जानिए - भारत के लिए गोल्ड जीतने वाली मीरा का लकड़ी चुनने से लेकर स्वर्ण चूमने तक का सफर
12 साल की मीरा लकड़ी के भारी गठ्ठर को घर से दो किलोमीटर की दूरी से उठाकर घर तक ले जाती थी।
नई दिल्ली, जेएनएन। 12 साल की उम्र में एक लडकी अपने बड़े भाई से ज्यादा आग जलाने वाली लकड़ी चुनती थी और वही लडकी आज कॉमनवेल्थ गेम्स में देश का नाम रोशन कर रही है। चानू का जन्म इंफाल से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित गांव के गरीब परिवार में हुआ था।
मीरा 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और 4 साल बड़े भाई सैखोम सानातोंबा मेइतेइ के साथ पहाडों पर लक़़डी चुनने जाया करती थीं। उस मुश्किल भरे पलों को याद करते हुए सानतोंबा कहते हैं कि एक दिन मैं लकड़ियों का गठ्ठर नहीं उठा सका, लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठाया और घर ले आई जो कि वहां से दो किलोमीटर दूर था। उस समय वह 12 साल की थीं।
राज्य स्तर के फुटबॉल खिलाडी रह चुके सानातोंबो कहते हैं कि मैं फुटबॉल खेला करता था और मैं उसमें कुछ करने का जुनून देख सकता था। उसके पास हमेशा कुछ बड़ा हासिल करने का जुनून था। उसने कभी खुद को दबाव में नहीं रखा और हमेशा शांत रहती है जो कि उसकी सफलता का मूल मंत्र है। सानातोंबा गांव के करीब 15 लोगों के साथ मीलों दूर खेल रही अपनी अपनी बहन को खेलता देखने के लिए सुबह टीवी सेट के सामने बैठ गए थे। सानातोंबा ने कहा कि मैं अपने पिता (सैखोम कृति मेतेइ) और माता (सैखोम ओंगबी टोंबी लीइम) के आंखों में खुशी के आंसू साफ देख सकता था। एक पल के लिए वह एकदम चुप हो गए थे।
मीराबाई की जीत के बाद उनकी मां के साथ गांव वाले तबला और चोंगबा के साथ पारंपरिक नृत्य करने लगे। चेहरों पर होली की तरह गुलाल लगाए गए। भारतीय सेना में शामिल सानातोंबा श्रीनगर में तैनात हैं जो कि फिलहाल अपने बेटे के अन्नप्रासन्न कार्यक्रम में भाग लेने के लिए यहां आए हैं। सानातोंबा ने कहा कि शुक्रवार को दोहरा जश्न होगा। हम मीरा का पसंदीदा खाना (कांगसोइ) बनाएंगे।
गुरुवार की सुबह से यहां मिठाइयां बांटी जा रही थीं और आप अभी भी पटाखों की आवाज सुन सकते हैं। मीराबाई के पिता इंफाल में एक पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट के कर्मचारी हैं जबकि मां गांव में एक छोटी सी दुकान चलाती हैं। सानातोंबा ने कहा कि चानू के लिए बहुत सारी आर्थिक परेशानियां रही और वे शायद ही उसकी मदद कर सकें। हालांकि तमाम कठिनाइयों के बावजूद वह वहां पहुंची जहां पहुंचना उसने सोचा भी नहीं था।