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सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए धक्के खा रहे पद्मश्री लिंबा राम, सम्मानजनक मदद की दरकार

लिंबा की खुद्दारी का हाल यह है कि उन्हें सरकारी अस्पताल में लाइन में लगकर इलाज करना मंजूर है लेकिन अपना परिचय बताकर दूसरों का हक मारना गंवारा नहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 09:10 AM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 12:01 PM (IST)
सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए धक्के खा रहे पद्मश्री लिंबा राम, सम्मानजनक मदद की दरकार
सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए धक्के खा रहे पद्मश्री लिंबा राम, सम्मानजनक मदद की दरकार

अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। समय कितना बेरहम है, इसका जीताजागता उदाहरण पूर्व भारतीय तीरंदाज लिंबा राम हैं। अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री से सम्मानित पूर्व तीरंदाज लिंबा राम सरकारी अस्पताल में अपने इलाज के लिए दिल्ली में दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। खुद्दार होने की सजा देश के इस हीरो को भुगतनी पड़ रही है।

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एक समय था जब देश में तीरंदाजी का मतलब लिंबा राम हुआ करता था। दिल से सौम्य और मन से सरल तीन बार के ओलंपियन 48 वर्षीर्य लिंबा राम खिलाड़ियों के सबसे बडे़ अवॉर्ड अर्जुन पुरस्कार और भारतीय नागरिकों के चौथे सबसे बड़े सम्मान पद्मश्री से सम्मानित हुए लेकिन देश की व्यवस्था के सामने अब उन्हें हर रोज अपमान का सामना करना पड़ रहा है। लिंबा की खुद्दारी का हाल यह है कि उन्हें सरकारी अस्पताल में लाइन में लगकर इलाज करना मंजूर है लेकिन अपना परिचय बताकर दूसरों का हक मारना गंवारा नहीं।

बेचारा नहीं दिखना चाहते: हाल ही में गाजियाबाद में एक सम्मान समारोह में मेरी मुलाकार्त ंलबा राम से हुई। पैर, जुबान और दिमाग पूरी तरह काम नहीं करने के बावजूद देश के इस हीरो ने खेल कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज कराई। उनकी हालत को देखकर वहां मौजूद हर कोई दुखी था लेकिन उनकी जिजीविषा ने सबको उनका कायल बना दिया। जब उनसे उनकी परेशानी की बात की तो वह नजरें चुराने लगे। वह भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए), भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआइ), भारतीय खेल प्राधिकरण (साई), राजस्थान सरकार, केंद्र सरकार किसी की भी बुराई नहीं करना चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें बेचारा समझें। उनकी पत्नी जेनी ने जब कुछ बताने की कोशिश भी की तो लिंबा ने बीच में ही रोक दिया।

सम्मानजनक मदद की दरकार: हालांकि इसके बाद जब जेनी से अलग से बात की तो उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई। जेनी ने कहा कि डॉक्टर बता रहे हैं कि उनके दिमाग के दाएं हिस्से में कुछ परेशानी है। इनके अलावा एल-3,4,5 और मोरो सरवाइकल भी उन्हें है। उन्हें इसके अलावा भी कई बीमारी हैं। 2000 से 2004 तक भी वह बहुत बीमार थे। 2012 में लंदन ओलंपिक में वह टीम के साथ कोच के तौर पर गए। लंदन ओलंपिक से इनकी बीमारी बढ़ गई। उन्होंने 16 साल की उम्र में पहली बार ओलंपिक में भाग लिया था, आज ऐसा कोई करता तो उसको बहुत कुछ मिल जाता। 2015 में लिंबा से शादी करने वाली जेनी ने कहा कि 2017 में उनको सुगर और बीपी की बीमारी शुरू हुई और 2018 में उनकी स्थिति बेहद गंभीर हो गई। बीमारी के कारण राजस्थान स्पोट्र्स काउंसिल में वह नौकरी पर भी नहीं जा रहे हैं। इलाज के लिए एडवांस सैलरी तक ली है।

