दैनिक जागरण की खबर का हुआ असर, अब इन होनहार तैराकों को प्रशिक्षित करेगा साई
ये बच्चे तालाब में तैराकी का अभ्यास कर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं सहित अन्य स्पद्धाओं में अनेक पदक जीत चुके है।
रायपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला स्थित पुरई गांव के प्रतिभाशाली तैराक बच्चों को अब जल्द ही बड़ा प्लेटफार्म मिल सकेगा। दैनिक जागरण में खबर प्रकाशित किए जाने के बाद भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने अब इन तैराकों की सुध ली है। आठ अक्टूबर को दैनिक जागरण ने ‘जागरण विशेष’ के रूप में इन होनहार तैराकों की समस्या को सामने रखा था। शीर्षक था, यह गांव दिला सकता है कई ओलंपिक मेडल। अब इसकी उम्मीद की जा सकती है। हो सकता है कि इन होनहार तैराकों में से अब कोई देश को तैराकी का पहला ओलंपिक पदक भी दिला दे।
निखरेगी प्रतिभा तो होगा धमाल
इस गांव के ये बच्चे तालाब में तैराकी का अभ्यास कर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं सहित अन्य स्पद्धाओं में अनेक पदक जीत चुके है। साई के दिल्ली स्थित मुख्यालय से आदेश के बाद अब रायपुर साई की टीम 27 नवंबर को गांव में जाकर ट्रायल लेगी। छत्तीसगढ़ में साई निदेशक पंथ गीता ने बताया कि भारतीय खेल प्राधिकरण दिल्ली से रीजनल ऑफिस को निर्देश प्राप्त हुआ है। ट्रायल उसी तालाब में लिया जाएगा, जिसमें बच्चे तैराकी सीखते हैं। ट्रायल में लगभग 15 बच्चों का चयन किया जाएगा, जिन्हें देश के किसी भी साई सेंटर में रख कर तैयारी करवाई जाएगी। उनके रहने-खाने-पढ़ने का पूरा खर्च साई वहन करेगा।
उत्साहित हो उठे बच्चे: ट्रायल की खबर मिलते ही बच्चे उत्साह से भर गए हैं। उन्हें पूरी उम्मीद है कि हर बच्चा ट्रायल में बाजी मारेगा। तालाब की जगह जब ये बच्चे स्वीमिंग पूल में अभ्यास करेंगे तो पदकों की झड़ी लगा सकते हैं। तालाब में अभ्यास कर 50 से अधिक बच्चों ने राष्ट्रीय तैराकी सहित विभिन्न स्पर्धाओं में पदक जीते हैं। इस गांव के हर घर में पदक विजेता बच्चा मिल जाएगा। लेकिन जिस तालाब में ये बच्चे तैराकी का अभ्यास करते आए थे, उसमें पिछले कुछ माह से गांव के दो गंदे नालों को जोड़ दिए जाने से बच्चों का अभ्यास बंद हो गया था।
बच्चों ने सरपंच, जनप्रतिनिधियों से लेकर स्थानीय प्रशासन तक गुहार लगाई, लेकिन सभी जगह अनसुनी किए जाने से बच्चों का उत्साह खत्म हो गया। वे इस बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में नहीं उतर सके। एक समाजसेवी संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन ने बच्चों की आवाज सरकार तक भी पहुंचाई, लेकिन बात नहीं बनी। मजबूरी में बच्चों और वालंटियरों ने सात दिन तक जल-सत्याग्रह भी किया। लेकिन फिर भी बात नहीं बनी।