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भारत को बैडमिंटन में गोल्ड दिलाने वाले पहले पैरा एथलीट बने प्रमोद भगत ने कहा- मां का सपना हुआ साकार

Tokyo Paralympics 2020 भगत ने बताया कि सिंगल्स में दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी होने के नाते मुझे पदक जीतने का पूरा विश्वास था। टोक्यो जाने से पूर्व मैंने लखनऊ में ट्रेनिंग के दौरान काफी मेहनत की थी।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 04 Sep 2021 09:54 PM (IST)Updated: Sat, 04 Sep 2021 09:54 PM (IST)
भारत को बैडमिंटन में गोल्ड दिलाने वाले पहले पैरा एथलीट बने प्रमोद भगत ने कहा- मां का सपना हुआ साकार
भारत को बैडमिंटन में गोल्ड दिलाने वाले पहले पैरा एथलीट बने प्रमोद भगत (एपी फोटो)

नई दिल्ली, जेएनएन। बिहार के हाजीपुर में पैदा हुए प्रमोद भगत शनिवार को बैडमिंटन के पुरुष सिंगल्स में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय बने। दैनिक जागरण से बातचीत में प्रमोद ने कहा कि हाजीपुर में मुझे जन्म देने वाली मां मानती देवी कं या ओडिशा में गोद लेकर मेरी जिंदगी संवारने वाली बुआ कुसुम भगत या फिर मेरे दोनों कोच एसपी भगत व गौरव खन्ना, सभी ने मेरे लिए जो सपना देखा था, उसे साकार करने में मैं कामयाब रहा। देशवासियों का समर्थन मुझे हमेशा मिला है, जिनकी बदौलत मैं आज यह मुकाम हासिल कर सका हूं। बस मलाल इस बात का है कि खुशी के इस पल को साझा करने के लिए मेरी जिंदगी के अभिन्न हिस्सा रहे मेरे बुआ-फूफा इस दुनिया में नहीं हैं।

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पदक जीतने का था पूरा विश्वास : भगत ने बताया कि सिंगल्स में दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी होने के नाते मुझे पदक जीतने का पूरा विश्वास था। टोक्यो जाने से पूर्व मैंने लखनऊ में ट्रेनिंग के दौरान काफी मेहनत की थी। हालांकि पैरालिंपिक में पहली बार बैडमिंटन के शामिल होने और पहला मिक्स्ड डबल्स मैच हारने पर थोड़ा दबाव था। इसके बाद सिंगल्स में लगातार दो मैच जीतने से मेरे लिए आगे की राह आसान हो गई। मिक्स्ड डबल्स में नंबर वन इंडोनेशिया की जोड़ी को सेमीफाइनल में हरा नहीं सका। अब पलक के साथ मिलकर मैं रविवार को कांस्य पदक जीतने की पूरी कोशिश करूंगा।

गरीबी के कारण बुआ-फूफा ने लिया गोद : हाजीपुर के सुबई गांव में प्रमोद के घर पर जश्न का माहौल है। गांव वालों को मिठाई खिलाते हुए खुशी से गदगद किसान पिता रामा भगत, मां मानती देवी ने बताया कि प्रमोद को पांच साल की उम्र में बायें पैर में पोलियो हुआ था। गरीबी के कारण हम लोग उसका सही से इलाज नहीं करवा पा रहे थे। इसके बाद प्रमोद के फूफा और बुआ ने उसे गोद ले लिया। उसे ओडिशा के संभलपुर ले गए, जहां वे नौकरी करते थे। उन्होंने उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं होने दी। वहां पर पड़ोसियों को बैडमिंटन खेलता देख प्रमोद की भी इस खेल में रुचि बढ़ी। 15 साल की उम्र में सबसे पहला टूर्नामेंट उसने सामान्य श्रेणी के खिलाडि़यों के साथ खेला, जहां उसे खूब वाहवाही मिली। उसके बाद जकार्ता एशियन गेम्स में स्वर्ण समेत कई अंतरराष्ट्रीय पदक भी अपने नाम किए। पिता बोले, पदक जीतने के बाद प्रमोद अपने बुआ-फूफा को याद कर रो रहा था। उसे यकीन है कि उनका आशीर्वाद उसके साथ हमेशा रहेगा।

नंबर गेम-

45 अंतरराष्ट्रीय पदक प्रमोद भगत अब तक कर चुके हैं अपने नाम, जिसमें चार बार विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक भी शामिल हैं। 

प्रमोद की उपलब्धियां

01 स्वर्ण पदक पैरालिंपिक

04 स्वर्ण, एक रजत व एक कांस्य पदक पैरा विश्व चैंपियनशिप

01 स्वर्ण, दो कांस्य पदक पैरा एशियन गेम्स


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