बच नहीं पाते लिंबा: एक समय ऐसा आया था कि उनकी हालात गंभीर थी और अगर हमें एडवांस सैलरी नहीं मिलता तो उनकी मृत्यु हो जाती। मैंने लोगों से पैसा लेकर इलाज कराया। हम ऑल इंडिया काउंसिल स्पोट्र्स से मिले थे। उन्होंने राजस्थान सरकार व खेल मंत्रालय को पत्र लिखा। साई ने खिलाड़ियों की स्कीम के तहत दो बार पांच-पांच लाख रुपये दिए। उसमें से कुछ पैसा बचा है जिसे संभालसंभालकर खर्च करने के लिए लाइन में लगकर सरकारी अस्पताल के धक्के खाने पड़ते हैं। एम्स में भी उनको दिखाया है। फिलहाल दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में उनका न्यूरोलॉजी का इलाज चल रहा है। वहां न्यूरोलॉजी का इलाज चल रहा है। फिजिकल का तो ऐसा ही चल रहा है और कुछ बीमारियों के लिए आरएमएल में भी दिखाने जाती हूं।

ओलंपियन को मिले स्वास्थ्य कार्ड: जेनी ने कहा कि हमें पैसा नहीं चाहिए। हम स्वास्थ्य मंत्रालय से एक मेडिकल कार्ड चाहते हैं। हम किसी भी अस्पताल में जाते हैं तो वह कार्ड मांगते हैं। कोई ओलंपियन कार्ड मांगते हैं। हम चाहते हैं कि भारतीय ओलंपिक संघ और खेल मंत्रालय ख्याल रखें। अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्री का क्या लाभ जब उसको पाने वाले को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। ये सम्मार्न ंलबा के किसी काम नहीं आ रहे हैं। हम चाहते हैं कि खेल मंत्रालय पहल करे और स्वाथ्य मंत्रालय एक कार्ड जारी करें। मैं उनकी देखभाल करती हूं तो मुझे पता है कितनी परेशानी होती है। वह चल नहीं सकते, बैठ नहीं सकते लेकिन देश को इतना कुछ देने के बाद उन्हें लंबी- लंबी लाइन में खड़े रहना पड़ता है। कोई कहता है कि मंत्रालय से लिखकर ले आओ, कोई कहता है कि सरकार से लिखवाकर पत्र ले आओ।

सोमवार को दिल्ली के जीबी पंत अस्पाल में इलाज के लिए लाइन में बैठे पूर्व भारतीय तीरंदाज लिंबा राम (बायें) साथ में बैठी उनकी पत्नी जेनी- जागरण

खत्म हो गए 10 लाख: जैनी ने कहा, हमें जो कुल 10 लाख रुपये की जो मदद मिली उसमें अधिकतर पैसा खत्म हो चुका है। अभी एम्स में एक लाख से ज्यादा का खर्च हुआ। जीबी पंत में इसलिए दिखाने जाते हैं क्योंकि वहां दिखाने का कोई पैसा नहीं लगता है। इसके लिए हमें लाइन में लगना पड़ता है लेकिन जो टेस्ट बाहर होते हैं उसमें पैसा लगता है। हमें अलग-अलग डॉक्टरों को दिखाना पड़ता है। हम कई महीनों से जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में साई के हॉस्टल में रहते हैं। साई ने हमारी बहुत मदद की है। अगर साई में नहीं रहते तो हमें होटलों में रहना पड़ता। हम निजी अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं, लेकिन हमारे पास पैसा नहीं है। निजी अस्पतालों में बहुत खर्चा होता है। सरकारी अस्पतालों में इलाज बहुत धीरे-धीरे चल रहा है और मैं इन चीजों से थक गई हूं।

हम चुपचाप लाइन में लगे रहते हैं: जेनी ने कहा कि हम अस्पतालों के नियमों का पालन करते हैं। हम चुपचाप लाइन में लगे रहते हैं और किसी को अपने बारे में नहीं बताते। हम पीआरओ से मिलते हैं तो वह बोलते हैं कि हम मदद करेंगे, अगर ओलंपियन है तो ओलंपियन का कोई कार्ड ले आओ। मेडिकल कार्ड ले आओ। सरकार देश को सम्मान दिलाने वाले लोगों को कुछ ऐसा कार्ड दिला दे जिससे उनका सम्मानजनक इलाज हो सके।


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