी सारी
डिजाइनिंग पर लिखी जा रही हैं। गत पांच
सालों में जितना काम हुआ वह बहुत
Óयादा है। आजकल मैं
अपनी दूसरी
किताब लिख रही
हूं।
ापने कई सेलेब्रिटीज के
कपड़े डिजाइन किए हैं। कैसा
अनुभव रहा?
सेलेब्रिटीज की अपनी पर्सनैलिटी होती है। कई
मिस इंडिया स्टार बनी हैं। मैं उनको पर्सनली जानती
हूं। शुरू-शुरू में लगता है कि वे स्टार्स हैं, लेकिन
बाद में वे स्टाइल पसंद करने वाले लोग ही लगते
हैं और उनके साथ काम करना आसान हो जाता
है। हमारे डिजाइंस प्रिंसेस डायना ने भी पहने
हैं। हमारा लंदन में स्टोर है। वहां प्रिसेंस
डायना अपनी फ्रेंड जेमिमा के
साथ आती थीं।
जो युवा
इस फील्ड में आना
चाहते हैं, उनसे क्या कहना चाहेंगी?
अगर आप सोचते हैं कि आप फैशन डिजाइनिंग
में आएंगे और सीधे रैंप पर पहुंच जाएंगे या आप मशहूर
हो जाएंगे या आपकी हजारों दुकानें होंगी तो ऐसा नहीं है। यह
प्रोफेशन उस डॉक्टर के काम की तरह है जिसने सालों साल
प्रैक्टिस के बाद नई मेडिसिन डिस्कवर की है। यह मुश्किल है,
लेकिन एक प्रोफेशन के तौर पर इसमें कई सारे क्षेत्र हैं
जहां यूथ काम कर सकते हैं, जैसे-फैब्रिक्स,
मार्केटिंग, मर्चेडाइजिंग आदि। वैसे युवा
फैशन डिजाइनर काफी क्रिएटिव हैं।
उनकी क्रिएटिविटी इंडियन
डायरेक्शन में है। वे इंडियन
क्राफ्ट के साथ नए-नए
प्रयोग कर रहे हैं, जो
सराहनीय है।
यशा