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गोल्ड कोस्ट में दमदार होगी भारत की उपस्थिति

भारतीय महिला एथलीट सीमा पूनिया इन खेलों का अंत शानदार तरीके से करना चाहती हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 10:11 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 12:14 PM (IST)
गोल्ड कोस्ट में दमदार होगी भारत की उपस्थिति
गोल्ड कोस्ट में दमदार होगी भारत की उपस्थिति

नई दिल्ली, जेएनएन।  गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने में 13 दिन बचे है और भारतीय खिलाडि़यों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए कमर कस ली है। भारतीय महिला एथलीट सीमा पूनिया इन खेलों का अंत शानदार तरीके से करना चाहती हैं तो सात्विकसाइराज रेंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की बैडमिंटन जोड़ी पदक पाने की कोशिश में लगी है। इसके अलावा भारतीय जिम्नास्ट राकेश पात्रा खुद को साबित करने की कोशिश करेंगे।

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जब खेली तब जीता पदक : सीमा

पूनिया भले ही पूर्व में डोपिंग के कारण चर्चा में रही हों, लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स में वह भारतीय एथलीटों में पदक की सर्वश्रेष्ठ दावेदार हैं और चक्का फेंक की यह खिलाड़ी भी इन खेलों के अपने अभियान का शानदार अंत करने के लिए प्रतिबद्ध है। कॉमनवेल्थ गेम्स में सीमा भारत की सबसे सफल एथलीट रही हैं। उन्होंने जब भी इन खेलों में हिस्सा लिया तब पदक जरूर जीता।

सीमा ने सबसे पहले मेलबर्न 2006 में भाग लिया था जहां उन्होंने रजत पदक जीता। इसके बाद वह 2010 और 2014 में भी पोडियम तक पहुंची। अब वह 34 साल की हैं लेकिन गोल्ड कोस्ट में होने वाले खेलों में पदक की प्रबल दावेदार हैं।

सीमा ने कहा, 'यह मेरा चौथा कॉमनवेल्थ गेम्स होगा और मुझे पूरा भरोसा है कि मैं गोल्ड कोस्ट में पदक जीत सकती हूं। हालांकि यह नहीं कह सकती कि पदक का रंग क्या होगा। यह यात्रा लंबी रही है। मैं नहीं जानती कि मैं 2022 बर्मिघम कॉमनवेल्थ गेम्स तक खुद को फिट रख पाती हूं या नहीं लेकिन मैं 2020 ओलंपिक खेलों तक बने रहना चाहती हूं। मैं अभी खत्म नहीं हुई हूं। मुझे अपने करियर को लेकर कोई विशेष खेद नहीं है लेकिन ओलंपिक में नाकामी मुझे अब भी कचोटती है इसलिए मैं 2020 ओलंपिक में भाग लेकर वहां अच्छा प्रदर्शन करना चाहती हूं।' पूनिया ने तीन कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया है। गोल्ड कोस्ट में उनके आखिरी बार कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने की उम्मीद की जा रही है।

लड़कर गोल्ड कोस्ट जा रहे पात्रा

अदालत की शरण में जाने के बाद कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भारतीय जिम्नास्ट टीम में शामिल किए गए राकेश पात्रा न सिर्फ खुद को साबित करने के लिए पदक जीतने को बेताब हैं बल्कि इससे वह वित्तीय रूप से भी मजबूत बनना चाहते हैं।

उन्होंने कहा, 'मेरे चाचा और कोच ने मेरे पिताजी से कहा कि जिम्नास्टिक में मेरा भविष्य है। शिक्षक होने के बावजूद मेरे पिताजी ने मेरा पूरा सहयोग किया। जिम्नास्ट बनने के लिए लिये मुझे जो कुछ चाहिए था वह मुझे मुहैया कराया गया।' इस 26 वर्षीय कलात्मक जिम्नास्ट को भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ और भारतीय ओलंपिक संघ के बीच चल रही तनातनी के कारण पहले टीम में नहीं चुना गया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिसके बाद उन्हें टीम में रखा गया। पात्रा 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स से भारतीय टीम का हिस्सा हैं। वह पांच विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं लेकिन शीर्ष स्तर पर पदक से अब तक वंचित हैं।

इतिहास रचना चाहेगी यह जोड़ी

बैडमिंटन में भारत के चोटी के सिंगल्स खिलाडि़यों से कॉमनवेल्थ गेम्स में काफी उम्मीदें की जा रही हैं लेकिन सात्विकसाइराज रेंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की निगाह इन खेलों के पुरुष डबल्स में देश का पदक का सूखा खत्म करके नया इतिहास रचने पर टिकी हैं।

सात्विक ने कहा, 'यह मेरे पिताजी का सपना था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लूं और इसलिए जब पता चला कि मुझे टीम में चुना गया है तो मैं बहुत खुश हुआ। यह प्रत्येक खिलाड़ी का सपना होता है और जिस तरह से हम पिछले छह महीने से खेल रहे हैं उसे देखते हुए हमें पदक जीतने का पूरा विश्वास है।' वहीं, चिराग ने कहा, 'कोई भी भारतीय पुरुष डबल्स जोड़ी अब तक कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक नहीं जीत पाई है। अगर आप पूल पर गौर करोगे तो मलेशिया और इंग्लैंड के ओलंपिक रजत और कांस्य पदक विजेता खेल रहे हैं लेकिन इसके बावजूद हम अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।'

इतिहास के पन्नों से 1934 में भारत का एक पदक

1934 के कॉमनवेल्थ गेम्स इंग्लैंड के शहर लंदन में आयोजित हुए थे जिसमें 68 स्पर्धा में 17 देशों के कुल 500 खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया था। यह इन खेलों का दूसरा सत्र है। इससे पहले इन खेलों की शुरुआत 1930 में हुई थी। हालांकि भारत ने पहली बार 1934 में इन खेलों में हिस्सा लिया था लेकिन भारत ने सिर्फ एथलेटिक्स और कुश्ती में भाग लिया। राशिद अनवर ने कुश्ती में 74 किग्रा में कास्य पदक जीता था जो यह भारत का इन खेलों में एकमात्र पदक था।

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