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गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर बराक ओबामा से सम्मान पाने वाला भारतीय साइकिलिस्ट

स्पेशल ओलंपिक में दो स्वर्ण जीतने वाला लुधियाना के गांव सियाड़ राड़ा साहिब का साइकिलिस्ट राजबीर सिंह गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर है।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 07:04 PM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 10:29 PM (IST)
गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर बराक ओबामा से सम्मान पाने वाला भारतीय साइकिलिस्ट
गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर बराक ओबामा से सम्मान पाने वाला भारतीय साइकिलिस्ट

बिंदु उप्पल, जगराओं। स्पेशल ओलंपिक में दो स्वर्ण जीतने वाला लुधियाना के गांव सियाड़ राड़ा साहिब का साइकिलिस्ट राजबीर सिंह गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से सम्मान पाने वाले इस खिलाड़ी की पंजाब सरकार ने कभी सुध नहीं ली और उसको पूरी सम्मान राशि और ना ही नौकरी दी। हालांकि केंद्र सरकार अपने वादा पूरा चुकी है। यह कहना है अमेरिका में देश का नाम रौशन करने वाले राजबीर सिंह के पिता बलबीर सिंह का।

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राजमिस्त्री का काम करने वाले बलबीर सिंह ने बताया कि राजबीर ने पहले पंजाब, फिर राष्ट्रीय स्तर पर चेन्नई, जयपुर व भोपाल में साइकिलिंग में दो स्वर्ण पदक जीते थे। वर्ष 2015 में अमेरिका में हुई स्पेशल ओलंपिक समर विश्व खेल प्रतियोगिता में 100 मीटर व 400 मीटर में दो स्वर्ण जीते थे। इस उपलब्धि पर उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राजबीर सिंह को सम्मानित किया था। विजेता खिलाड़ी जब अमेरिका से लौटा था तो मलौद में उसका भव्य स्वागत हुआ था और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने उसको पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपए और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। इस राशि के लिए उन्हें बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े तब जाकर 51 हजार रुपए मिले थे लेकिन उसके बाद कुछ नहीं मिला। पिछले वर्ष राजबीर को पुरस्कार राशि ना मिलने का मामला उठा तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर उनको शेष राशि और नौकरी देने की बात कही थी। अब इसको भी एक वर्ष हो चुका है।

पिता ने बताया कि राजबीर को सरकार से सुविधा तो नहीं मिली लेकिन इस परेशानी के कारण वह धीरे-धीरे मानसिक बीमारी का शिकार हो गया और खराब आर्थिक स्थिति के कारण राजबीर दिहाड़ी (ईंटें उठाने का काम) करने लगा। इस दौरान उसके दिमाग में पस पड़ गई लेकिन उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। इस पर वह जगराओं की संस्था मनुखता दी सेवा के फाउंडर गुरप्रीत सिंह से मिले और सहायता मांगी। वर्ष 2018 में संस्था राजबीर ¨सह को अपने फार्म हाउस लेकर आई और तीन लाख रुपए खर्च कर लुधियाना के सीएमसी अस्पताल से उसके दिमाग का आप्रेशन करवाया।

संस्था के फाउंडर गुरप्रीत सिंह ने बताया कि वर्ष 2018 से वे राजबीर सिंह व उसके परिवार का खर्च उठा रहे हैं। वर्ष 2019 में अबुधाबी में हुई स्पेशल ओलंपिक में राजबीर भाग लेना चाहता था तब संस्था ने अभ्यास के लिए उसको साइकिल लेकर दिया था। लेकिन किसी अन्य खिलाड़ी को मौका दे दिया। इससे वह परेशान रहने लगा। अब राजबीर का सीएमसी से इलाज चल रहा है। आप्रेशन के बाद अभी एक महीने के लिए इसको मां-बाप के पास गांव सियाड़ राड़ा साहिब में भेज दिया है।पिता बलबीर सिंह, मां राजिंगर कौर व मनुखता दी सेवा संस्था के फाउंडर गुरप्रीत सिंह ने पंजाब सरकार से मांग की है कि राजबीर सिंह के साथ किए वादे को पूरा किया जाए और उसको सम्मान राशि व सुविधाएं दी जाए ताकि वह बीमारी से उभरकर साइक्लिंग में देश के लिए दोबारा पदक हासिल कर सके।

जब इस बारे में पैरा स्पो‌र्ट्स एसोसिएशन ऑफ पंजाब की प्रमुख जतिंदर कौर से बात की तो उन्होंने कहा कि दो दिन बाद एसोसिएशन की ओर से दो प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को कैश अवार्ड दिया जा रहा है। हमारी कोशिश होगी कि उन्हें भी आर्थिक मदद की जाए। साथ ही सरकार से भी मांग करेंगे कि राजबीर को आर्थिक मदद कर उसे संभाला जाए।


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