महान एथलीट मिल्खा सिंह को जीवन भर कचोटती रहीं दो यादें, माता-पिता की आंखों से सामने हुई थी हत्या
मिल्खा रोम में इतिहास रचने से 0.1 सेकेंड से चूक गए थे। रोम ओलंपिक और टोक्यो ओलंपिक-1964 में उनके साथी रहे बाधा दौड़ धावक गुरबचन सिंह रंधावा उन चुनिंदा जीवित एथलीटों में से हैं जिन्होंने मिल्खा सिंह की 400 मीटर की दौड़ देखी थी।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। उड़न सिख को दो घटनाएं ही हमेशा कचोटती रहीं, एक विभाजन के दौरान पाकिस्तान में उनकी आंखों के सामने उनके माता पिता की हत्या और दूसरी रोम में पदक चूकना। 1960 में रोम ओलंपिक में उनके जीवन की सबसे बड़ी दौड़ थी और वह पलक झपकने के अंतर से पदक से चूक गए।
मिल्खा रोम में इतिहास रचने से 0.1 सेकेंड से चूक गए थे। रोम ओलंपिक और टोक्यो ओलंपिक-1964 में उनके साथी रहे बाधा दौड़ धावक गुरबचन सिंह रंधावा उन चुनिंदा जीवित एथलीटों में से हैं जिन्होंने मिल्खा सिंह की 400 मीटर की दौड़ देखी थी। 82 वर्ष के रंधावा ने कहा, 'मैं वहां था और पूरे भारतीय दल को उम्मीद थी कि रोम में इतिहास रचा जाएगा। हर कोई सांस थाम कर उस दौड़ का इंतजार कर रहा था। वह शानदार फॉर्म में थे और उनकी टाइमिंग उस समय दुनिया के दिग्गजों के बराबर थी। स्वर्ण या रजत मुश्किल था लेकिन सभी को कांस्य के तमगे का तो यकीन था। वह इसमें सक्षम था।' मिल्खा ने वह दौड़ 45.6 सेकेंड में पूरी की और वह दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस से 0.1 सेकेंड से चूक गए। उन्होंने 1958 में इसी प्रतिद्वंद्वी को पछाड़कर राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण जीता था।
रंधावा ने कहा, 'पूरा भारतीय दल स्तब्ध रह गया। निशब्द। मिल्खा सिंह तो बेहाल थे। वह आगे चल रहे थे लेकिन बाद में उन्होंने एक गलती की और धीमे हो गए। इससे एक शर्तिया कांस्य उनके हाथ से निकल गया।' मिल्खा को जिंदगी भर इस चूक का मलाल रहा।
मिल्खा को था यकीन, तीन से चार दिन में ठीक हो जाऊंगा
जिंदगी भर जीत और हार के बीच सकारात्मकता बनाए रखने वाले महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह ने कोरोना संक्रमण का पता चलने के बाद भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था और उन्हें यकीन था कि अपनी स्वस्थ जीवन शैली और नियमित व्यायाम के दम पर वह वायरस को हरा देंगे।
उन्होंने कहा था कि मैं 19 मई को कोरोना संक्रमित हुआ था लेकिन ठीक हूं। कोई दिक्कत नहीं है। कोई बलगम या बुखार नहीं। यह चला जाएगा। डॉक्टर ने कहा है कि मैं तीन-चार दिन में ठीक हो जाऊंगा। इसके कुछ दिन बाद एहतियात के तौर पर उन्हें मोहाली के फोíटस अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर भी कोरोना संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती हुई और कुछ दिन पहले ही उनका निधन हुआ था।
परिवार के अनुरोध पर मिल्खा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई लेकिन तीन जून को फिर भर्ती कराना पड़ा। मिल्खा ने 20 मई को कहा था ,'हमारे रसोइये को बुखार था। हमने उसे उसके गांव भेज दिया। उसके बाद हम सभी ने कोरोना जांच कराई। मैं हैरान हूं कि मुझे संक्रमण कैसे हो गया। मैं तो घर के भीतर ही रह रहा था। सिर्फ सुबह टहलने और कसरत के लिए निकलता था। चिंता मत करो, मैं ठीक हो जाऊंगा।'