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Exclusive Interview: फाइटर हूं, फाइट करने में विश्वास रखती हूं : लवलीना बोरगोहाई

लवलीना बोरगोहाई का कहना है कि वह फाइटर हैं और फाइट करने में ही ज्यादा विश्वास रखती हैं। वह टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक से संतुष्ट नहीं हैं और 2024 पेरिस ओलिंपिक में पदक का रंग बदलने की कोशिश करेंगी।

By Viplove KumarEdited By: Published: Tue, 14 Dec 2021 08:24 PM (IST)Updated: Tue, 14 Dec 2021 08:24 PM (IST)
Exclusive Interview: फाइटर हूं, फाइट करने में विश्वास रखती हूं : लवलीना बोरगोहाई
महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहाई (फोटो ट्विटर पेज)

टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहाई का कहना है कि वह फाइटर हैं और फाइट करने में ही ज्यादा विश्वास रखती हैं। वह टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक से संतुष्ट नहीं हैं और 2024 पेरिस ओलिंपिक में पदक का रंग बदलने की कोशिश करेंगी। ओपी वशिष्ठ ने लवलीना बोरगोहाई से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:

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टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद जीवन में कितना बदलावा आया?- टोक्यो ओलिंपिक में पदक जीतने के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया। मैं पहले भी मुक्केबाज थी और अब भी मुक्केबाज हूं। हां, अब मुझे देश में जानने लग गए हैं। पहले मुझे कोई नहीं जानता था। अब जहां भी जाती हूं, सम्मान मिलता है। युवा सेल्फी लेते हैं। मुझे काफी अच्छा लगता है। लेकिन साथ ही चुनौती भी बढ़ गई है। अब मेरे से ज्यादा उम्मीदें बढ़ गई हैं इसलिए अब पूरा ध्यान पेरिस ओलिंपिक पर है।

हरियाणा के रोहतक में पहली बार आना हुआ या पहले भी आई हैं?

रोहतक में मैं दूसरी बार आई हूं। 2018 में भी साई सेंटर में आयोजित प्रतियोगिता में भी आई थी। लेकिन पहले यहां इसकी ज्यादा सुविधाएं नहीं थी। हरियाणा खेल के क्षेत्र में काफी बेहतर राज्य है। यहां खिलाडि़यों को जो सुविधाएं मिलती हैं, वो अन्य राज्यों में भी मिल जाए तो देश के युवा खेल में ज्यादा बेहतर कर सकते हैं।

अरुंधति चौधरी ने विश्व चैंपियनशिप के चयन को लेकर ट्रायल की मांग की है, हाई कोर्ट में भी इसको लेकर चुनौती दी गई है। आपका इस संदर्भ में क्या कहना है?

टोक्यो ओलिंपिक में पदक जीतने के बाद देश में मुझे काफी सम्मान मिला। इसलिए अभ्यास नहीं कर सकी थी, जिसके कारण भारतीय मुक्केबाजी संघ ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में नहीं खेलने की छूट दी। विश्व चैंपियनशिप के लिए अब ट्रेनिंग शुरू कर दी है। राष्ट्रीय में नहीं खेलने का फैसला भी संघ का था। आगे भी संघ का फैसला उनके लिए अंतिम होगा। इतना कहना चाहूंगी कि मैं फाइटर हूं और फाइट करने में ही विश्वास रखती हूं।

किक मुक्केबाजी से मुक्केबाजी में कैसे आना हुआ?

मेरी मां चाहती थी, हम तीनों बहनें सेल्फ डिफेंस में माहिर हो। हम मय थाई की ट्रेनिंग लेते थे जो एक मार्शल आर्ट। यह किक मुक्केबाजी से मिलता-जुलता है। किक मुक्केबाजी कभी नहीं खेली। नौंवी क्लास में थी जब एक दिन स्कूल में बाल सभा के दौरान कुछ खेल अधिकारी आए और मुक्केबाजी खेलने के लिए कहा। मुक्केबाजी का नाम सुना था, खेली कभी नहीं थी। जब पता चला की यह ओलिंपिक में खेला जाता है तो इसे गंभीरता से लिया और आज आपके सामने हूं।- पूर्वोत्तर में खेल संस्कृति ज्यादा विकसित नहीं हो पाई।

आपके ओलिंपिक में पदक जीतने के बाद क्या बदलाव आया?

उत्तर भारत से तुलना में हमारे यहां खेल की सुविधाएं नहीं के बराबर हैं। हरियाणा की ही बात की जाए तो बेहतर सुविधाएं खिलाड़ियों को मिल रही हैं। यही वजह है कि खेल हब के नाम से जाना जाता है। ओलिंपिक में पदक जीतने पर मेरे नाम पर सरकार ने एक स्टेडियम की घोषणा की है। यह मेरे लिए तो गर्व की बात है कि साथ ही स्टेडियम होने से आने वाले खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलेंगी। खेल के प्रति युवा भी आकर्षित हुए हैं।


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