Tokyo Olympics: बजरंग पूनिया सेमीफाइनल का रीप्ले देखेंगे तो खुद हैरान होंगे- साक्षी मलिक
साक्षी मलिक ने कहा कि बजरंग शुरुआत से ही उन पर बढ़त बनाने की कोशिश कर सकते थे। मैंने देखा कि वह शुरुआती दो मुकाबले में भी एक जैसी रणनीति के साथ ही खेले। उन्होंने शुरुआत में रक्षात्मक रवैया अपनाया और बाद में अंक हासिल किए।
(साक्षी मलिक का कालम)
बजरंग पूनिया को टोक्यो ओलिंपिक खेलों में फ्रीस्टाइल कुश्ती के 65 किग्रा. भारवर्ग के फाइनल में न देखना दिल तोड़ने वाला है। मैं बजरंग को हाजी अलियेव के थकने के बाद उन पर हमला करने के बजाय पहले मिनट में ही आक्रमण करते हुए देखना पसंद करती। मुझे विश्वास है कि बजरंग ने अपना सौ प्रतिशत प्रयास किया होगा, लेकिन वह खुद इस बात से निराश होंगे कि उन्होंने शुरुआती गेम में ही विपक्षी को आक्रमण करने का मौका देकर अंक बटोरने दिए और 4-1 की बढ़त बनाने दी।
जब आगे कभी बजरंग ओलिंपिक सेमीफाइनल का रीप्ले देखेंगे तो उन्हें हैरानी हो सकती है कि उन्होंने शुरुआती समय में ही हाजी की टांग पर हमला करने की कोशिश क्यों नहीं की। उनके प्रतिद्वंद्वी हल्के भारवर्ग से आकर इस वर्ग में खेल रहे थे और ऐसे में बजरंग के पास उनकी तुलना में अधिक ताकत और मजबूती थी। बजरंग शुरुआत से ही उन पर बढ़त बनाने की कोशिश कर सकते थे। मैंने देखा कि वह शुरुआती दो मुकाबले में भी एक जैसी रणनीति के साथ ही खेले। उन्होंने शुरुआत में रक्षात्मक रवैया अपनाया और बाद में अंक हासिल किए। शायद वह जानते थे कि उनकी बड़ी चुनौती अजरबैजान के पहलवान ही हैं।
उम्मीद है कि अब बजरंग शनिवार को कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहेंगे। वह बेहतरीन पहलवान हैं और ओलिंपिक पदक के साथ घर लौटने के पूरे हकदार हैं। शुक्रवार को उन्हें तीन मुकाबलों में लड़ते देखने के बाद मुझे नहीं लगता कि उनकी फिटनेस में किसी तरह की समस्या है। मैं जानती हूं कि कुछ लोग रूस में लगी घुटने की चोट के बाद उनकी फिटनेस को लेकर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन वह इससे पूरी तरह उबरे हुए लग रहे हैं। जब मैंने सीमा बिस्ला को उनका मुकाबला हारते देखा तो खुद को ये बात सोचने से नहीं रोक सकी कि दबाव किस हद तक किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन पर असर डाल सकता है। कोई भारतीय महिला ओलिंपिक पदक नहीं जीत सकी थी लेकिन मैंने इसका दबाव कभी महसूस नहीं किया।
जहां तक विनेश फोगाट की बात है तो मैंने रियो में घुटने की चोट के बाद उन्हें दर्द में देखा था और मैं आश्वस्त थी कि नंबर वन पहलवान होने के नाते वह ओलिंपिक पदक जीतने का अपना सपना पूरा कर लेंगी। अगर उनके सामने कोई चुनौती होती तो वह जापानी प्रतिद्वंद्वी की होती, लेकिन मैंने नहीं सोचा था कि वह यूरोपीयन चैंपियन वेनेसा के खिलाफ चित हो जाएंगी। मुझे लगता है कि विनेश चीनी पहलवान को भी आसानी से हरा सकती थीं। मैं नहीं जानती कि क्या वो टोक्यो ओलिंपिक में हिस्सा लेते हुए रियो ओलिंपिक का दबाव लेकर चल रहीं थीं या नहीं लेकिन विनेश के लिए मुझे काफी बुरा महसूस हो रहा है। वहीं, रवि दहिया प्रशंसा के पूरे हकदार हैं। उन्होंने फाइनल में पहुंचने के लिए शानदार मुकाबले लड़े। फाइनल में भी उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया और एक बेहतर खिलाड़ी से हारे। हालांकि दीपक पूनिया जरूर इस बात से निराश होंगे कि उन्होंने आखिरी कुछ सेकंड में अपने हाथ से कांस्य पदक निकल जाने दिया। ब्रेक के बाद उन्हें इतना अधिक रक्षात्मक नहीं होना चाहिए था।