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नियति को चुनौती देकर एवरेस्ट विजेता बनीं पूनम

बिना ऑक्सीजन के मैं वहीं लेटी रही। सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी और हाथ-पांव पूरी तरह ठंडे पड़ गए थे।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 08:30 PM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 12:42 PM (IST)
नियति को चुनौती देकर एवरेस्ट विजेता बनीं पूनम
नियति को चुनौती देकर एवरेस्ट विजेता बनीं पूनम

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। बचपन से ही हर पल नियति की निष्ठुरता झेलती आ रही उत्तरकाशी के नाल्ड गांव की बेटी पूनम राणा को एवरेस्ट की चोटी पर भी साहस और धैर्य की परीक्षा देनी पड़ी। करीब दो घंटे तक पूनम 8400 मीटर की ऊंचाई पर बिना ऑक्सीजन सि¨लडर के रहीं। दो घंटे बाद जब शेरपा ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर पहुंचा तो उनकी हालत देख वापस लौटने को कहा। लेकिन, संघर्षो से तपकर निकली पूनम ने हार नहीं मानी और एवरेस्ट विजेता बनकर ही दम लिया।

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21 मई 2018 की सुबह नौ बजकर 26 मिनट पर एवरेस्ट को फतह करने वाली पूनम ने 'दैनिक जागरण' से फोन पर एवरेस्ट अभियान के अनुभव साझा किए। बताया कि एवरेस्ट पर तिरंगा फहराते हुए उन्हें अपने भाई कमलेश की याद आई, जो 2015 में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे। उनका सपना था कि मैं ट्रैकिंग और पर्वतारोहण करूं। बताया कि भाई के इस सपने को पूरा करने में उन्हें देश की प्रथम एवरेस्ट विजेता महिला बछेंद्री पाल का आशीर्वाद और टाटा स्टील का सहयोग मिला। नेपाल के नामचा से पूनम ने बताया कि मौसम सही रहा तो वह साथियों समेत तीन से चार दिन में भारत लौट आएंगी।

पूनम ने बताया कि एवरेस्ट फतह करने के लिए उन्होंने 20 मई की रात दस बजे प्रस्थान किया। सुबह छह बजे के आसपास जब वह एवरेस्ट की 8400 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचीं तो ऑक्सीजन सिलिंडर खत्म हो गया। ऐसे में आगे बढ़ पाना संभव नहीं था। बिना ऑक्सीजन के मैं वहीं लेटी रही। सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी और हाथ-पांव पूरी तरह ठंडे पड़ गए थे। दो घंटे बाद जब शेरपा ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर लौटा तो उसे देख मेरी जान में जान आई। हालांकि, मेरी स्थिति देखकर शेरपा ने मुझे वापस लौटने के लिए कहा। लेकिन, मैंने साफ इन्कार कर दिया और अकेले ही आगे बढ़ने लगी। बकौल पूनम, 'पहले एवरेस्ट का नाम सुनकर ही डर लगता था, लेकिन अब क्लाइंब कर दिया तो डर खत्म हो गया और एक नया जोश मिला है कुछ नया करने का।'

नियति हर समय लेती रही पूनम की परीक्षा

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 12 किमी दूर नाल्ड गांव की पूनम का जन्म 1997 में हुआ। जब पूनम छह माह की थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। पांच साल की उम्र में पिता भी चल बसे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली पूनम के पिता धर्म सिंह गांव में ही मजदूरी कर जैसे-तैसे पांच भाई-बहनों का पेट भरते थे। पिता के गुजरने के बाद बड़ा भाई मजदूरी कर घर का खर्च चलाने लगा, लेकिन नियति को यह भी मंजूर नहीं हुआ। जून 2015 में अचानक वह बीमार हुआ और उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसी साल सितंबर में ट्रैकिंग का काम करने वाले दूसरे भाई कमलेश राणा की भी हादसे में मौत हो गई। यही नहीं, पूनम की बड़ी बहन के पति की भी एक हादसे में मौत हुई। एक के बाद एक इन घटनाओं ने पूनम को पूरी तरह तोड़ दिया। अब पूनम के परिवार में वह और उनका एक भाई राम सिंह हैं। राम सिंह एक ट्रैकिंग कैंप में काम करते हैं।

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