EXCLUSIVE INTERVIEW: ऐसा विश्व रिकार्ड बनाऊंगा जो मुझसे भी न टूटे : सुमित अंतिल
EXCLUSIVE INTERVIEW of Sumit Antil with Dainik Jagran पैरालिंपिक में भाला फेंक में विश्व रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतने वाले सोनीपत के गांव खेवड़ा के सुमित आंतिल ऐसा विश्व रिकार्ड बनाना चाहते हैं जो खुद उनसे भी न टूटे।
पैरालिंपिक में भाला फेंक में विश्व रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतने वाले सोनीपत के गांव खेवड़ा के सुमित आंतिल ऐसा विश्व रिकार्ड बनाना चाहते हैं जो खुद उनसे भी न टूटे। सुमित अपने दोनों कोच वीरेंद्र धनखड़ और नवल सिंह के पास ही ट्रेनिंग करेंगे। दैनिक जागरण के नंदकिशोर भारद्वाज ने पदकवीर सुमित आंतिल से विशेष बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश-
-टोक्यो में स्वर्णिम थ्रो के लिए तैयारी कैसी थी?
-अभ्यास के दौरान ही पटियाला में 66.90 मीटर थ्रो किया था। यही मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। मुझे उम्मीद थी मैं टोक्यो में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहरा पाउंगा। इसके लिए कड़ी मेहनत और अभ्यास किया था। टोक्यो में पहले प्रयास में 66.95 मीटर, दूसरे में 68.08, तीसरे में 65, चौथे में 66.71, पांचवें में 68.55 मीटर थ्रो किया था। पांचवें प्रयास में ही पता चल गया था कि इससे पदक मिल जाएगा। छठे प्रयास में थ्रो कम रहा, तो इसे मैंने फाउल कर दिया।
-ओलिंपिक पदक के बाद अब अगला लक्ष्य क्या है?
-अब अगला लक्ष्य ऐसा विश्व रिकार्ड बनाना है, जिसे मैं खुद भी नहीं तोड़ पाऊं। सबसे पहले अगले साल चीन में होने वाली एशियन चैंपियनशिप और लंदन में होने वाली विश्व चैंपियनशिप में देश के लिए स्वर्ण जीतकर टोक्यो पैरालिंपिक की तरह देशवासियों को गौरवान्वित कराना है। इसके बाद 70 मीटर से अधिक और फिर 75 मीटर से अधिक थ्रो करने पर जोर रहेगा। 70 मीटर भी सम्मानित थ्रो होता है, लेकिन अब मेरा लक्ष्य 75 मीटर से ज्यादा का है।
-क्या अभ्यास के लिए पर्याप्त सुविधाएं हैं?
हां, सोनीपत में दो जगह सिंथेटिक ट्रैक उपलब्ध हैं। साई सेंटर बहालगढ़ और राठधना गांव के स्टेडियम में सिंथेटिक ट्रैक मौजूद हैं, इसलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल से गांव खेवड़ा में स्टेडियम संबंधी कोई मांग नहीं रखी गई क्योंकि सिंथेटिक ट्रैक और अन्य सुविधाओं को देखरेख की अधिक जरूरत होती है। गांव में इनका रखरखाव संभव नहीं हो पाता।
-क्या विदेश में जाकर अभ्यास की जरूरत महसूस करते हैं।
-नहीं मैं विदेश जाकर अभ्यास नहीं करना चाहता। जब अपने ही देश में विश्व स्तरीय अभ्यास की सुविधाएं मौजूद हैं तो विदेश में जाकर क्या करना। विदेशों में लगने वाले कैंपों में भारतीय खिलाड़ियों को खाने और अन्य परेशानियों को सामना करना पड़ता है। मैं अपने कोच वीरेंद्र धनखड़ और नवल सिंह के साथ ही ट्रेनिंग को जारी रखूंगा। हरियाणा और केंद्र सरकार ने पैरा खिलाड़ियों की भरपूर मदद की है।
-स्वर्ण पदक का श्रेय किसे देंगे?
-पैरालिंपिक स्वर्ण पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है और उसके पीछे किसी एक व्यक्ति की नहीं, कई लोगों की मेहनत होती है। मैं अपनी मां को यह स्वर्ण पदक समर्पित करता हूं। यह पदक क्या, ऐसे कई पदक मां के चरणों में कुर्बान कर दें तो उनकी मेहनत का मोल नहीं चुकाया जा सकता।