Tokyo Olympics: निशानेबाजी की बची हुई स्पर्धा में बदल सकते हैं हालात- विजय कुमार
विजय कुमार ने कहा कि मुझे पूरी उम्मीद है कि मनु भाकर 25 मीटर पिस्टल इवेंट में वापसी कर सकती हैं। अब जबकि वह एक ओलिंपिक के दबाव को समझ चुकी हैं तो उन्हें बेसिक्स पर ध्यान देना होगा और उस पर टिके रहना होगा।
(विजय कुमार का कॉलम)
भारतीय निशानेबाजी दल बेहतरीन तैयारियों के साथ ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने के लिए टोक्यो गया था लेकिन ये हम सभी के लिए दुख की बात है कि जब सबसे ज्यादा जरूरत थी तभी हम अपेक्षाओं के अनुसार अपनी योजना को लागू करने में विफल रहे। अब भी कुछ स्पर्धा बाकी हैं और मुझे उम्मीद है कि ये सभी छह निशानेबाज योजना पर अमल कर हालात बदल सकेंगे। मेरी शुभकामनाएं पूरी टीम के साथ हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि मनु भाकर 25 मीटर पिस्टल इवेंट में वापसी कर सकती हैं। अब जबकि वह एक ओलिंपिक के दबाव को समझ चुकी हैं तो उन्हें बेसिक्स पर ध्यान देना होगा और उस पर टिके रहना होगा। मैं कभी भी किसी टूर्नामेंट में दबदबा बनाने के विचार को लेकर नहीं उतरा। बेशक लक्ष्य हमेशा पदक जीतने का होता है, लेकिन उससे भी ज्यादा ध्यान प्रक्रिया पर रहता था ताकि हर शॉट को बेहतर तरीके से ले सकूं।
सौरभ चौधरी ने व्यक्तिगत क्वालीफाइंग स्पर्धा में शीर्ष पर रहकर शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन वो फाइनल में इसे जारी रखने में नाकाम साबित हुए। वह अभी काफी युवा हैं और जल्द ही सीख जाएंगे कि बड़े टूर्नामेंट में दबाव को कैसे काबू किया जाए। हमें मनु भाकर से भी इस बात की उम्मीद थी कि वो शानदार प्रदर्शन करेंगी, लेकिन ये बात समझना मुश्किल है कि आखिर क्या गलत हो गया, खासकर मिक्स्ड टीम इवेंट में। 10 मीटर एयर राइफल निशानेबाजों के टोक्यो 2020 में खराब प्रदर्शन के बाद मुझे लगता है कि टीम पर ओलिंपिक मुकाबलों का दबाव भारी पड़ गया। सबसे ज्यादा उम्मीदें दो मिक्स्ड टीम इवेंट में हिस्सा ले रही चार जोड़ियों से थी। ये इवेंट पहली बार ओलिंपिक खेलों में शामिल किए गए थे। ऐसे में भारतीयों के पास इसे भुनाने का अच्छा मौका था।
काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि अपने देश के लिए कोटा सुरक्षित करने के बाद आप अपने इवेंट की तैयारी किस तरह करते हैं। ट्रेनिंग के दौरान मानसिक तौर पर मजबूती हासिल करने की दिशा में अतिरिक्त प्रयास होने ही चाहिए। शायद मौजूदा निशानेबाजी दल ऐसा नहीं कर सका। यहां ये भी ध्यान देने वाली बात है कि एथलीटों को दबाव संभालने में कोचों का भी अहम योगदान होता है। बेशक हर कोई दबाव महसूस करता है। फिर चाहे वो युवा एथलीट हो या अनुभवी। जब निशानेबाज निशाने लगा रहा होता है तो कोच की भूमिका बड़ी हो जाती है। साल 2012 में जब मैं पहली स्टेज के बाद पांचवें नंबर पर था तब मेरे दिमाग में असंख्य विचार घूम रहे थे। कोच पावेल स्मिरनोव ने इसे महसूस किया और मेरा दिमाग हटाने के लिए मुझे जिम और गेम स्टेशंस की ओर ले जाया गया। दूसरे दिन, दूसरी स्टेज से पहले कोच मुझे एक छोटी सी वॉक पर ले गए। इससे मुझे दबाव से निपटने में मदद मिली। तकनीकी इनपुट के अलावा कोच एथलीट को मानसिक तौर पर सहज कराने में भी अहम योगदान देता है।