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लक्ष्य लेकर नहीं चलता हूं: चोपड़ा

नीरज लगातार अच्छा कर रहे हैं और लगातार उनसे उम्मीदें बढ़ रही हैं। अब टोक्यो ओलंपिक शुरू होने में दो वर्ष का समय रह गया है।

By Lakshya SharmaEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 08:46 AM (IST)Updated: Fri, 23 Nov 2018 08:46 AM (IST)
लक्ष्य लेकर नहीं चलता हूं: चोपड़ा
लक्ष्य लेकर नहीं चलता हूं: चोपड़ा

नई दिल्ली, जेएनएन। सिर्फ एक खिलाड़ी के लगातार शानदार प्रदर्शन की बदौलत अब ओलंपिक में एथलेटिक्स में भी पदक की उम्मीदें बढ़ गई हैं। यह नाम कोई और नहीं, बल्कि देश के युवा भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा हैं। नीरज लगातार अच्छा कर रहे हैं और लगातार उनसे उम्मीदें बढ़ रही हैं। अब टोक्यो ओलंपिक शुरू होने में दो वर्ष का समय रह गया है। ऐसे में भविष्य की तैयारियों के बारे में अभिषेक त्रिपाठी ने नीरज चोपड़ा से खास बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश :

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अभ्यास कैसा चल रहा है, आगे की तैयारियां क्या हैं?

अगले साल एशियन चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप सहित डायमंड लीग है। ओलंपिक पर भी फोकस बना हुआ है। बस इन्हीं सब की तैयारियों के लिए अभ्यास कर रहा हूं।

लोग एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक की बात करते हैं तो आपका नाम सामने आता है। दबाव महसूस होता है?

दबाव तो महसूस नहीं होता है। हालांकि, खुद से उम्मीद बढ़ जाती है। पूरा देश मेरे पर निगाहें लगाए बैठा है। हर जगह उम्मीद पर खरा उतरा हूं। बड़ी चैंपियनशिप में स्वर्ण लाया हूं। ऐसे ही चलता रहे तो और अच्छा करने की कोशिश करूंगा।

जिन कोचों के साथ अभ्यास किया, उन्हें बदला, अब नए कोच हैं। कितना सही रहता है यह?

खिलाड़ी की जिंदगी में बदलाव आते रहते हैं। गांव में अभ्यास करता था और फिर जिले के स्टेडियम में जाना पड़ा। कोच भी बदले। जिंदगी बदलती रहती है। नई चुनौतियां आती रहती हैं।

एनआइएस पटियाला की सुविधाएं अच्छी हैं। हालांकि, यहां इंडोर प्रैक्टिस की सुविधा नहीं है?

यह बहुत बड़ा संस्थान है। यहां सभी खेलों के कैंप लगते हैं। एक इंडोर स्टेडियम हो तो बहुत अच्छा रहेगा। बारिश के कारण दिक्कत होती है। अगर बारिश लगातार हो तो फिर अभ्यास नहीं कर पाते हैं। यहां राष्ट्रीय कैंप लगते हैं तो ऐसे में इंडोर स्टेडियम जरूर होना चाहिए।

विदेश में अभ्यास की क्या योजना है?

हां, प्लान बन रहा हैं। विदेश में अभ्यास कराने की बात चल रही है।

पदक जीतने के बाद जिंदगी कितनी बदली?

पहले अभ्यास पर ऐसे ही चले जाते थे। अब लोग जानने लगे हैं। अब जो भी करते हैं उसके बारे में सोचना पड़ता है।

आपकी वजह से लड़कियां भी भाला फेंक का खेल देखने लगी हैं, क्या कहना है?

पदक आएगा तो सभी देखेंगे। भाला फेंक में पहले पदक नहीं था। अब आ रहा है। बाकी एथलीट भी अच्छा कर रहे हैं। चार खिलाड़ी 80 मीटर से ज्यादा भाला फेंक रहे हैं। युवा खिलाड़ी यूथ ओलंपिक खेलने गए थे। प्रदर्शन अच्छा हो रहा है। अगले ओलंपिक तक भाला फेंक में अच्छा कर सकते हैं।

टोक्यो के लिए क्या लक्ष्य है?

मैं लक्ष्य लेकर नहीं चलता हूं। अगर मैं नहीं कर पाता हूं तो फिर मायूसी होती है। अपना 100 प्रतिशत दे सकूं बस। थोड़ा कम भी होता है तो चलता है। प्रदर्शन ऊपर नीचे चलता रहता है। लक्ष्य ऐसा कोई नहीं है।

हरियाणा में ऐसा क्या है यहां से एथलीट अच्छे और बहुत ज्यादा निकलते हैं?

हरियाणा में खेलों को लेकर जागरूकता हमेशा से ही रही है। कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स और ओलंपिक में यहां के खिलाड़ियों का योगदान अलग से ही दिखेगा। खिलाड़ी अच्छा करते हैं तो बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है। फिर सरकार भी काफी मदद करती है। बाकी राज्यों में भी सरकार को अच्छा करना चाहिए, जिससे वहां से भी खिलाड़ी निकलने लगेंगे।

आपके गांव में बच्चे भी भाला फेंक का खेल खेलने लगे हैं?

हां, बच्चे निकल रहे हैं। गांव में स्टेडियम बनाने की बात की है। जिससे मेरे गांव से ज्यादा से ज्यादा बच्चे खेलों से जुड़ सकें।

साई, सरकार और एसोसिएशन कैसे एक साथ चलती हैं?

कोई अच्छा कर रहा है तो साथ की जरूरत होती है। एक टीम वर्क होता है। अगर सब अपना करेंगे तो एथलीट फंस जाएगा। ऐसे में इन सभी की मदद की जरूरत होती है। एक अकेला एथलीट घर से इतना नहीं कर सकता है।

चैंपियनशिप में भाला आप अपना लेकर जाते हैं?

अपना भाला लेकर जाता हूं और मिलता भी हैं। मैं दो से तीन भाले तक ले जाता हूं, जबकि अभ्यास में 12 भाले तक ले जाता हूं। मेरा कोई भाग्यशाली भाला नहीं है। कौन से भाले का इस्तेमाल करना है यह तो हवा पर भी निर्भर करता है।

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