आइओए की लड़ाई चरम पर, नरेंद्र बत्रा ने कुछ एनएसएफ को घेरने के लिए बनाई समिति
भारतीय ओलिंपिक संघ में इस समय लड़ाई चरम पर है क्योंकि एक तरफ नरेंद्र बत्रा हैं जबकि दूसरी तरफ एक पुरा गुट है। ऐसे में चुनाव से पहले हर कोई अपनी-अपनी चाल फिट करने में लगा हुआ है।
नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। भारतीय ओलिंपिक संघ (आइओए) के दिसंबर में प्रस्तावित चुनावों से पहले ही अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा और महासचिव राजीव मेहता गुट ने अपने-अपने दांव चलने शुरू कर दिए हैं। बत्रा ने सभी राज्यों इकाइयों को एक अक्टूबर को ई-मेल लिखकर एक समिति गठित करने का फैसला किया है।
बत्रा ने ई-मेल में लिखा, "मुझे भारतीय हैंडबाल संघ, भारतीय तलवारबाजी संघ, भारतीय खो खो संघ, भारतीय स्की एंड स्नोबोर्ड संघ, भारतीय कराटे संघ और भारतीय वालीबाल संघ की राज्य इकाइयों की लगातार शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिसमें राज्यों इकाइयों को बार-बार बदलने की बात कही जा रही है। मैं आइओए के संविधान नियम 31.2 के बारे बताता हूं, जहां कहा गया है कि कोई भी राष्ट्रीय खेल महासंघ किसी राज्य/विभाग की एक खेल इकाई को संबद्ध नहीं करेगा, जिसे आइओए, राज्य ओलिंपिक संघ और संबंधित राष्ट्रीय खेल संघ के एक-एक प्रतिनिधि वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा पारित नहीं किया गया है। मुझे आइओए के संविधान में नियम 31.2 के बदलाव को लेकर कोई अनुरोध प्राप्त नहीं हुआ है और एनएफएस द्वारा सभी मनमाने निर्णय अमान्य होंगे। इसे प्रभावित होने वाले सभी दलों को तीन सदस्यीय वाली समिति से संपर्क करने की जरूरत है जिसे मैं तत्काल प्रभाव से बना रहा हूं।"
खास बात यह है बत्रा ने खुद को ही समिति का अध्यक्ष भी घोषित कर दिया। समिति में एक सदस्य राष्ट्रीय खेल महासंघ और राज्य ओलिंपिक संघ से शामिल हैं। यह तीन सदस्यीय समिति वर्तमान के सभी मामले/विवाद और भविष्य के मामलों को भी देखेगी। बत्रा ने ईमेल में लिखा है कि सभी प्रभावित दलों से अनुरोध है कि किसी भी कानूनी मामले की जानकारी तीन सदस्यीय समिति को जानकारी दें। आइओए के महासचिव मुझे सभी कोर्ट से जुड़े मामलों के फैसलों की जानकारी ई-मेल के जरिये भेजें।
मालूम हो कि हैंडबाल संघ के कार्यकारी निदेशक आनंदेश्वर पांडेय, भारतीय तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष राजीव महेता, भारतीय खो-खो संघ अध्यक्ष सुधांशु मित्तल, भारतीय स्की एंड स्नोबोर्ड संघ के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल, भारतीय कराटे संघ के अध्यक्ष लिका तारा बत्रा के विरोधी माने जाते हैं। बत्रा को जवाब देते हुए सुधांशु मित्तल ने लिखा कि यह फिर से अध्यक्ष की कानूनी निरक्षरता का एक उत्कृष्ट मामला है। ऐसी अज्ञानता करने से पहले नियम को ध्यान से पढ़ना चाहिए। अध्यक्ष के पास इस तरह के बयान देने का न तो अधिकार है और न ही क्षमता है। इस ईमेल को उस अवमानना के साथ माना जाना चाहिए जिसके वह हकदार हैं। अच्छा यह होगा कि इसे अनदेखा किया जाना चाहिए। भगवान आइओए को ऐसे तत्वों से बचाएं।