विदेश में तिरंगा लहराने की वजह बनना गर्व की बात : अशोक शांडिल्य
एशियन गेम्स में क्यू स्पोर्ट्स को पहली बार 1998 में शामिल किया गया था और भारत ने इसमें अच्छा प्रदर्शन किया।
सुनहरी यादें :
एशियन गेम्स में क्यू स्पोर्ट्स को पहली बार 1998 में शामिल किया गया था और भारत ने इसमें अच्छा प्रदर्शन किया। क्यू स्पोर्ट्स में बिलियर्ड्स, स्नूकर और पूल की स्पर्धाएं होती हैं। 1998 में बैंकॉक में हुए एशियन गेम्स में भारत ने कुल सात स्वर्ण पदक जीते थे, जिनमें दो स्वर्ण पदक बिलियर्ड्स की बदौलत भारत के खाते में आए। भारत को बिलियर्ड्स में ये दोनों स्वर्ण पदक अशोक शांडिल्य ने दिलाए। एशियन गेम्स की सुनहरी यादों और अन्य मुद्दों पर अशोक शांडिल्य से उमेश राजपूत ने खास बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश-
- एशियन गेम्स 1998 का आपका अनुभव कैसा रहा था?
- हमने उससे पहले एशियन गेम्स के बारे में सिर्फ सुना था। पहली बार हम एशियन गेम्स का हिस्सा थे। मुझे लगता है एशियन गेम्स और ओलंपिक से पहले ही देश में एक ऐसा माहौल बन जाता है कि खिलाडि़यों के ऊपर पदक लाने का दबाव बन जाता है। मैं विश्व चैंपियनशिप दो बार जीता हूं, लेकिन एशियन गेम्स का दबाव उससे भी दोगुना होता है। असल में एशियन गेम्स में आप अपने से ज्यादा देश की प्रतिष्ठा के लिए खेलते हैं। पदक तालिका में आपका नाम नहीं होता, देश का नाम होता है। इसलिए आपसे ज्यादा देश के मान-सम्मान की बात होती है। तब मैंने पहला स्वर्ण पदक गीत सेठी के साथ डबल्स में जीता था, जो उस एशियन गेम्स में भारत का पहला स्वर्ण पदक था।
-फाइनल से पहले आपको और गीत को यकीन था कि आप स्वर्ण जीत सकेंगे?
-हमारा पदक तो पक्का हो ही चुका था, लेकिन मैंने और गीत ने तय कर लिया था कि पदक तालिका में भारत के स्वर्ण पदक का खाता तो हम ही खोलेंगे। उस मुकाबले को देखने के लिए उस समय के आइओए अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी, राजा रणधीर सिंह और कई भारतीय प्रतिनिधि मौजूद थे। इस वजह से हम पर कुछ दबाव था और हमारे सामने थाइलैंड की जोड़ी थी, जिसमें से एक खिलाड़ी विश्व चैंपियन था। फाइनल में हम शुरुआत में 1-3 से पीछे थे, फिर हमने 3-3 से बराबरी हासिल की और अंत में 5-4 से स्वर्ण पदक अपने नाम किया। फाइनल की एक दिलचस्प बात बताना चाहूंगा। थाइलैंड की ओर से हमें हराने के लिए रणनीति बनाई गई थी। उन्होंने टेबल के दोनों ओर चीयरलीडर्स बिठा दी थीं। हमने बिलियर्ड्स या स्नूकर में कभी चीयरलीर्ड्स नहीं देखी थीं। हमारा ध्यान भटकाने के लिए उनकी ओर से संगीत बजाया जाता और चीयरलीर्ड्स डांस करती थीं, लेकिन उनकी रणनीति उनके काम नहीं आ सकी और हमने स्वर्ण पदक जीत लिया। उसके बाद सिंगल्स के फाइनल में मैं और गीत ही पहुंचे और वहां मैंने गीत को हराकर अपना दूसरा स्वर्ण जीता था।
-अपनी वजह से विदेश में तिरंगा लहराता हुआ देखने की खुशी को कैसे बयां करेंगे?
-विदेश में आपकी वजह से जब तिरंगा लहराता है तो आपके लिए इससे बड़े गर्व की बात कोई नहीं हो सकती। विदेश में जब भी भारत का झंडा ऊपर जाता है तो चाहे उसकी वजह मैं हूं या कोई और उस खुशी को कोई भी बयां नहीं कर सकता है।
-स्वर्ण पदक जीतकर लौटने पर आपका कैसा स्वागत-सम्मान हुआ?
-हमारा बहुत अच्छा स्वागत हुआ। हालांकि, देश के लिए पदक जीतने के सम्मान की तुलना पैसों से नहीं हो सकती है, लेकिन सरकार ने कोई कमी नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पुरस्कार की राशि एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दी। महाराष्ट्र सरकार ने भी हमें सम्मानित किया।
-अब क्यू स्पोर्ट्स एशियन गेम्स का हिस्सा नहीं है। इससे भारत का नुकसान तो हुआ होगा?
-मैं दावे से कह सकता हूं कि क्यू स्पोर्ट्स नहीं होने से भारत को कम से कम तीन से चार पदक का नुकसान हुआ। पूल की तो बात मैं नहीं करूंगा, लेकिन हमारे पास ऐसे खिलाड़ी हैं जो बिलियर्ड्स और स्नूकर में पदक जरूर जीत सकते हैं। हमारे उभरते हुए खिलाड़ी भी काफी अच्छा कर रहे हैं। मैं यह भी दावे से कह सकता हूं कि जब भी एशियन गेम्स में इनकी वापसी होगी तो कम से कम भारत चार पदक जरूर लाएगा।